ओम बिरला

ओम बिरला का प्रौद्योगिकी-संचालित शासन पर ज़ोर: प्राक्कलन समिति सम्मेलन में पारदर्शिता और लोकतंत्र को लेकर अहम संदेश

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नई दिल्ली, जून 2025 – लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने हाल ही में आयोजित प्राक्कलन समितियों (Estimates Committees) के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए सशक्त लोकतंत्र, पारदर्शिता और प्रौद्योगिकी-संचालित शासन को भारत की प्रगति का आधार बताया। यह सम्मेलन संसद भवन परिसर में आयोजित हुआ, जिसमें विभिन्न राज्यों की विधानसभाओं और संसद की समितियों के सदस्यों ने भाग लिया।

अपने संबोधन में ओम बिरला ने कहा कि लोकतंत्र को प्रभावी और उत्तरदायी बनाने के लिए संसदीय समितियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि प्राक्कलन समितियाँ न केवल सरकार के खर्च और कार्यक्रमों की निगरानी करती हैं, बल्कि नीतिगत सुझाव देकर शासन को अधिक पारदर्शी और परिणामोन्मुख बनाती हैं।

🔹 प्रौद्योगिकी के उपयोग पर विशेष बल

ओम बिरला ने पारंपरिक कार्यप्रणालियों से आगे बढ़कर डिजिटल तकनीकों के अधिकतम उपयोग की आवश्यकता जताई। उन्होंने कहा कि “डिजिटल इंडिया” अभियान के तहत पारदर्शिता, जवाबदेही और जनता तक सीधी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए ई-गवर्नेंस और डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता है कि प्राक्कलन समितियाँ विभिन्न मंत्रालयों और योजनाओं के कार्यान्वयन की वास्तविक समय निगरानी करें और तकनीक की मदद से आंकड़ों के आधार पर विश्लेषण कर सकें। इससे योजनाएं ज्यादा कुशलता से लागू होंगी और संसाधनों की बर्बादी रोकी जा सकेगी।

🔹 सशक्त लोकतंत्र के लिए जागरूक प्रतिनिधि

बिरला ने यह भी कहा कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब जन प्रतिनिधि प्रशिक्षित, सूचित और सशक्त होंगे। उन्होंने सांसदों और विधायकों से आह्वान किया कि वे नीति, बजट और विकास कार्यक्रमों की गहराई से समीक्षा करें और जरूरत पड़ने पर क्रियान्वयन में बदलाव के लिए सुझाव दें।

🔹 समिति प्रणाली को और प्रभावशाली बनाने पर जोर

लोकसभा अध्यक्ष ने इस अवसर पर यह भी कहा कि संसदीय समिति प्रणाली को और अधिक सक्रिय, पारदर्शी और आधुनिक बनाने की दिशा में काम किया जा रहा है। उन्होंने सुझाव दिया कि समितियों को जनता के साथ संवाद स्थापित करने और उनकी राय को शामिल करने के लिए ओपन हियरिंग जैसी प्रक्रियाओं को अपनाना चाहिए।

भारत की संसद और राज्यों/संघ शासित प्रदेशों की विधानसभाओं की प्राक्कलन समितियों के अध्यक्षों का दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन 24 जून को महाराष्ट्र विधान भवन, मुंबई में संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक सम्मेलन का उद्घाटन 23 जून को लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला ने किया, जबकि समापन सत्र को भी उन्होंने संबोधित किया। सम्मेलन का आयोजन संसदीय प्राक्कलन समिति की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में किया गया, जिसका उद्देश्य देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं की समितियों के बीच संवाद, समन्वय और सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान सुनिश्चित करना था।

इस राष्ट्रीय मंच पर लोकसभा अध्यक्ष ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की भूमिका, वित्तीय पारदर्शिता, प्रौद्योगिकी-संचालित शासन और जनकल्याण पर केंद्रित व्यय सुनिश्चित करने जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी सोच साझा की। उन्होंने प्राक्कलन समितियों को “सरकार का विरोध करने वाली नहीं, बल्कि सहयोग और सुधार का माध्यम” बताया।


प्राक्कलन समितियों की भूमिका: निगरानी से सुधार की ओर

समापन सत्र को संबोधित करते हुए श्री बिरला ने स्पष्ट किया कि प्राक्कलन समितियों का कार्य केवल सरकार के बजटीय व्यय की निगरानी करना भर नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि प्रत्येक खर्च जनकल्याण, सामाजिक न्याय और विकास की प्राथमिकताओं के अनुरूप हो। उन्होंने कहा कि “प्राक्कलन समितियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक रुपया देश की जनता के हित में उपयोग हो, और व्यय की प्रक्रिया में पारदर्शिता व जवाबदेही कायम रहे।”

श्री बिरला ने जोर देकर कहा कि “इन समितियों को कार्यपालिका और विधायिका के बीच सेतु के रूप में कार्य करना चाहिए, ताकि नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन हो और लोकतंत्र अधिक जवाबदेह बने।” उन्होंने इसे सुधारात्मक और रचनात्मक प्रणाली के रूप में देखा, न कि टकराव की।


प्रौद्योगिकी का उपयोग: एआई और डेटा एनालिटिक्स की भूमिका

लोकसभा अध्यक्ष ने प्रौद्योगिकी-संचालित शासन प्रणाली को आज के दौर की आवश्यकता बताया। उन्होंने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डेटा एनालिटिक्स और डिजिटल निगरानी जैसे आधुनिक उपकरणों के माध्यम से व्यय की निगरानी अधिक सटीक, प्रभावशाली और निष्पक्ष बन सकती है।

श्री बिरला ने समिति सदस्यों से अपील की कि वे इन तकनीकों को अपनाकर, जनता से प्राप्त फीडबैक और जमीनी आंकड़ों के आधार पर अपनी रिपोर्टों को मजबूत बनाएं। इससे न केवल योजनाओं की कार्यक्षमता का मूल्यांकन बेहतर होगा, बल्कि यह सरकार के लिए नीतिगत मार्गदर्शन का आधार भी बनेगा।


केंद्र और राज्यों के बीच संस्थागत समन्वय की आवश्यकता

सम्मेलन में श्री बिरला ने एक राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित समिति ढांचे की वकालत की, जिसमें संसद और राज्यों की विधानसभाओं की समितियों के बीच जानकारी और अनुभव साझा करने का तंत्र स्थापित हो। उन्होंने कहा कि “संविधान की भावना के अनुरूप यह आवश्यक है कि केंद्र और राज्यों की विधायी संस्थाएँ मिलकर लोकतांत्रिक जवाबदेही और पारदर्शिता के साझा लक्ष्यों को आगे बढ़ाएं।”

उन्होंने इस प्रकार के संवाद को एक संविधानिक साझेदारी करार दिया, जिसका उद्देश्य न केवल शासन को जवाबदेह बनाना है, बल्कि उसे जन-केंद्रित और प्रभावी बनाना भी है।


बजट के प्रत्येक व्यय की प्रभावशीलता की जांच

श्री बिरला ने समिति सदस्यों से कहा कि वे व्यय की निगरानी को मात्र आंकड़ों के विश्लेषण तक सीमित न रखें, बल्कि यह देखें कि जमीनी स्तर पर योजनाओं का प्रभाव कैसा है। उन्होंने कहा कि “प्रत्येक योजना और खर्च का मूल्यांकन इस आधार पर हो कि क्या वह वास्तव में आमजन को लाभ पहुँचा रहा है या नहीं।”

उन्होंने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) जैसी योजनाओं का उदाहरण देते हुए कहा कि इसने भ्रष्टाचार कम करने और लाभार्थियों तक सहायता सीधे पहुँचाने में क्रांतिकारी भूमिका निभाई है, जिसे अन्य योजनाओं में भी लागू किया जाना चाहिए।


समितियों को संसाधन और प्रशिक्षण से सशक्त करने का आह्वान

लोकसभा अध्यक्ष ने समितियों को आवश्यक डिजिटल उपकरण, विश्लेषणात्मक संसाधन और मानव संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि सदस्यों के प्रशिक्षण कार्यक्रम, संसदीय अनुसंधान संस्थान के सहयोग से आयोजित किए जाने चाहिए, ताकि उनकी तकनीकी समझ और विषय विशेषज्ञता बेहतर हो।

साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि समितियों को अपने कार्य में समयबद्धता, तथ्यपरकता और निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए, ताकि उनकी सिफारिशों को कार्यपालिका गंभीरता से ले।


सम्मेलन में पारित छह सर्वसम्मत प्रस्ताव

सम्मेलन के दौरान छह महत्वपूर्ण प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए गए, जो प्राक्कलन समितियों को एक दूरदर्शी और व्यावहारिक रोडमैप प्रदान करते हैं। इन प्रस्तावों के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:

  1. संसद और राज्यों की समितियों के बीच संवाद और सहयोग तंत्र स्थापित करना

  2. बजटीय व्यय की निगरानी के लिए प्रौद्योगिकी का व्यापक उपयोग

  3. प्रत्येक योजना की प्रासंगिकता और लाभार्थिता सुनिश्चित करने पर ज़ोर

  4. समितियों को तकनीकी रूप से सशक्त बनाने के लिए प्रशिक्षण और संसाधन

  5. समितियों की कार्यप्रणाली में जनसहभागिता और पारदर्शिता बढ़ाना

  6. विशेषाधिकार, याचिका और महिला सशक्तिकरण समितियों के लिए भी अलग सम्मेलन आयोजित करना


अन्य गणमान्य अतिथियों का योगदान

समापन सत्र में महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री सी.पी. राधाकृष्णन, राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश, लोकसभा की प्राक्कलन समिति के अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल, महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष श्री राम शिंदे, विधानसभा अध्यक्ष श्री राहुल नार्वेकर, विधानसभा उपाध्यक्ष श्री अन्ना बनसोडे, और विपक्ष के नेता श्री अंबादास दानवे जैसे कई महत्वपूर्ण नेताओं ने हिस्सा लिया।

उन्होंने अपने संबोधनों में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती, सार्वजनिक वित्त की पारदर्शिता, और वित्तीय जवाबदेही की अनिवार्यता पर बल दिया।


सम्मेलन की थीम और प्रभाव

सम्मेलन का विषय था:
“प्रशासन में दक्षता और मितव्ययिता सुनिश्चित करने के लिए बजट अनुमानों की प्रभावी निगरानी और समीक्षा में प्राक्कलन समिति की भूमिका”

यह विषय समय की माँग को ध्यान में रखते हुए चुना गया, क्योंकि आज भारत जैसे विशाल लोकतंत्र में संसाधनों की उचित योजना और व्यय तथा शासन की जवाबदेही को सुनिश्चित करना नितांत आवश्यक है। यह सम्मेलन भारत की संसदीय प्रणाली में वित्तीय निगरानी और जनजवाबदेही को और सशक्त करने की दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हुआ।


निष्कर्ष

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अगुवाई में संपन्न हुआ यह सम्मेलन संसदीय समितियों की भूमिका को नई ऊर्जा, दिशा और तकनीकी समर्थता देने का मंच बना। यहाँ लिए गए निर्णय, पारित प्रस्ताव और व्यक्त किए गए विचार आने वाले वर्षों में भारत की शासन प्रणाली को और अधिक उत्तरदायी, पारदर्शी और जन-उन्मुख बनाने में सहायक सिद्ध होंगे।

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