निषादों का इतिहास

निषादों का इतिहास: वेद, पुराण, रामायण से स्वतंत्रता संग्राम तक की यात्रा

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निषादों का इतिहास

भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन सभ्यता और जातीय संरचना का एक महत्वपूर्ण भाग है। निषाद एक प्राचीन जनजाति थी, जिनका उल्लेख वैदिक साहित्य, रामायण, महाभारत और बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। इनका इतिहास आदिवासी, वनवासी और मल्लाह समुदायों से जुड़ा हुआ है, और ये आम तौर पर जल, जंगल और नदी से जुड़े कार्यों में पारंगत माने जाते थे।

1. वेदों और पुराणों में निषादों का इतिहास क्या है जाने

  • ऋग्वेद में निषादों का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, लेकिन बाद के वैदिक ग्रंथों और ब्राह्मण ग्रंथों में इनका ज़िक्र मिलता है।

  • मनुस्मृति में निषादों को एक मिश्रित जाति के रूप में वर्णित किया गया है, जिन्हें ब्राह्मण पुरुष और शूद्र स्त्री की संतान बताया गया है। हालांकि यह वर्ण व्यवस्था का प्रतिबिंब है, न कि निषादों की ऐतिहासिक उत्पत्ति।

  • पुराणों में निषादों को वन्य जीवन जीने वाली जाति कहा गया है, जिनका निवास पर्वतीय और जंगलों में होता था।

2. रामायण में निषादों का इतिहास पढ़ें

  • निषादराज गुह का उल्लेख प्रमुखता से आता है। वे अयोध्या के पास श्रिंगवेरपुर के राजा थे और श्रीराम के परम मित्र थे। उन्होंने श्रीराम को वनवास के समय गंगा पार कराई थी।

  • यह मित्रता सामाजिक समरसता और जातीय विभाजन से ऊपर उठकर एकता का प्रतीक मानी जाती है।

3.  निषादों का इतिहास महाभारत में जाने

  • महाभारत में एकलव्य नामक निषाद योद्धा का उल्लेख मिलता है, जो महान धनुर्धर था और गुरु द्रोणाचार्य से प्रेरणा लेकर स्वयं अभ्यास करके धनुर्विद्या में निपुण हुआ था।

  • द्रोणाचार्य द्वारा उसका अंगूठा मांग लेना सामाजिक भेदभाव का प्रतीक बन चुका है।

4. निषादों का इतिहास बौद्ध ग्रंथों में कैसे लिखा गया है

  • बौद्ध काल में निषादों को शूद्र या अछूत नहीं माना गया। कई निषाद बौद्ध धर्म के अनुयायी बने। बौद्ध ग्रंथों में उनके वनवासी और शिकारी जीवन का उल्लेख है।

5. मध्यकाल और आधुनिक में निषादों का इतिहास

  • समय के साथ निषादों की पहचान मल्लाह, केवट, धीवर, निषाद, मांझी, बिंद, आदि नामों से हुई, जिनका मुख्य कार्य नाव चलाना, मछली पकड़ना और नदी से जुड़े व्यवसाय रहा।

  • वर्तमान में निषाद जाति उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों में पाई जाती है।

6. आधुनिक राजनीति में निषाद समुदाय

  • आज के समय में निषाद समुदाय सामाजिक और राजनीतिक रूप से संगठित हो रहा है।

  • निषाद पार्टी (NISHAD Party) जैसी राजनीतिक पार्टियां इस समुदाय के अधिकारों और प्रतिनिधित्व की बात करती हैं।

🔹 वेदों में निषाद की भूमिका

1. ऋग्वेद (सर्वप्राचीन वेद)

  • निषादों का ऋग्वेद में प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन जनजातीय समाज का वर्णन मिलता है जिसमें आर्य और अनार्य (जैसे दास, दस्यु आदि) का ज़िक्र होता है।

  • कुछ विद्वान मानते हैं कि निषाद “अनार्य” जातियों में आते थे जिन्हें वैदिक आर्य जातियों ने ‘बाहरी’ माना।

2. ब्राह्मण ग्रंथ और उपनिषद

  • ऐतरेय ब्राह्मण में निषादों को पर्वतीय और वनवासी जाति बताया गया है जो वेदों के अनुयायी नहीं थे।

  • इन्हें ‘निम्न वर्ग’ या ‘अधम जातियों’ में रखा गया, लेकिन कुछ स्थानों पर इनका धार्मिक कार्यों में उल्लेख भी हुआ है — विशेष रूप से संगीत और नृत्य कला में इनकी सहभागिता।

3. मनुस्मृति और धर्मसूत्र

  • मनुस्मृति में निषादों को एक “वर्णसंकर जाति” बताया गया है — “ब्राह्मण पुरुष और शूद्र स्त्री की संतान”।

  • हालांकि यह जातिगत सिद्धांत बाद की वर्ण व्यवस्था का हिस्सा था और ऐतिहासिक सच्चाई से अधिक ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण को दर्शाता है।


🔹 पुराणों में निषादों के इतिहास की भूमिका

पुराणों में निषादों का ज़िक्र अधिक स्पष्ट और विविध रूपों में मिलता है।

1. सृजन की कथाएं

  • विष्णु पुराण और अन्य पुराणों के अनुसार, निषाद प्रजापति कश्यप और उनकी पत्नी से उत्पन्न हुए।

  • मात्स्य पुराण में निषादों को वन में रहने वाले, शिकार करने वाले और कंद-मूल खाने वाले लोग बताया गया है।

2. निषादराज गुह (रामायण की पौराणिक गाथा भी पुराणों में समाहित)

  • निषादराज गुह, भगवान राम के परम मित्र थे।

  • उन्होंने राम, सीता और लक्ष्मण को गंगा पार करवाई और उन्हें आदर सहित अपने राज्य श्रिंगवेरपुर में ठहराया।

  • यह कथा सामाजिक समरसता का प्रतीक है कि किस तरह एक “वनवासी” राजा, एक “राजकुल” के राजा का घनिष्ठ मित्र था।

3. निषाद और कला

  • कुछ पुराणों में निषादों को संगीत और नृत्य कला में निपुण बताया गया है।

  • माना जाता है कि नाट्यशास्त्र के विकास में निषादों जैसे जनजातीय समूहों की पारंपरिक कलाओं का योगदान रहा।


🔹 निष्कर्ष

विषय निषादों की भूमिका
वेद जनजातीय, अनार्य समूह; सामाजिक रूप से बहिष्कृत
ब्राह्मण ग्रंथ पर्वतीय, वनवासी; निम्न जातियों में वर्गीकृत
धर्मशास्त्र वर्णसंकर जाति के रूप में उल्लेख
पुराण मानव सृजन की शाखा; राम के मित्र; सांस्कृतिक योगदानकर्ता

 

🔹 1. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

  • 1857 की क्रांति में नदी पार कराने, ब्रिटिश सैनिकों की आवाजाही रोकने, और स्वदेशी विद्रोहियों की मदद करने में निषादों (विशेषकर मल्लाहों) ने एक रणनीतिक भूमिका निभाई।

  • कई निषादों ने स्वतंत्रता सेनानियों को गुप्त रूप से नाव से सुरक्षित पार कराया, जिससे ब्रिटिश शासन को बड़ी रणनीतिक बाधा हुई।

  • इस सहयोग के कारण कई निषादों को ब्रिटिश सरकार द्वारा दंडित किया गया, जमीनें छीनी गईं, और उन्हें “अपराधी जनजाति” की श्रेणी में डाल दिया गया।


🔹 2. ‘अपराधी जनजाति अधिनियम’ (Criminal Tribes Act – 1871)

  • निषादों सहित कई वनवासी और आदिवासी समुदायों को ब्रिटिश सरकार ने “जन्म से अपराधी” घोषित किया।

  • Criminal Tribes Act, 1871 के अंतर्गत निषादों पर संदेह की दृष्टि से निगरानी रखी गई।

  • उन्हें गाँवों से दूर रखा गया, पहचान चिह्न पहनने पड़े, और कई बार बिना अपराध के दंडित किया गया।

  • इसका उद्देश्य ब्रिटिश सत्ता के लिए असुविधाजनक समुदायों को दबाना था।


🔹 3. नदियों और जलमार्गों पर नियंत्रण कैसा था निषादों का इतिहास

  • निषाद समुदाय की पारंपरिक आजीविका मछली पालन, नाव चलाना, जल परिवहन आदि थी।

  • ब्रिटिश शासन ने जलमार्गों पर नियंत्रण किया, टैक्स लगाए और कई निषादों को आजीविका से वंचित कर दिया।

  • इस वजह से कई निषाद समुदाय गरीबी, उत्पीड़न और विस्थापन का शिकार हुए।


🔹 4. स्वदेशी आंदोलन और गांधी युग में सहभागिता

  • 1920 के दशक के बाद, गांधीजी के नेतृत्व में निषाद समुदाय के कई लोग नमक सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में जुड़े।

  • ग्रामीण इलाकों में निषादों ने ब्रिटिश शासन का सामाजिक बहिष्कार किया, खासकर नदी परिवहन और नाव सेवा रोककर।


🔹 5. स्थानीय नायकों की भूमिका और निषादों का इतिहास

कई क्षेत्रीय निषाद नेताओं ने ब्रिटिश सत्ता का विरोध किया, जिनका उल्लेख लोकगीतों और स्थानीय इतिहास में मिलता है:

क्षेत्र नेता/समूह कार्य
उत्तर प्रदेश मल्लाह समुदाय स्वतंत्रता सेनानियों को गुप्त पार कराना
बिहार बिंद/केवट समुदाय अंग्रेजों के विरुद्ध ग्रामस्तरीय विद्रोह
मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ वनवासी निषाद जंगलों में विद्रोही शिविरों को सहयोग

🔹 निष्कर्ष:

पहलू विवरण
प्रतिरोध 1857 में सहायता, नावों से मदद, जलमार्ग अवरुद्ध
दमन अपराधी जनजाति अधिनियम, रोजगार छीनना
भागीदारी स्वदेशी, असहयोग, भारत छोड़ो आंदोलन
प्रभाव सामाजिक-आर्थिक हानि, परंतु ऐतिहासिक गर्व का स्रोत

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