“कचरे से करिश्मा: आगरा बना भारत का पहला एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन शहर”

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Correspondent: GT Express | 10.07.2025 | Ghar Tak Express  |

आगरा नगर निगम ने स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 के तहत ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जो देशभर के शहरी निकायों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। नगर निगम ने न केवल आगरा को कचरा-मुक्त बनाने की दिशा में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है, बल्कि एक गंभीर पर्यावरणीय चुनौती को सतत विकास और नवाचार का अवसर बनाकर देश को एक आदर्श मॉडल भी प्रस्तुत किया है।

साल 2007 में आगरा के कुबेरपुर क्षेत्र में एक लैंडफिल साइट विकसित की गई थी, जहाँ प्रतिदिन हज़ारों टन ठोस कचरा नगर निगम द्वारा डाला जाता था। वर्षों तक शहर का कूड़ा यहीं जमा होता रहा, जिससे यह क्षेत्र एक विषैली और दुष्प्रभावी जगह में बदल गया। लेकिन 2019 में हालात बदलने लगे। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की स्वच्छ भारत की परिकल्पना और मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में नगर निगम ने इस ज़हरीले ढेर को हरित क्षेत्र में बदलने का संकल्प लिया।

नगर निगम ने एसपीएएके सुपर इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड के तकनीकी सहयोग से बायोरेमेडिएशन और बायोमाइनिंग तकनीकों के जरिए पुराने कचरे को वैज्ञानिक तरीके से हटाना शुरू किया। दिसंबर 2024 तक कुल 1.9 मिलियन मीट्रिक टन कचरा हटाया गया, जिससे 47 एकड़ ज़मीन को पुनः उपयोग में लाया जा सका। इस प्रक्रिया में लगभग ₹320 करोड़ की लागत आई। हटाए गए कचरे का पुनर्चक्रण किया गया और बचे हुए निष्क्रिय कचरे को पांच एकड़ भूमि पर बने आधुनिक सैनिटरी लैंडफिल में सुरक्षित रूप से निपटाया गया।

पुनर्प्राप्त भूमि में से 10 एकड़ में मियावाकी वनरोपण तकनीक का प्रयोग कर एक घना शहरी वन विकसित किया गया। इससे न केवल हरियाली बढ़ी बल्कि प्रदूषण नियंत्रण और पारिस्थितिकी संतुलन में भी योगदान मिला। शेष भूमि को पर्यावरण-अनुकूल सार्वजनिक स्थल, ग्रीन वॉकवे, वर्षा जल संचयन संरचनाएं और शैक्षणिक भ्रमण केंद्रों के रूप में परिवर्तित किया गया।

वर्ष 2019 में कचरा प्रसंस्करण की दिशा में बड़ी पहल करते हुए नगर निगम ने 300 टीपीडी क्षमता वाला कचरा-से-खाद संयंत्र स्थापित किया, जिसे बाद में बढ़ाकर 500 टीपीडी किया गया। इससे गीले कचरे को कार्बनिक खाद में बदला जा रहा है, जो शहर के बागवानी और वृक्षारोपण कार्यों में उपयोग हो रही है। यह संयंत्र अपशिष्ट को संसाधन में बदलने का उत्कृष्ट उदाहरण है।

शहर में कचरा प्रबंधन को सुदृढ़ करने के लिए चार सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएं (MRF) स्थापित की गई हैं, जिनकी कुल क्षमता 405 टन प्रतिदिन है। साथ ही, स्रोत स्तर पर 100 प्रतिशत कचरा पृथक्करण अनिवार्य किया गया है, जिससे गीला, सूखा और खतरनाक कचरा अलग-अलग इकाइयों में भेजा जा सके। प्रत्येक घर से पृथक कचरे का संग्रहण सुनिश्चित किया जा रहा है, जिससे संग्रहण की दक्षता और प्रसंस्करण की गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार हुआ है।

जनवरी 2025 में आगरा में 65 टीपीडी क्षमता का एक विशेष एमआरएफ-सह-प्लास्टिक अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र शुरू किया गया, जहाँ प्लास्टिक कचरे को रिसायकल कर पानी के पाइप बनाए जाते हैं। ये पाइप किसानों को सस्ती दरों पर उपलब्ध कराए जाते हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों को भी पर्यावरणीय लाभ मिल रहा है।

आगरा नगर निगम ने केवल तकनीकी समाधान पर ध्यान नहीं दिया, बल्कि नागरिकों को इस परिवर्तन में सहभागी बनाया। घर-घर जागरूकता अभियान, स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएं, नागरिक समूहों की भागीदारी और डिजिटल माध्यमों के जरिए अपशिष्ट पृथक्करण की महत्ता को समझाया गया।

आज कुबेरपुर का यह स्थल “शिक्षण और जागरूकता केंद्र” के रूप में विकसित हो चुका है। देशभर के स्कूल, कॉलेज, तकनीकी संस्थान, आईआईटी, और निजी विश्वविद्यालयों के छात्र इस केंद्र का भ्रमण करते हैं और सीखते हैं कि टिकाऊ समाधान कैसे कार्यान्वित किए जा सकते हैं। इससे यह स्थल एक प्रकार से अपशिष्ट प्रबंधन की जीवित प्रयोगशाला बन गया है।

आगरा का यह परिवर्तन स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 के लक्ष्यों के अनुरूप है, जिसमें शहरी भारत को कचरा मुक्त, स्वच्छ और पर्यावरण-अनुकूल बनाना है। आगरा की यह पहल केवल स्वच्छता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह सतत विकास, भूमि सुधार और शहरी नवाचार का मूर्त उदाहरण बन चुकी है।

कुबेरपुर लैंडफिल क्षेत्र, जो वर्षों तक ठोस कचरे का ढेर बना रहा, अब पूरी तरह पुनः प्राप्त किया जा चुका है। जैविक तकनीकों जैसे बायोरेमेडिएशन और बायोमाइनिंग के प्रयोग से 1.9 मिलियन मीट्रिक टन पुराने कचरे को वैज्ञानिक रूप से हटाकर कुल 47 एकड़ भूमि को फिर से उपयोग के योग्य बनाया गया है। यह भारत के शहरी कचरा प्रबंधन इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।


वर्ष 2019 से शुरू हुई इस प्रक्रिया में अब तक लगभग 19 लाख मीट्रिक टन पुराने कचरे का सुरक्षित, टिकाऊ और पर्यावरणीय दृष्टि से अनुकूल निपटान किया जा चुका है। इससे न केवल भूमि को पुनः उपयोग योग्य बनाया गया, बल्कि आसपास के पर्यावरण पर पड़ने वाले विषैले प्रभाव को भी खत्म किया गया।


गीले कचरे को संसाधित कर जैविक खाद में बदलने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए 2019 में 300 टन प्रतिदिन क्षमता वाला संयंत्र लगाया गया, जिसे बाद में बढ़ाकर 500 टीपीडी कर दिया गया। इससे प्रतिदिन उत्पन्न हो रहे गीले कचरे का कुशलतापूर्वक उपयोग हो रहा है और जैविक खेती को भी बल मिल रहा है।


शहर भर में चार आधुनिक Material Recovery Facilities (MRFs) स्थापित की गई हैं, जिनकी संयुक्त क्षमता 405 टन प्रतिदिन है। इन केंद्रों पर सूखे कचरे को श्रेणियों में विभाजित कर पुनः उपयोग या पुनर्चक्रण के लिए तैयार किया जाता है, जिससे कचरा डंपिंग की आवश्यकता कम होती है।


जनवरी 2025 में शुरू किए गए इस संयंत्र में प्रतिदिन 65 टन प्लास्टिक अपशिष्ट को रिसायकल कर पानी के पाइप और अन्य उपयोगी उत्पाद तैयार किए जाते हैं। ये पाइप किसानों को रियायती दरों पर दिए जाते हैं, जिससे यह पहल न केवल अपशिष्ट समाधान है, बल्कि ग्रामीण कृषि को सहयोग भी है।


पुनः प्राप्त भूमि के 10 एकड़ क्षेत्र में जापानी मियावाकी वनरोपण तकनीक से एक घना शहरी वन विकसित किया गया है। यह वन क्षेत्र न केवल शहर को हरियाली प्रदान करता है, बल्कि प्रदूषण नियंत्रण, तापमान नियमन और जैव विविधता संरक्षण में भी अहम भूमिका निभा रहा है।


आगरा मॉडल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि शहर में स्रोत स्तर पर 100 प्रतिशत कचरे का पृथक्करण अनिवार्य कर दिया गया है। नागरिकों को सूखा, गीला और खतरनाक कचरा अलग-अलग करने की शिक्षा दी गई है, और नगर निगम द्वारा पृथक संग्रहण की व्यवस्था की गई है। इससे समग्र कचरा प्रबंधन प्रणाली अधिक प्रभावशाली और दक्ष बनी है।


कुबेरपुर का यह स्थान अब केवल एक तकनीकी केंद्र नहीं रह गया है, बल्कि यह अपशिष्ट प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण और सतत शहरी विकास का एक राष्ट्रीय शैक्षणिक केंद्र बन चुका है। देशभर के विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों, आईआईटी और स्कूलों के छात्र इस स्थल पर अध्ययन और प्रायोगिक निरीक्षण के लिए आते हैं, जिससे यह स्थल “लर्निंग बाय डूइंग” का जीवंत उदाहरण बन गया है।

Source : PIB 

आगरा स्वच्छता मॉडल से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):

Q1. आगरा नगर निगम द्वारा कुबेरपुर लैंडफिल साइट को कैसे पुनः उपयोग योग्य बनाया गया?
उत्तर:
आगरा नगर निगम ने बायोरेमेडिएशन और बायोमाइनिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करते हुए कुबेरपुर डंपिंग साइट से 1.9 मिलियन मीट्रिक टन पुराने कचरे को हटाया। इससे 47 एकड़ ज़मीन को पुनः प्राप्त किया गया और इसे शहरी वन, एमआरएफ, सार्वजनिक स्थल व शोध केंद्र के रूप में परिवर्तित किया गया।

Q2. बायोरेमेडिएशन और बायोमाइनिंग तकनीकों में क्या अंतर है?
उत्तर:

  • बायोरेमेडिएशन में सूक्ष्मजीवों की मदद से जैविक अपशिष्ट को तोड़ा जाता है ताकि भूमि को विषैले तत्वों से मुक्त किया जा सके।

  • बायोमाइनिंग में कचरे को वर्गीकृत कर उपयोगी पदार्थ जैसे कंपोस्ट, रीसायक्लेबल सामग्री और निष्क्रिय कचरा अलग किया जाता है।

Q3. आगरा में कितनी सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएं (MRFs) हैं और उनकी क्षमता क्या है?
उत्तर:
आगरा शहर में कुल चार MRFs हैं, जिनकी संयुक्त क्षमता 405 टन प्रतिदिन (TPD) है। ये सूखे कचरे को श्रेणीबद्ध कर पुनर्चक्रण हेतु तैयार करते हैं।

Q4. कचरा-से-खाद संयंत्र क्या करता है और इसकी क्षमता क्या है?
उत्तर:
कचरा-से-खाद संयंत्र गीले कचरे को प्रोसेस कर जैविक खाद में परिवर्तित करता है। आगरा में यह संयंत्र वर्ष 2019 में 300 TPD की क्षमता से शुरू हुआ था जिसे अब बढ़ाकर 500 TPD कर दिया गया है।

Q5. प्लास्टिक अपशिष्ट का निपटान कैसे किया जाता है?
उत्तर:
जनवरी 2025 से कार्यरत 65 TPD क्षमता वाला प्लास्टिक अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र प्लास्टिक को रीसायकल कर पानी के पाइप बनाता है, जिन्हें किसानों को रियायती दर पर उपलब्ध कराया जाता है।