ईरान के इस रुख़ से अब अमेरिका ख़फ़ा: पश्चिम एशिया में बढ़ता तनाव
भूमिका
ईरान और अमेरिका के बीच संबंध दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन हाल ही में ईरान के कुछ निर्णयों और बयानों ने एक बार फिर से वॉशिंगटन को चिंतित और नाराज़ कर दिया है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम में तेजी, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स की क्षेत्रीय गतिविधियों और इजराइल के खिलाफ उसके समर्थन वाले बयानों ने अमेरिका की नाराज़गी को और गहरा कर दिया है। अमेरिका ने कई बार चेतावनी दी है कि ईरान की नीतियाँ पश्चिम एशिया की शांति और स्थिरता को खतरे में डाल सकती हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि ईरान के हालिया रुख से अमेरिका क्यों ख़फ़ा है, इसके पीछे की भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि क्या है, और इससे भविष्य में क्या परिणाम निकल सकते हैं।
1. ईरान के परमाणु कार्यक्रम में फिर तेजी
ईरान की ओर से हाल ही में यूरेनियम संवर्धन (Enrichment) की प्रक्रिया को फिर से तेज़ करने की खबरें आईं हैं। इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) की रिपोर्ट के अनुसार, ईरान अब 60% से अधिक शुद्धता वाले यूरेनियम का संवर्धन कर रहा है, जो हथियार-ग्रेड यूरेनियम की सीमा के बेहद करीब है।
अमेरिका ने इस कदम को सीधे तौर पर 2015 के ईरान परमाणु समझौते (JCPOA) के उल्लंघन के रूप में देखा है। 2018 में ट्रंप प्रशासन ने इस समझौते से खुद को अलग कर लिया था, लेकिन बाइडेन प्रशासन इसे फिर से बहाल करना चाहता था। मगर ईरान की आक्रामकता और पारदर्शिता की कमी ने अमेरिका को चिंतित कर दिया है।
2. हिज़्बुल्लाह और हूथी विद्रोहियों को समर्थन
ईरान पर यह आरोप लंबे समय से लगता आया है कि वह पश्चिम एशिया में आतंकवाद को समर्थन दे रहा है। लेबनान के हिज़्बुल्लाह और यमन के हूथी विद्रोहियों को ईरान के हथियार, पैसे और ट्रेनिंग देने की खबरें आम हो चुकी हैं।
हाल के सप्ताहों में हूथियों द्वारा लाल सागर में अमेरिकी और सहयोगी जहाजों पर हमले किए गए हैं। अमेरिका का मानना है कि ये हमले ईरान के समर्थन के बिना संभव नहीं हैं। इसी वजह से अमेरिका ने यमन में हूथी ठिकानों पर एयरस्ट्राइक भी की थी।
3. इजराइल विरोधी रुख़ और हमास का समर्थन
7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इजराइल पर अचानक हमला किए जाने के बाद पूरे विश्व का ध्यान फिर से गाजा और इजराइल संघर्ष की ओर गया। इस मामले में ईरान खुलकर हमास के समर्थन में आ गया। ईरानी नेताओं ने इसे “इजराइल के खिलाफ प्रतिरोध” बताया और हमास की पीठ थपथपाई।
अमेरिका, जो इजराइल का सबसे बड़ा सहयोगी है, इस बात से बेहद नाराज़ है कि ईरान इस संघर्ष को और भड़का रहा है। अमेरिका ने कहा है कि अगर ईरान या उसके प्रॉक्सी ग्रुप्स ने इस्लाईल के खिलाफ कोई सीधा हमला किया तो परिणाम गंभीर होंगे।
4. ईरानी नौसेना की आक्रामक गतिविधियाँ
हाल ही में अमेरिका ने यह आरोप लगाया है कि ईरानी नौसेना ने ओमान की खाड़ी और स्ट्रेट ऑफ हॉर्मुज़ जैसे सामरिक जलमार्गों में अमेरिकी और सहयोगी जहाजों को परेशान किया है। यह क्षेत्र वैश्विक तेल आपूर्ति का एक बड़ा हिस्सा है और वहां किसी भी प्रकार की अस्थिरता का असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है।
अमेरिका ने इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रीय समुद्री नियमों का उल्लंघन बताया और चेतावनी दी कि यदि ईरान ने ऐसे कदम नहीं रोके तो अमेरिका जवाबी कार्रवाई कर सकता है।
5. ईरानी नेतृत्व की आक्रामक बयानबाजी
ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई और राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी के हालिया बयानों ने अमेरिका को और अधिक नाराज़ कर दिया है। ईरानी नेतृत्व ने अमेरिका को “शैतान की ताकत” बताते हुए क्षेत्रीय हस्तक्षेप बंद करने को कहा है।
ईरान यह भी कहता आया है कि अमेरिका सिर्फ इजराइल का समर्थन करने के लिए पश्चिम एशिया की राजनीति में दखल देता है, और यह क्षेत्रीय शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा है। अमेरिका इस तरह की बयानबाजी को “भड़काऊ और गैर-जिम्मेदाराना” मानता है।
6. राजनयिक प्रयासों की विफलता
बाइडेन प्रशासन ने पद ग्रहण करने के बाद ईरान के साथ बातचीत की कोशिश की थी, लेकिन अब तक कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी है। ईरान अपनी शर्तों पर बातचीत चाहता है, वहीं अमेरिका चाहता है कि ईरान पहले यूरेनियम संवर्धन कम करे और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति दे।
इन असहमति भरे रुखों ने बातचीत को लगभग ठप कर दिया है और तनाव लगातार बढ़ रहा है।
7. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
ईरान-अमेरिका टकराव का असर केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं है। इसकी वजह से पूरा मध्य पूर्व (West Asia) अस्थिरता की चपेट में आ सकता है। इससे न केवल तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला, व्यापार और निवेश भी प्रभावित हो सकता है।
इसके अलावा अमेरिका के सहयोगी जैसे सऊदी अरब, यूएई और यूरोपीय देश भी इस स्थिति से चिंतित हैं, क्योंकि वे नहीं चाहते कि क्षेत्र में कोई नया युद्ध शुरू हो।
बात कहां तक बढ़ सकती है? – ईरान-अमेरिका तनाव का संभावित भविष्य
ईरान और अमेरिका के बीच हालिया तनाव सिर्फ शब्दों और आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक गहरी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, वैचारिक टकराव और रणनीतिक हित छिपे हैं। सवाल यह है कि यह बात आखिर कहां तक बढ़ सकती है? क्या यह सिर्फ कूटनीतिक दबाव और आर्थिक प्रतिबंधों तक रहेगा या किसी बड़ी सैन्य झड़प की ओर बढ़ रहा है? आइए इसे विभिन्न पहलुओं से समझते हैं।
1. सीमित सैन्य टकराव (Limited Military Conflict)
वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए सबसे संभावित खतरा यह है कि ईरान और अमेरिका के बीच किसी तीसरे देश में या समुद्र में सीमित सैन्य झड़प हो सकती है। जैसे—
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ईरान समर्थित हूथी या हिज़्बुल्लाह ग्रुप द्वारा अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला।
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अमेरिकी युद्धपोतों पर ईरानी नौसेना की कार्रवाई।
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इजराइल और ईरान के बीच टकराव में अमेरिका का हस्तक्षेप।
इस तरह की घटनाएं सीधे युद्ध की शुरुआत नहीं होंगी, लेकिन हालात को और खतरनाक बना सकती हैं।
2. प्रत्यक्ष युद्ध की आशंका
हालांकि प्रत्यक्ष युद्ध की संभावना कम है, लेकिन अगर ईरान ने यूरेनियम संवर्धन को हथियार स्तर तक पहुंचा दिया या इजराइल पर हमला हुआ, तो अमेरिका सैन्य कार्रवाई कर सकता है। अमेरिका पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि वह “न्युक्लियर ईरान” को बर्दाश्त नहीं करेगा।
अगर ऐसा होता है, तो यह टकराव पूरे पश्चिम एशिया में फैल सकता है, जिसमें सऊदी अरब, इजराइल, सीरिया, लेबनान और इराक जैसे देश भी खिंच सकते हैं। यह स्थिति तीसरे विश्व युद्ध जैसी नहीं, लेकिन क्षेत्रीय महाविनाश का कारण बन सकती है।
3. आर्थिक युद्ध और प्रतिबंधों का दौर
अगर सैन्य रास्ता नहीं भी अपनाया गया, तो अमेरिका ईरान पर और अधिक आर्थिक प्रतिबंध लगा सकता है। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था और कमजोर होगी, लेकिन इसके बदले ईरान भी तेल मार्गों को बाधित कर सकता है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा।
अमेरिका, यूरोप और अन्य पश्चिमी देश ईरानी बैंकों, व्यापार और तेल निर्यात को पूरी तरह रोकने की योजना बना सकते हैं।
4. राजनयिक प्रयासों का भविष्य
यदि हालात बहुत बिगड़ते हैं, तो कुछ देश जैसे—चीन, रूस, कतर, या तुर्की मध्यस्थता की भूमिका निभा सकते हैं। बाइडेन प्रशासन भी एक बड़े युद्ध से बचना चाहता है, इसलिए राजनयिक समाधान की संभावनाएं बनी रहेंगी। परंतु ईरान की जिद और अमेरिका की “नो-कंप्रोमाइज” नीति इस रास्ते को कठिन बना सकती है।
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