प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को परम पावन 14वें दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिवस के अवसर पर शुभकामनाएं दीं और उनके अच्छे स्वास्थ्य व दीर्घायु की कामना की। प्रधानमंत्री ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “मैं 1.4 अरब भारतीयों के साथ परम पावन दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूं। वह प्रेम, करुणा, धैर्य और नैतिक अनुशासन के स्थायी प्रतीक रहे हैं। उनका संदेश सभी धर्मों में सम्मान और प्रशंसा की प्रेरणा रहा है। हम उनकी अच्छी सेहत और लंबी उम्र की प्रार्थना करते हैं।”
इस शुभकामना संदेश को वैश्विक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण संकेत माना जा रहा है, विशेषकर ऐसे समय में जब भारत और चीन के बीच संबंधों में तनाव बना हुआ है और दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर नई कूटनीतिक खींचतान शुरू हो चुकी है।
दलाई लामा, जिनका पूरा नाम तेनज़िन ग्यात्सो है, वर्ष 1935 में तिब्बत में जन्मे थे और वह 14वें दलाई लामा के रूप में तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे बड़े धार्मिक नेता हैं। 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया, तो दलाई लामा भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हुए और तभी से वह हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार के साथ रहते आ रहे हैं। भारत ने न केवल उन्हें शरण दी, बल्कि उनकी शांतिपूर्ण और मानवीय विचारधारा को भी महत्व दिया।
दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार (1989), गांधी शांति पुरस्कार, यूएस कांग्रेस गोल्ड मेडल जैसे कई अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हैं। वे विश्व में शांति, करुणा और सहिष्णुता के सबसे प्रमुख चेहरों में गिने जाते हैं।
दलाई लामा को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के तुरंत बाद चीन की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने भारत को चेतावनी देते हुए कहा, “भारत को अपने शब्दों और कार्यों में सावधानी बरतनी चाहिए और चीन के अंदरूनी मामलों, विशेषकर तिब्बत से जुड़े विषयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।”
बीजिंग ने लंबे समय से दलाई लामा को “विभाजनकारी तत्व” और “राजनीतिक साधन” के तौर पर देखा है। चीन को किसी भी अंतरराष्ट्रीय नेता का दलाई लामा से मिलना या उनका सम्मान करना नागवार गुजरता है। इस बार प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनके 90वें जन्मदिन पर सार्वजनिक बधाई दिए जाने से चीन की प्रतिक्रिया और भी तीव्र हो गई है।
यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को सार्वजनिक रूप से जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हों। वर्ष 2021 में, जब उन्होंने दलाई लामा को उनके 86वें जन्मदिन पर फोन कर बधाई दी थी और इस जानकारी को सार्वजनिक किया गया था, तो यह भारत की विदेश नीति में एक बड़ा परिवर्तन माना गया था। इससे पहले की सरकारें अक्सर चीन को नाराज़ करने से बचने के लिए दलाई लामा से दूरी बनाए रखती थीं।
मोदी सरकार के इस रवैये को भारत की ‘नरम कूटनीति’ से हटकर एक ‘सशक्त सांस्कृतिक कूटनीति’ के रूप में देखा जा रहा है, जो तिब्बती समुदाय के अधिकारों के समर्थन और चीन की एकतरफा दबाव नीति का प्रतिकार करता है।
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर विवाद फिर से सुर्खियों में है। बीजिंग यह स्पष्ट कर चुका है कि दलाई लामा की परंपरा को चीन नियंत्रित करेगा और उनका उत्तराधिकारी तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुरूप नहीं, बल्कि चीन द्वारा नियुक्त होगा। वहीं, दलाई लामा ने हाल ही में कहा कि उनकी परंपरा जारी रहेगी और उत्तराधिकारी का चयन पूरी तरह तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार ही होगा।
उन्होंने अपने एक बयान में स्पष्ट किया था, “मेरे मरने के बाद दलाई लामा की परंपरा बंद नहीं होगी। उत्तराधिकारी की पहचान तिब्बती जनभावना, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार की जाएगी, न कि किसी सरकार द्वारा थोपे गए निर्णय से।”
दलाई लामा के 90वें जन्मदिन पर अमेरिका के विदेश मंत्री ने उन्हें “बेजुबानों की आवाज़” कहकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा, “दलाई लामा ना केवल तिब्बत के लोगों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए करुणा और नैतिक नेतृत्व के प्रतीक हैं।”
अमेरिका और कई यूरोपीय देशों ने भी समय-समय पर तिब्बत में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए आवाज़ उठाई है। दलाई लामा की शिक्षाएं विश्व भर में फैली हैं और उनके अनुयायियों की संख्या करोड़ों में है।
प्रधानमंत्री की इस पहल से यह संकेत गया है कि भारत अब तिब्बत के मुद्दे पर खुलकर बोलने से पीछे नहीं हटेगा। हाल के वर्षों में भारत और चीन के बीच गलवान संघर्ष, सीमा विवाद, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा और कूटनीतिक गतिरोध जैसी स्थितियों ने दोनों देशों के रिश्तों को जटिल बना दिया है। ऐसे में दलाई लामा को लेकर भारत का रुख न केवल एक नैतिक समर्थन है, बल्कि यह क्षेत्रीय संतुलन में भारत की सुदृढ़ भूमिका का भी प्रतीक बन रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब “रणनीतिक चुप्पी” की नीति से आगे बढ़ते हुए “रणनीतिक स्पष्टता” की ओर बढ़ रहा है।
धर्मशाला स्थित तिब्बती निर्वासित सरकार और स्थानीय लोगों ने दलाई लामा के 90वें जन्मदिन को बेहद धूमधाम से मनाया। रंग-बिरंगे झंडों, पारंपरिक नृत्य, और प्रार्थनाओं के बीच लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके दीर्घायु जीवन की प्रार्थना की।
तिब्बती समुदाय के एक वरिष्ठ भिक्षु ने कहा, “दलाई लामा हमारे लिए केवल धार्मिक नेता नहीं, बल्कि एक जीवन पथदर्शक हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेश हमारे मनोबल को ऊंचा करता है और यह बताता है कि भारत अब तिब्बती संस्कृति और स्वतंत्रता की आवाज़ को दबने नहीं देगा।”
दलाई लामा का धार्मिक नाम “तेनज़िन ग्यात्सो” है, जिसका अर्थ होता है — “ज्ञान का महासागर”। यह नाम उन्हें तब दिया गया जब उन्हें दलाई लामा के 14वें अवतार के रूप में मान्यता मिली।
उनका जन्म नाम था ल्हामो थोनडुप। वे एक साधारण किसान परिवार से थे, और उनकी जीवन यात्रा एक छोटे से तिब्बती गांव से विश्व मंच तक की एक असाधारण गाथा बन गई।
दलाई लामा का जन्म ताक्तसर गांव में हुआ, जो कि आमदो क्षेत्र में आता है (आज का किंगहाई प्रांत, चीन)। यह गांव तिब्बत के उत्तर-पूर्वी भाग में स्थित है। वे एक गरीब मगर धार्मिक रूप से समर्पित किसान परिवार में जन्मे थे।
सिर्फ दो वर्ष की आयु में, उन्हें 13वें दलाई लामा के पुनर्जन्म के रूप में पहचाना गया। तिब्बती बौद्ध परंपरा के अनुसार, उच्चतम लामा की मृत्यु के बाद उनके पुनर्जन्म की खोज की जाती है।
कई रहस्यमयी संकेतों, सपनों और अनुष्ठानों के बाद, बौद्ध भिक्षुओं ने ल्हामो थोनडुप को खोजा और उन्हें 14वें दलाई लामा के रूप में मान्यता दी। इसके बाद उन्हें ल्हासा ले जाया गया जहाँ उन्होंने पोताला पैलेस में शिक्षा प्राप्त की।
दलाई लामा गेलुग परंपरा के प्रमुख होते हैं, जो तिब्बती बौद्ध धर्म की चार मुख्य परंपराओं में से एक है।
1940 में, पांच वर्ष की आयु में तेनज़िन ग्यात्सो को औपचारिक रूप से इस पद पर स्थापित किया गया।
1950, जब वे केवल 15 वर्ष के थे, उन्होंने तिब्बत की धार्मिक और राजनीतिक सत्ता ग्रहण की, क्योंकि चीन की सेना तिब्बत में प्रवेश कर चुकी थी।
वे शांति से समाधान निकालने के पक्षधर रहे, और चीन के साथ संवाद और मध्य मार्ग (Middle Way) की नीति अपनाई, ताकि तिब्बत को स्वायत्तता मिले।
10 मार्च 1959, को ल्हासा में चीनी शासन के खिलाफ एक विशाल विद्रोह हुआ। इसके बाद दलाई लामा और उनके हजारों अनुयायियों के लिए तिब्बत में रहना असंभव हो गया।
चुपचाप, रातोंरात और भारी खतरे के बीच, वे हिमालय के कठिन रास्तों से होते हुए भारत पहुँचे।
भारत सरकार, विशेष रूप से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, ने उन्हें और उनके अनुयायियों को शरण दी।
उन्होंने भारत में रहकर “Central Tibetan Administration (CTA)” नामक निर्वासित सरकार की स्थापना की, जिसका मुख्यालय धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में स्थित है।
दलाई लामा पिछले 65 वर्षों से भारत में रह रहे हैं। धर्मशाला का मैक्लॉडगंज क्षेत्र अब विश्वभर के बौद्ध अनुयायियों और तिब्बती प्रवासियों के लिए धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र बन चुका है।
इसे “लिटिल ल्हासा” कहा जाता है।
यहीं से वे विश्व में शांति, अहिंसा, धार्मिक सहिष्णुता और करुणा का संदेश फैलाते हैं।
उन्हें यह पुरस्कार तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए अहिंसात्मक संघर्ष, संवाद की पहल और करुणा आधारित नेतृत्व के लिए प्रदान किया गया।
वे पहले तिब्बती और पहले बौद्ध भिक्षु हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिला।
यह अमेरिका की सर्वोच्च नागरिक सम्मान श्रेणियों में से एक है।
अमेरिकी संसद ने उन्हें “मानवता के प्रति अनुकरणीय सेवा” के लिए सम्मानित किया।
भारत सरकार द्वारा अहिंसा, करुणा और मानव अधिकारों की रक्षा हेतु यह पुरस्कार प्रदान किया गया।
टेंपलटन पुरस्कार (2012 – धर्म और विज्ञान के समन्वय के लिए)
लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
रैमॉन मैगसेसे अवार्ड
दुनिया के 80+ विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट उपाधियाँ
दलाई लामा ने महात्मा गांधी से प्रेरणा ली।
उनका मानना है कि किसी भी राजनीतिक या सामाजिक संघर्ष का समाधान हिंसा से नहीं, संवाद, सहिष्णुता और करुणा से निकाला जाना चाहिए।
बौद्ध धर्म के अनुसार, करुणा सबसे बड़ा धर्म है।
दलाई लामा ने बार-बार दोहराया कि “हमारा धर्म, इंसानियत है” — यानी जाति, धर्म से परे सभी के प्रति दया भाव।
वे सभी धर्मों को समान रूप से मान्यता देते हैं और अंतर-धार्मिक संवाद को बढ़ावा देते हैं।
उन्होंने ईसाई, इस्लाम, हिन्दू, यहूदी और सिख नेताओं से संवाद स्थापित किए और विश्व धर्म संसदों में हिस्सा लिया।
वे मानते हैं कि बाहरी विश्व में शांति तभी संभव है जब व्यक्ति के भीतर शांति हो।
ध्यान, आत्मनिरीक्षण, और साधना के माध्यम से मन की स्थिरता और शुद्धता पर बल देते हैं।
दलाई लामा ने कई प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
The Art of Happiness – सुख की कला, मानसिक संतुलन और जीवन दर्शन पर आधारित
Freedom in Exile – उनकी आत्मकथा
The Universe in a Single Atom – विज्ञान और आध्यात्मिकता का संगम
Beyond Religion – एक वैश्विक नैतिकता की आवश्यकता
उन्होंने न्यूरोसाइंस, क्वांटम फिज़िक्स, माइंडफुलनेस और मनोविज्ञान जैसे विषयों पर वैज्ञानिकों के साथ संवाद किया।
वे मानते हैं कि धर्म और विज्ञान विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं।
Mind and Life Institute के सहयोग से उन्होंने बौद्ध धर्म और विज्ञान के बीच संवाद को बढ़ावा दिया।
दलाई लामा आज न केवल तिब्बती लोगों के नेता हैं, बल्कि वैश्विक मानवता के शांति दूत हैं।
उन्हें संयुक्त राष्ट्र, विश्व धर्म महासभा, पर्यावरण संगठनों और विश्वविद्यालयों से आमंत्रित किया जाता है।
वे किसी भी राजनीतिक पद से 2011 में स्वयं हट गए, ताकि तिब्बती नेतृत्व लोकतांत्रिक हो।
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