Correspondent: GT Express | 25.07.2025 | Ghar Tak Express |
लोकसभा में आज एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय में राज्य मंत्री श्री दुर्गादास उइके ने बताया कि सरकार देश भर के जनजातीय समुदायों के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु बहुआयामी योजनाएं चला रही है। बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में स्थित थारू जनजातीय समुदाय के आर्थिक और सांस्कृतिक उत्थान के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें हस्तशिल्प पहचान पत्र, विपणन मंचों तक पहुंच, कौशल विकास, और आजीविका योजनाएं शामिल हैं।
केंद्र से पहचान और बाज़ार तक का सफर
श्री उइके ने लोकसभा को सूचित किया कि बिहार के पश्चिम चंपारण जिले से संबंधित 646 हस्तशिल्प कारीगरों (एसटी वर्ग) को पहचान पत्र जारी किए गए हैं। ये कारीगर अब गांधी शिल्प बाजार, दिल्ली हाट जैसे आयोजनों तथा ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के माध्यम से अपने उत्पादों की बिक्री कर सकते हैं। इससे उनकी सामाजिक मान्यता और आर्थिक स्वावलंबन को बल मिला है।
राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम और जनजातीय समावेशन
कपड़ा मंत्रालय द्वारा लागू की जा रही योजनाएं जैसे राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) और हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना (सीएचसीडीएस) जनजातीय कारीगरों को व्यापक लाभ पहुंचा रही हैं। इन योजनाओं के अंतर्गत विपणन सहायता, कौशल प्रशिक्षण, अवसंरचना विकास, तकनीकी समर्थन और अनुसंधान सहयोग जैसी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं।
इन योजनाओं के अंतर्गत न केवल कारीगरों को वित्तीय और तकनीकी मदद मिलती है, बल्कि उन्हें रोज़गार सृजन और क्लस्टर आधारित ब्रांडिंग का भी अवसर मिलता है।
ट्राइफेड और प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन की भूमिका
प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन (पीएमजेवीएम) के अंतर्गत भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ (ट्राइफेड) द्वारा बिहार के थारू समुदाय के 56 कारीगरों, उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं को सूचीबद्ध किया गया है। ये 56 इकाइयाँ 405 जनजातीय परिवारों को अपने साथ जोड़कर स्थायी आमदनी के स्रोत उपलब्ध करा रही हैं।
यह पहल ना सिर्फ स्थानीय कारीगरी को राष्ट्रीय पहचान दिला रही है, बल्कि उसे व्यावसायिक मॉडल के रूप में बदलने की दिशा में एक सशक्त कदम भी सिद्ध हो रही है।
थरुहट क्षेत्र में राज्य सरकार की योजनाएं
बिहार सरकार ने भी थरुहट क्षेत्र के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। प्रखंड बगहा-2 के हरनाटांड़ पंचायत में एक स्वरोजगार हेतु बुनकर कार्यशाला-सह-आवासीय भवन का निर्माण किया गया है, जो अब पूरी तरह से कार्यशील है। इसके अलावा, बगहा-2 के मिश्रौली में एक हथकरघा भवन की स्वीकृति दी गई है।
इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल कारीगरों को प्रशिक्षण देना है, बल्कि उन्हें स्थायी उत्पादन और विपणन केंद्र भी प्रदान करना है, ताकि वे स्थानीय संसाधनों का उपयोग करते हुए अपने उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ा सकें।
जीविका और स्वयं सहायता समूहों की ताकत
इन समूहों ने 77871 परिवारों को आजीविका गतिविधियों, क्षमता निर्माण और उद्यमिता के अवसरों से जोड़ा है।
इनमें से कई समूह अब कृषि-आधारित प्रसंस्करण, पशुपालन, कढ़ाई-बुनाई, जैविक खेती, मधुमक्खी पालन और स्थानीय हस्तशिल्प जैसे कार्यों में संलग्न हैं।
थारू समुदाय का सांस्कृतिक पुनरुद्धार
थारू समुदाय की सांस्कृतिक पहचान को भी योजनाओं के माध्यम से संरक्षित और प्रोत्साहित किया जा रहा है। लोकनृत्य, पारंपरिक चित्रकला, मिट्टी शिल्प और लोकगीतों को विभिन्न मेलों और प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किया गया है। इससे न केवल सांस्कृतिक आत्मविश्वास बढ़ा है, बल्कि पर्यटन और रोजगार के नए द्वार भी खुले हैं।
646 थारू कारीगरों को पहचान पत्र: अधिकार की पहली सीढ़ी
सरकार द्वारा 646 थारू कारीगरों को हस्तशिल्प कारीगर पहचान पत्र प्रदान किए गए हैं। यह न केवल उनकी शिल्प पहचान को आधिकारिक दर्जा देता है, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय कार्यक्रमों में भागीदारी, विपणन योजनाओं से जुड़ाव और ई-मार्केटप्लेस तक सीधी पहुंच दिलाता है। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है और कारीगरी को एक सम्मानजनक जीविका का माध्यम बनाया गया है।
56 थारू उत्पादक ट्राइफेड के तहत सूचीबद्ध: बाज़ार की दहलीज़ पर
भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास महासंघ (ट्राइफेड) के माध्यम से प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन (PMJVM) के अंतर्गत 56 थारू उत्पादकों/आपूर्तिकर्ताओं को सूचीबद्ध किया गया है। ये उत्पादक न केवल अपने समुदाय के शिल्प उत्पाद बेच रहे हैं, बल्कि स्थानीय संसाधनों से वैश्विक गुणवत्ता तक के सफर की मिसाल बन रहे हैं।
405 परिवारों को बाज़ार से सीधा जुड़ाव: लाभ की नई धारा
इन 56 इकाइयों के माध्यम से 405 थारू परिवार अब ट्राइफेड और अन्य सरकारी विपणन प्लेटफॉर्मों से जुड़कर सीधी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। इससे बिचौलियों की भूमिका कम हुई है और मुनाफा सीधे निर्माता के पास पहुँच रहा है। यह सप्लाई चेन में न्याय और पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम है।
6378 स्वयं सहायता समूहों से 77871 परिवार जुड़े: सामूहिक शक्ति का उदाहरण
बिहार सरकार द्वारा जीविका परियोजना के तहत थरुहट क्षेत्र में 6378 स्वयं सहायता समूह (SHGs) का गठन हुआ है, जिनसे 77,871 परिवारों को आजीविका, वित्तीय साक्षरता और उद्यमशीलता से जोड़ा गया है। ये समूह महिलाएँ चला रही हैं, जो अब केवल गृहणी नहीं बल्कि वित्तीय निर्णयकर्ता और उद्यमी भी हैं।
बुनियादी ढांचे का विस्तार
सरकार ने हरनाटांड़ पंचायत (बगहा-2) में स्वरोजगार हेतु बुनकर कार्यशाला-सह-आवासीय भवन का निर्माण कराया है, जो पूर्ण रूप से क्रियाशील है। इसके अलावा मिश्रौली में एक हथकरघा भवन की स्वीकृति दी गई है। ये केंद्र न केवल उत्पादन स्थल हैं, बल्कि प्रशिक्षण, नवाचार और समुदाय-निर्माण के केंद्र बन चुके हैं।
संस्कृति, कारीगरी और उद्यमिता का त्रिकोणीय विकास मॉडल
थारू समुदाय के लिए लागू योजनाएं एक त्रिकोणीय मॉडल प्रस्तुत करती हैं:
संस्कृति: लोक कला, पारंपरिक शिल्प और रीति-रिवाजों को संरक्षित किया जा रहा है।
कारीगरी: परंपरागत कौशल को आधुनिक तकनीकों और बाज़ार के साथ जोड़ा गया है।
उद्यमिता: स्वयं सहायता समूहों, SHGs और ट्राइफेड के माध्यम से थारू महिलाएँ और पुरुष अब स्वरोजगार के नए स्रोत गढ़ रहे हैं।
यह समग्र मॉडल थारू समुदाय को आत्मनिर्भरता, सम्मानजनक जीवन और समावेशी विकास की ओर ले जा रहा है।
Source : PIB
Q1. थारू समुदाय कहाँ स्थित है और क्यों चर्चा में है?
उत्तर: थारू समुदाय मुख्यतः बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और नेपाल की तराई बेल्ट में निवास करता है। हाल ही में बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में इस समुदाय के आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उत्थान हेतु केंद्र और राज्य सरकार द्वारा कई योजनाएं लागू की गई हैं।
Q2. थारू कारीगरों को सरकार द्वारा क्या पहचान दी गई है?
उत्तर: 646 थारू कारीगरों को हस्तशिल्प पहचान पत्र प्रदान किए गए हैं, जिससे उन्हें आधिकारिक पहचान, प्रशिक्षण, राष्ट्रीय मेलों में भागीदारी और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर अपने उत्पाद बेचने की सुविधा मिली है।
Q3. थारू उत्पादकों को बाज़ार तक कैसे पहुँच मिल रही है?
उत्तर: ट्राइफेड (TRIFED) और प्रधानमंत्री जनजातीय विकास मिशन (PMJVM) के माध्यम से 56 थारू उत्पादक/आपूर्तिकर्ता सूचीबद्ध किए गए हैं, जो 405 परिवारों को जोड़कर सीधी आमदनी और विपणन मंच प्रदान कर रहे हैं।
Q4. कौन-कौन सी केंद्रीय योजनाएं थारू कारीगरों को लाभ पहुँचा रही हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम (NHDP)
हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना (CHCDS)
इन योजनाओं से कारीगरों को कौशल विकास, विपणन, अवसंरचना, तकनीकी सहयोग और अनुसंधान का लाभ मिल रहा है।
Q5. थरुहट क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के लिए क्या प्रयास किए गए हैं?
उत्तर:
बगहा-2 के हरनाटांड़ पंचायत में बुनकर कार्यशाला-सह-आवासीय भवन का निर्माण
मिश्रौली में हथकरघा भवन की स्वीकृति
ये केंद्र उत्पादन, प्रशिक्षण और विपणन का आधार बन चुके हैं।