भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम प्रतीक, भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, वर्ष का वह पावन पर्व है जब संपूर्ण देश, विशेष रूप से ओडिशा का पुरी शहर, भक्ति के महासागर में डूब जाता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक पहुँचने वाली यह यात्रा भारत ही नहीं, अपितु विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र है।
इतिहास और पौराणिक पृष्ठभूमि:
भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता भगवान बलभद्र तथा बहन देवी सुभद्रा की यह यात्रा त्रेतायुग और द्वापर युग की पुरातन कथाओं से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जब अपनी जन्मभूमि मथुरा से द्वारका गए, तब उनकी माताजी यशोदा उनसे मिलने की इच्छा करती थीं। पुरी की रथ यात्रा उसी भाव को प्रतिबिंबित करती है, जब भगवान अपने भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, यह यात्रा ‘गुंडिचा यात्रा’ भी कहलाती है क्योंकि रथों का गंतव्य गुंडिचा मंदिर होता है। यह स्थान भगवान की मौसी का घर माना जाता है। नौ दिनों तक भगवान, बलभद्र और सुभद्रा वहीं निवास करते हैं और फिर वापस ‘बहुदा यात्रा’ के माध्यम से श्रीमंदिर लौटते हैं।
रथ यात्रा की शुरुआत:
2025 में रथ यात्रा का शुभारंभ 27 जून को हुआ। रथ यात्रा का दिन पुरी के लिए एक असाधारण उत्सव का प्रतीक बन जाता है। यह दिन अशाढ़ शुक्ल द्वितीया को पड़ता है, जिसे ‘रथ यात्रा दिवस’ कहा जाता है। आज के दिन सुबह से ही श्रीमंदिर में विशेष अनुष्ठान और पूजन की प्रक्रियाएँ आरंभ हो जाती हैं। भगवान के महाप्रसाद ‘आबड़ा’, ‘खिचड़ी’, ‘दही-पाखाल’ इत्यादि का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात तीनों रथों को ‘सिंह द्वार’ के समक्ष लाया जाता है।
रथों का निर्माण और नाम:
तीनों रथों का निर्माण हर वर्ष नये सिरे से पारंपरिक विधियों के अनुसार होता है। ये रथ पूरे लकड़ी के होते हैं और इन्हें विशेष प्रकार की लकड़ी जैसे ‘फासी’, ‘फनसा’, ‘आसना’ आदि से बनाया जाता है। हर रथ की अपनी विशेष पहचान होती है:
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नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ):
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ऊँचाई: 45 फीट
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पहियों की संख्या: 16
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रथ का रंग: लाल और पीला
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रथ का ध्वज: गरुड़ ध्वज
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रथ का सारथी: दारुका
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रथ की रक्षा करने वाले देवता: गरुड़
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तलध्वज (भगवान बलभद्र का रथ):
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ऊँचाई: 44 फीट
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पहियों की संख्या: 14
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रथ का रंग: लाल और हरा
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रथ का ध्वज: ताल ध्वज
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सारथी: मातली
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रक्षक देवता: शेष नाग
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दर्पदलन (देवी सुभद्रा का रथ):
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ऊँचाई: 43 फीट
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पहियों की संख्या: 12
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रथ का रंग: काला और लाल
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ध्वज: पद्म ध्वज
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सारथी: अर्जुन
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रक्षक देवता: जय-विजय
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यात्रा की प्रक्रिया और कार्यक्रम:
रथ यात्रा दोपहर 3:30 से 4 बजे के बीच आरंभ होती है। सबसे पहले देवी सुभद्रा का रथ ‘दर्पदलन’ खींचा जाता है, उसके बाद भगवान बलभद्र का ‘तलध्वज’ और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ ‘नंदीघोष’ निकाला जाता है। यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है।
तीनों रथ करीब तीन किलोमीटर लंबे ‘बड़ा डंडा’ (पुरी की ग्रांड रोड) से होते हुए गुंडिचा मंदिर तक पहुँचते हैं। भक्तगण रथों की रस्सी खींचते हैं और यह मान्यता है कि जो श्रद्धालु रथ की रस्सी खींचता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। रथों के रुकने पर हजारों की भीड़ उन्हें स्पर्श करने और पूजा करने उमड़ पड़ती है।
अनुष्ठान और सांस्कृतिक आयाम:
यात्रा के दौरान अनेक पारंपरिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं, जैसे:
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पहंडी: यह अनुष्ठान तब होता है जब भगवानों को सिंह द्वार से रथों तक लाया जाता है। यह अत्यंत मनोरम दृश्य होता है जिसमें देवताओं को झूलते हुए लाया जाता है।
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चेरापहारा: ओडिशा के गजपति महाराज स्वयं रथों की सफाई करते हैं और उन्हें झाड़ू लगाते हैं। यह परंपरा बताती है कि भगवान के समक्ष सभी समान हैं, चाहे राजा हो या रंक।
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महाप्रसाद वितरण: भगवान को चढ़ाया गया महाप्रसाद जनसाधारण में वितरित किया जाता है। लाखों श्रद्धालु इस महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए आतुर रहते हैं।
सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्थाएं:
पुरी श्रीमंदिर प्रशासन तथा ओडिशा राज्य सरकार द्वारा इस वर्ष रथ यात्रा के लिए व्यापक सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं। लगभग 13 लाख श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना को ध्यान में रखते हुए पुलिस, NDRF, अग्निशमन दल, मेडिकल टीम, ड्रोन सर्विलांस, CCTVs और आपातकालीन नियंत्रण केंद्र सक्रिय रूप से तैनात किए गए हैं।
भक्तों की सुविधा के लिए विशेष ट्रैफिक प्लान, पेयजल स्टॉल, मोबाइल टॉयलेट्स, स्वास्थ्य शिविर तथा निशुल्क भोजन केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। प्रशासन की प्राथमिकता श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करना है।
अंतरराष्ट्रीय श्रद्धालुओं का आकर्षण:
रथ यात्रा अब केवल भारत तक सीमित नहीं रह गई है। अमेरिका, यूके, रूस, फ्रांस, जापान, नेपाल सहित कई देशों से भक्तगण पुरी में इस पावन यात्रा में भाग लेने आते हैं। इस्कॉन संस्था द्वारा विश्व के विभिन्न देशों में रथ यात्राएं आयोजित की जाती हैं, लेकिन पुरी की रथ यात्रा का कोई मुकाबला नहीं है।
यात्रा का समापन और बहुदा यात्रा:
गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों के विश्राम के पश्चात भगवान की वापसी यात्रा ‘बहुदा यात्रा’ 5 जुलाई को आयोजित की जाएगी। उसी मार्ग से रथ वापस श्रीमंदिर की ओर रवाना होंगे। इस दिन भी उतना ही उल्लास और भक्ति का माहौल रहता है जितना रथ यात्रा के दिन।
समापन पर ‘सुनाबेशा’:
जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा श्रीमंदिर में लौटते हैं, तब उन्हें स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है। इस भव्य दर्शन को ‘सुनाबेशा’ कहा जाता है और यह दर्शन लाखों भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह वर्ष का एकमात्र अवसर होता है जब भगवानों को स्वर्णालंकार में देखा जा सकता है।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव:
पुरी की रथ यात्रा ओडिशा की अर्थव्यवस्था को बड़ा योगदान देती है। इस दौरान होटल, परिवहन, स्थानीय व्यापार, हस्तशिल्प, पूजा-सामग्री, खाद्य उत्पाद आदि क्षेत्रों में व्यापार बढ़ता है। लाखों लोगों को रोजगार मिलता है और सामाजिक समरसता का भाव भी प्रबल होता है।
निष्कर्ष:
पुरी की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं है, यह भारतीय संस्कृति, समर्पण, सेवा, और सामाजिक समानता का उत्सव है। भगवान जगन्नाथ की यह वार्षिक यात्रा हमें सिखाती है कि ईश्वर सबके हैं, और जब वे रथ पर सवार होकर भक्तों के बीच आते हैं, तो आस्था, श्रद्धा और प्रेम की अद्वितीय मिसाल बन जाती है। रथ यात्रा के माध्यम से हम सबको यह संदेश मिलता है कि अध्यात्म और संस्कृति का मिलन जीवन को दिव्यता की ओर अग्रसर करता है।
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