Correspondent: GT Express | 19.07.2025 | Ghar Tak Express |
भारतीय वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट की जैव विविधता से समृद्ध पर्वत श्रृंखला से लाइकेन की एक बिल्कुल नई और अब तक अज्ञात प्रजाति की खोज की है, जिसे एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका नाम दिया गया है। यह खोज सहजीव जीवन रूपों की जटिलता, अनुकूलनशीलता और जैविक सहयोग की गहराई को समझने की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जा रही है। पुणे स्थित एमएसीएस-अघारकर अनुसंधान संस्थान (ARIPune) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में हुए इस अध्ययन को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के सहयोग से अंजाम दिया गया।
लाइकेन वास्तव में एक अद्वितीय जीववैज्ञानिक संरचना हैं — यह एक नहीं, बल्कि दो या दो से अधिक जीवों के सहजीवन से बनता है: एक कवक जो संरक्षण और संरचना प्रदान करता है, और एक फोटोबायोन्ट (हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरियम), जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा ऊर्जा प्रदान करता है। पारिस्थितिकी में इनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है — ये मिट्टी निर्माण, कीट पोषण और प्रदूषण के जैव-संकेतक के रूप में कार्य करते हैं।
नई खोजी गई प्रजाति, क्रस्टोज़ लाइकेन श्रेणी की है, जिसमें इफ्यूज़-शैली के सोरेडिया (प्रजनन संरचनाएं) और एक दुर्लभ रासायनिक यौगिक — नॉरस्टिक्टिक एसिड पाया गया है, जिसे एलोग्राफा वंश की अन्य प्रजातियों में बहुत कम देखा गया है। वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति का विश्लेषण मॉर्फोलॉजिकल, केमिकल और आधुनिक आणविक जैवप्रौद्योगिकी विधियों से किया, जिसमें इसकी जीन संरचना, विकासीय स्थिति और शैवाल सहजीवी (एक ट्रेंटेपोहलिया प्रजाति) का भी निर्धारण किया गया।
डीएनए अनुक्रमण के लिए उपयोग किए गए जीन मार्कर — mtSSU, LSU, RPB2 (कवक के लिए) और ITS (शैवाल के लिए) से यह पुष्टि हुई कि ए. इफ्यूसोरेडिका, एलोग्राफा ज़ैंथोस्पोरा से जातिवृत्तीय रूप से घनिष्ठ है। इस खोज ने ग्राफिडेसी परिवार में प्रजातीय सीमाओं, विकासवादी रिश्तों और रूप-सादृश्यता की चुनौतियों पर भी वैज्ञानिक बहस को जन्म दिया है, क्योंकि इसकी आकृति ग्राफिस ग्लौसेसेंस से मिलती-जुलती है, जबकि डीएनए स्तर पर यह भिन्न है।
इस अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्रमुख वैज्ञानिकों — एंसिल पी.ए., राजेशकुमार के.सी., श्रुति ओ.पी. और भारती ओ. शर्मा ने कहा,
“यह भारत में खोजी गई एलोग्राफा वंश की पहली ऐसी प्रजाति है जिसे आणविक डेटा के आधार पर पुष्टि मिली है। यह न केवल लाइकेन के वर्गीकरण में मील का पत्थर है, बल्कि उष्णकटिबंधीय शैवालीय विविधता की हमारी समझ को भी समृद्ध करता है।”
उन्होंने आगे कहा,
“यह शोध सहजीवन की उस सूक्ष्म जैविक समझ को भी स्पष्ट करता है जिसमें स्थानीय रूप से अनुकूलित फोटोबायोन्ट की अहम भूमिका होती है।”
राष्ट्रीय स्तर पर महत्व
यह अध्ययन न केवल भारतीय जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह वैश्विक लाइकेन अनुसंधान में भारत के योगदान को भी मजबूत करता है। शोधकर्ताओं ने इस खोज को राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (ANRF) द्वारा प्रायोजित एक बहु-वर्षीय परियोजना के तहत अंजाम दिया है, जिसका उद्देश्य पश्चिमी घाट के ग्राफिडेसी और पार्मेलियासी परिवार के लाइकेन के शैवाल और कवक भागीदारों के सहजीवन को उजागर करना है।
पर्यावरणीय और पारिस्थितिक महत्त्व
लाइकेन के पारिस्थितिक लाभ:
मिट्टी निर्माण प्रक्रिया में सहायक
हवा की गुणवत्ता का संवेदनशील जैव-संकेतक
कीटों और पक्षियों के लिए भोजन स्रोत
चट्टानों और पेड़ों पर परतदार विकास से पारिस्थितिक स्थायित्व
पश्चिमी घाट की भूमिका:
भारत के चार जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक
अनगिनत स्थानिक प्रजातियों का घर
निरंतर अध्ययन और संरक्षण की आवश्यकता
नाम:
एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका — इस नई खोजी गई प्रजाति का नाम इसके विशेष गुणों पर आधारित है। “एलोग्राफा” इसके वंश (genus) का नाम है, जबकि “इफ्यूसोरेडिका” शब्द से संकेत मिलता है ।
प्रजाति वर्ग:
यह क्रस्टोज़ लाइकेन (Crustose Lichen) वर्ग की सदस्य है। यह प्रकार का लाइकेन सतह पर एक परत के रूप में चिपक कर उगता है — जैसे कि चट्टानें, पेड़ों की छाल, या मिट्टी। इसे सतह से अलग करना मुश्किल होता है क्योंकि यह जड़ जैसी संरचना से नहीं जुड़ा होता बल्कि पूरी सतह से चिपका होता है। क्रस्टोज़ लाइकेन पर्यावरणीय गुणवत्ता के अच्छे संकेतक माने जाते हैं।
रासायनिक गुण:
इस प्रजाति में नॉरस्टिक्टिक एसिड (norstictic acid) नामक एक जैव-रासायनिक यौगिक पाया गया है। यह यौगिक लाइकेन के कुछ ही प्रकारों में मिलता है और इसे एक दुर्लभ रासायनिक संकेतक माना जाता है। इसकी उपस्थिति से यह प्रजाति वैज्ञानिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बन जाती है क्योंकि यह पर्यावरणीय और जैव-रासायनिक अनुसंधान में उपयोगी हो सकता है।
शैवाल सहजीवी:
एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका, ट्रेंटेपोहलिया (Trentepohlia) नामक हरे शैवाल के साथ सहजीवन में पाई जाती है। इस सहजीवन में शैवाल सूर्य की रोशनी से भोजन (प्रकाश-संश्लेषण) करता है और कवक को ऊर्जा प्रदान करता है, जबकि कवक उसे ढांचे और सुरक्षा प्रदान करता है। यह संयोजन लाइकेन को कठोर परिस्थितियों में भी जीवित रहने में सक्षम बनाता है।
विकासीय समानता:
उनकी वंशावली एक-दूसरे से जुड़ी है। वैज्ञानिक भाषा में इसे फाइलोजेनेटिक क्लोजनेस (Phylogenetic Closeness) कहते हैं।
रूपात्मक समानता:
भले ही आनुवंशिक दृष्टि से यह प्रजाति अलग हो, लेकिन इसका बाहरी रूप ग्राफिस ग्लौसेसेंस (Graphis glaucescens) नामक एक अन्य प्रजाति से मिलता-जुलता है। इस प्रकार की समानता को मॉर्फोलॉजिकल मिमिक्री कहा जाता है
डीएनए मार्कर:
इस प्रजाति की पहचान और वर्गीकरण में कई उन्नत आणविक तकनीकों का उपयोग किया गया, जिनमें डीएनए अनुक्रमण (DNA sequencing) शामिल है। इसके लिए निम्नलिखित जीन मार्करों का प्रयोग किया गया:
RPB2 (RNA polymerase II subunit) – विकासीय अध्ययन में सहायक।
ITS (Internal Transcribed Spacer) – शैवाल सहजीवी की पहचान और वर्गीकरण के लिए उपयुक्त।
इन सभी मार्करों से यह सुनिश्चित हुआ कि यह एक नई प्रजाति है, और इससे सहजीवी शैवाल का भी निर्धारण किया गया।
भारत में स्थिति:
एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका भारत में खोजी गई एलोग्राफा वंश की 53वीं प्रजाति है। खास बात यह है कि यह प्रजाति विशेष रूप से पश्चिमी घाट क्षेत्र में पाई गई 22वीं एलोग्राफा प्रजाति है। यह भारत में इस वंश की पहली ऐसी प्रजाति है जिसकी पहचान आणविक आंकड़ों (मॉलेक्यूलर डेटा) के आधार पर की गई है। यह खोज भारतीय जैवविज्ञान में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
Source : PIB
Q1. एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका क्या है?
उत्तर:
एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका एक नई खोजी गई क्रस्टोज़ लाइकेन प्रजाति है, जिसे भारतीय वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाट से खोजा है। इसका नाम इसकी विशेष फैलावदार सोरेडिया संरचना पर आधारित है।
Q2. इस प्रजाति को कहाँ खोजा गया है?
उत्तर:
इसे भारत के पश्चिमी घाट में खोजा गया है, जो जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र है और कई स्थानिक (endemic) प्रजातियों का घर है।
Q3. एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका की विशेषता क्या है?
उत्तर:
इसमें दुर्लभ रासायनिक यौगिक नॉरस्टिक्टिक एसिड, एक सहजीवी शैवाल ट्रेंटेपोहलिया, और फैलावदार इफ्यूज़ सोरेडिया पाई जाती है। यह पहली भारतीय एलोग्राफा प्रजाति है जिसे मॉलेक्यूलर डेटा से सत्यापित किया गया है।
Q4. लाइकेन क्या होते हैं?
उत्तर:
लाइकेन दो या दो से अधिक जीवों का सहजीवी संघटन होते हैं — एक कवक (जो ढांचा बनाता है) और एक फोटोबायोन्ट जैसे हरित शैवाल या सायनोबैक्टीरिया (जो प्रकाश संश्लेषण से भोजन बनाता है)। वे पर्यावरण संकेतक के रूप में भी कार्य करते हैं।
Q5. एलोग्राफा इफ्यूसोरेडिका का डीएनए विश्लेषण कैसे किया गया?
उत्तर:
इसका डीएनए विश्लेषण mtSSU, LSU, RPB2 (कवक के लिए) और ITS (शैवाल के लिए) जैसे जीन मार्करों से किया गया, जिससे इसकी जातीय स्थिति और सहजीवी शैवाल की पहचान हो सकी।