मैं ही बनूंगा कर्नाटक का मुख्यमंत्री”: सिद्धारमैया का दावा, डीके शिवकुमार ने जताई निराशा
कर्नाटक की राजनीति में एक बार फिर उथल-पुथल मच गई है। कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर जारी लंबे समय से चल रही तनातनी अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मंगलवार को स्पष्ट रूप से कह दिया कि “मैं ही मुख्यमंत्री रहूंगा”, और अब किसी तरह की अटकलें बेमानी हैं। इस बयान के बाद प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार का भी दर्द छलक पड़ा और उन्होंने कहा कि अब कोई विकल्प नहीं बचा है।
यह बयान न केवल कांग्रेस की आंतरिक राजनीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी नेतृत्व क्या रणनीति अपना सकता है।
🔍 सिद्धारमैया की साफगोई: “मुख्यमंत्री मैं ही हूं और रहूंगा”
पूर्व में कई बार अपनी भूमिका को लेकर चुप्पी साधे रखने वाले सिद्धारमैया ने इस बार कड़ा और सीधा रुख अपनाया। बेंगलुरु में मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा:
“मैं अभी मुख्यमंत्री हूं और आने वाले चुनाव तक मुख्यमंत्री ही रहूंगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। पार्टी नेतृत्व भी पूरी तरह से मेरे साथ है।”
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब राज्य में विपक्ष और यहां तक कि कांग्रेस के अंदर से भी यह सवाल उठने लगे थे कि 2023 में बनी कांग्रेस सरकार में दो शीर्ष नेताओं के बीच सत्ता का संतुलन कैसे रखा जाएगा।
🧠 कांग्रेस की ‘पावर-शेयरिंग डील’ और विवाद
2023 में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए दो बड़े दावेदार सामने आए—सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस आलाकमान ने उस वक्त पावर-शेयरिंग फॉर्मूला तैयार किया था जिसमें सिद्धारमैया को पहले 2.5 वर्षों तक मुख्यमंत्री और उसके बाद डीके शिवकुमार को जिम्मेदारी देने की बात कही गई थी।
लेकिन अब, जब सिद्धारमैया ने सीधा-सीधा कह दिया है कि वे 2028 तक यानी पूरा कार्यकाल मुख्यमंत्री बने रहेंगे, तो इससे डीके शिवकुमार के खेमे में बेचैनी साफ झलक रही है।
🤐 डीके शिवकुमार की चुप्पी टूटी: “अब कोई विकल्प नहीं”
सिद्धारमैया के बयान के बाद मीडिया ने जब डीके शिवकुमार से प्रतिक्रिया मांगी तो उन्होंने संयम रखते हुए कहा:
“पार्टी ने जो निर्णय लिया है, वही अंतिम है। मेरे पास अब कोई विकल्प नहीं है। मैं पार्टी के आदेशों का पालन करूंगा।”
हालांकि उनके चेहरे पर निराशा साफ दिखाई दी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह बयान ‘स्वीकृति’ से ज़्यादा ‘समर्पण’ जैसा था।
📊 जनता की राय और पार्टी में फूट की आशंका
कर्नाटक में कांग्रेस के लिए यह आंतरिक विवाद जनता के बीच गलत संदेश भी भेज सकता है। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा:
“कांग्रेस की कथनी और करनी में फर्क है। चुनाव से पहले कहे गए वादे अब हवा में उड़ रहे हैं।”
कई कांग्रेस विधायक भी अंदरखाने इस बात से असंतुष्ट हैं कि पार्टी के भीतर वरिष्ठ नेताओं के बीच की खींचतान से शासन की प्राथमिकताएं प्रभावित हो रही हैं।
🏛️ क्या राहुल गांधी और सोनिया गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ेगा?
राज्य के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह स्थिति और बिगड़ती है तो राहुल गांधी और सोनिया गांधी को बीच में आकर कोई बड़ा फैसला लेना पड़ सकता है। हालांकि पार्टी के शीर्ष सूत्रों का कहना है कि आलाकमान फिलहाल सिद्धारमैया के नेतृत्व से संतुष्ट है क्योंकि वे प्रशासनिक अनुभव और लोकप्रियता—दोनों में मजबूत हैं।
⚖️ सिद्धारमैया बनाम शिवकुमार: कौन है अधिक मजबूत?
मापदंड | सिद्धारमैया | डीके शिवकुमार |
---|---|---|
अनुभव | 2 बार मुख्यमंत्री, बजट विशेषज्ञ | पार्टी संगठन में पकड़ |
जनाधार | दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग में लोकप्रिय | वोक्कालिगा समुदाय में मजबूत पकड़ |
दिल्ली से संबंध | राहुल गांधी के करीबी | सोनिया गांधी के पुराने भरोसेमंद |
संगठन क्षमता | प्रशासन में दक्ष | चुनाव जीतने के मास्टरमाइंड |
इन आंकड़ों से साफ है कि दोनों नेताओं के पास अपनी-अपनी ताकत है, लेकिन फिलहाल सिद्धारमैया का कद बड़ा दिख रहा है।
🗳️ आगे की रणनीति: 2028 चुनाव और कांग्रेस का भविष्य
यदि सिद्धारमैया 2028 तक मुख्यमंत्री बने रहते हैं, तो पार्टी के भीतर के कई युवा नेताओं की महत्वाकांक्षा पर भी पानी फिर सकता है। डीके शिवकुमार को किनारे करना पार्टी के लिए आने वाले चुनावों में राजनीतिक नुकसान भी ला सकता है, खासकर वोक्कालिगा वोट बैंक में।
इसलिए कांग्रेस को आगे बढ़ने से पहले इस मुद्दे को राजनीतिक कुशलता से संभालना होगा।
🔥 सत्ता की गहराई में छिपी दरारें: कांग्रेस में ‘दो सत्ता केंद्र’
कर्नाटक कांग्रेस सरकार में सत्ता के दो ध्रुव — सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार कर्नाटक के आम किसानों को राहत: सरकार घटे भाव की करेगी भरपाई, मिलेगा मूल्य अंतर भुगतान— किसी भी दिन खुले टकराव की स्थिति में पहुंच सकते हैं। यह असामान्यता तब और बढ़ जाती है जब एक ओर सिद्धारमैया खुद को जनता का नेता बताते हैं और दूसरी ओर शिवकुमार खुद को पार्टी का सेनापति। दोनों की भूमिका अलग-अलग है, लेकिन महत्व बराबर।
राज्य में कांग्रेस के विधायक भी दो गुटों में बंटे हुए नज़र आते हैं — एक गुट खुलकर सिद्धारमैया के समर्थन में है तो दूसरा शिवकुमार को न्याय दिलाने की वकालत कर रहा है।
🗺️ क्षेत्रीय समीकरण भी बना रहे हैं दबाव
कर्नाटक की राजनीति जातिगत समीकरणों से गहराई से जुड़ी है। सिद्धारमैया ओबीसी (कुर्बा समुदाय) से आते हैं जबकि डीके शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से।
दोनों का जनाधार अलग-अलग है — जहां सिद्धारमैया राज्य के ग्रामीण और अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में लोकप्रिय हैं, वहीं शिवकुमार मांड्या, रामनगर और कनकपुरा जैसी सीटों पर गहरी पकड़ रखते हैं।
📉 डीके शिवकुमार की चुनौती: समर्पण या साजिश का शिकार?
डीके शिवकुमार कई बार सार्वजनिक मंचों पर “त्याग और बलिदान” की बात करते आए हैं। उन्होंने 2023 के चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से लेकर संगठन को मजबूत करने तक बड़ा योगदान दिया था।
उनके समर्थकों का आरोप है कि चुनाव जिताने वाले को साइडलाइन करना पार्टी के लिए गलत मिसाल बनाता है।
एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया:
“अगर पार्टी ने वादा किया था कि 2.5 साल बाद सीएम बदला जाएगा, तो उस पर अमल होना चाहिए। वरना पार्टी के अंदर विश्वास खत्म हो जाएगा।”
🗳️ 2028 की तैयारी पर असर
यदि इस विवाद का समाधान नहीं निकाला गया, तो पार्टी की 2028 के विधानसभा चुनावों की तैयारी बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। भाजपा पहले ही “Double Engine” और “Congress का आंतरिक झगड़ा” जैसे नैरेटिव तैयार कर रही है।
शिवकुमार के समर्थकों में यह भी डर है कि अगर उन्हें 2026 तक भी मौका नहीं दिया गया, तो वे पार्टी से अलग होकर अपनी अलग राह चुन सकते हैं। अटकलें तो यहां तक लगाई जा रही हैं कि वे JDS या बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं — हालांकि उन्होंने अब तक ऐसी किसी संभावना से इनकार किया है।
🧭 संभावित समाधान: क्या रास्ता बचा है?
कांग्रेस के वरिष्ठ रणनीतिकारों के मुताबिक, इस विवाद का समाधान सिर्फ तीन तरीकों से संभव है:
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पावर-शेयरिंग समझौते का पुनः मूल्यांकन – यानी मध्य में सत्ता परिवर्तन की स्पष्ट घोषणा।
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डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री से बढ़ाकर केंद्रीय भूमिका देना, जैसे कि कांग्रेस वर्किंग कमेटी में उपाध्यक्ष।
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आंतरिक चुनाव या जनमत के आधार पर अगला सीएम तय करना।
इन विकल्पों पर मंथन तो चल रहा है, लेकिन कोई भी निर्णय सिद्धारमैया की ‘सीएम कुर्सी’ से चिपके रहने की मंशा को बदल नहीं सकता — यही सबसे बड़ी चुनौती है।
🧩 निष्कर्ष: कांग्रेस के लिए अग्निपरीक्षा
सिद्धारमैया द्वारा “मैं ही सीएम रहूंगा” जैसे खुले दावे और डीके शिवकुमार की “अब कोई विकल्प नहीं” वाली स्वीकारोक्ति ने कांग्रेस के अंदरूनी हालात को जगजाहिर कर दिया है।
यह स्पष्ट है कि पार्टी अब अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रही है। यदि समय रहते हल नहीं निकाला गया, तो यह विवाद सिर्फ दो नेताओं की लड़ाई नहीं रह जाएगा, बल्कि पार्टी के भविष्य को तय करने वाला कारक बन जाएगा।