नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में 2 जुलाई 2025 को आयोजित राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यशाला ने भारत की ग्रामीण स्वच्छता क्रांति के अगले अध्याय की रूपरेखा प्रस्तुत की। इस कार्यशाला का आयोजन पेयजल एवं स्वच्छता विभाग (डीडीडब्ल्यूएस), जल शक्ति मंत्रालय और यूनिसेफ इंडिया द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। इस उच्चस्तरीय संवाद मंच में राज्य मिशन निदेशक, सीनियर सरकारी अधिकारी, पंचायती राज मंत्रालय के प्रतिनिधि, विकास भागीदार, तथा स्वच्छता क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हुए। उद्देश्य था – स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G) की अब तक की प्रगति का आकलन और भविष्य की रणनीति का निर्धारण।
स्वच्छता सम्मान, समानता और स्थिरता का प्रतीक
डीडीडब्ल्यूएस के सचिव श्री अशोक केके मीना ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा:
“स्वच्छता केवल बुनियादी ढांचे का मामला नहीं है, यह सम्मान, समानता और स्थिरता से जुड़ा प्रश्न है। SBM-G का अगला चरण हमारी सामूहिक गति को बनाए रखते हुए स्थानीय नेतृत्व की भागीदारी से ही सफल होगा।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि स्वच्छता सेवाओं की डिज़ाइन अब जलवायु परिवर्तन की चुनौती को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए ताकि किसी को भी पीछे न छोड़ा जाए।
यूनिसेफ का दृष्टिकोण लचीलापन और समावेशिता की ओर बढ़ता भारत
यूनिसेफ की प्रमुख, वाश एवं सीसीईएस, करीना माल्क्ज़वेस्का ने कार्यशाला के स्वागत भाषण में कहा:
“अब आवश्यकता है सुरक्षित और समावेशी स्वच्छता से लचीले और भविष्य के लिए तैयार स्वच्छता की ओर बढ़ने की। यह परिवर्तन ही टिकाऊ ग्रामीण विकास के व्यापक लक्ष्यों की पूर्ति करेगा।”
उनकी इस टिप्पणी ने स्पष्ट कर दिया कि SBM-G का अगला चरण केवल शौचालय निर्माण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वह प्रणालीगत सुधारों और समावेशी सेवाओं पर केंद्रित रहेगा।
जलवायु-अनुकूल स्वच्छता दो नए प्रोटोकॉल जारी
इस कार्यशाला में दो प्रमुख दस्तावेज जारी किए गए, जो ग्रामीण स्वच्छता के भविष्य की दिशा तय करेंगे:
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ग्रामीण भारत में सफाई कर्मचारियों की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएं (SOPs):
यह दस्तावेज ग्रामीण सफाईकर्मियों के लिए एक सुरक्षित और गरिमामय कार्य वातावरण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसमें कार्यस्थल की सुरक्षा, उपकरणों का उपयोग, स्वास्थ्य जांच और कार्यदिशा से जुड़ी गाइडलाइन शामिल हैं। -
जलवायु अनुकूल स्वच्छता तकनीकी डिजाइन और सेवाएं विकसित करने के लिए प्रोटोकॉल:
यह प्रोटोकॉल ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे स्वच्छता ढांचों के निर्माण को बढ़ावा देता है जो बाढ़, सूखा, जलभराव और अत्यधिक वर्षा जैसी जलवायु आपदाओं के प्रति लचीले हों। इसमें जल संरक्षण, अपशिष्ट पुनर्चक्रण, ग्रे वाटर प्रबंधन जैसी तकनीकों को प्राथमिकता दी गई है।
पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका ग्राम पंचायतें बनीं केंद्र बिंदु
कार्यशाला के विशेष सत्र की अध्यक्षता पंचायती राज मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव श्री सुशील कुमार लोहानी ने की। उन्होंने कहा:
“ग्राम पंचायतें स्वच्छता परिणामों को बनाए रखने और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में केंद्रीय भूमिका निभा रही हैं।”
उनके अनुसार:
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2.5 लाख+ पंचायतें अब ई-ग्राम स्वराज पोर्टल के माध्यम से थीम आधारित विकास योजनाएं बना रही हैं।
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पंचायतें उन्नति सूचकांक के माध्यम से अपने प्रदर्शन पर नजर रखती हैं।
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अपशिष्ट प्रबंधन, ग्रे वाटर पुनः उपयोग, और हरित स्वच्छता बुनियादी ढांचे के माध्यम से पंचायती राज संस्थाएं स्थानीय समाधान देने में अग्रणी बन रही हैं।
सर्वश्रेष्ठ पंचायतों की प्रेरणादायक प्रस्तुतियां
कार्यशाला में कुछ पुरस्कार विजेता पंचायतों ने भी भाग लिया, जिन्होंने अपने क्षेत्रों में 100% अपशिष्ट पृथक्करण, घरेलू खाद उत्पादन, पर्यावरण के अनुकूल प्रथाएं, और सुरक्षित स्वच्छता सुनिश्चित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं।
इन प्रस्तुतियों में यह उजागर किया गया कि कैसे ग्राम पंचायतें जन भागीदारी, स्थानीय नेतृत्व, और नवाचार के सहारे बड़े परिवर्तन ला सकती हैं।
SBM-G की प्रगति एक दशक की यात्रा का लेखा-जोखा
स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण की अब तक की उपलब्धियों और शेष चुनौतियों पर विस्तृत समीक्षा की गई। मुख्य बिंदु:
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80% लक्षित गांवों ने ODF Plus मॉडल का दर्जा प्राप्त किया है, लेकिन इनमें से मात्र 54% का सत्यापन हुआ है।
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ग्रे वाटर प्रबंधन का कवरेज राष्ट्रीय स्तर पर 91% तक पहुंच गया है।
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20+ राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों में यह कवरेज 95% से ऊपर है।
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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन कवरेज 87% है, जबकि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में 70% ब्लॉक स्तर पर कवरेज हासिल की गई है।
हालांकि कई क्षेत्रों में कार्यक्षमता को और बेहतर बनाने की आवश्यकता बताई गई।
जलवायु जोखिमों के संदर्भ में लचीली प्रणालियों की आवश्यकता
कार्यशाला में यह भी माना गया कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ रहा है, ग्रामीण स्वच्छता प्रणालियों में लचीलापन अब एक आवश्यकता बन गया है।
अतिरिक्त सचिव और मिशन निदेशक, जेजेएम और एसबीएम-जी श्री कमल किशोर सोन ने कहा:
“स्वच्छता में गुणवत्ता और गति दोनों का संतुलन जरूरी है। कार्यशाला एक चिंतन का मंच है, जहां हम आकलन करते हैं कि अब तक क्या किया और आगे क्या करना है।”
उन्होंने राज्यों को आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन, वित्तीय संसाधन और नीतिगत सहयोग प्रदान करने की प्रतिबद्धता दोहराई।
व्यवहार परिवर्तन और अभिसरण की ओर
कार्यशाला में यह भी स्पष्ट किया गया कि अगले चरण का फोकस केवल निर्माण तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि व्यवहार परिवर्तन (Behavior Change) और अभिसरण (Convergence) पर आधारित होगा।
तीन प्रमुख तत्वों पर जोर दिया गया:
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सामुदायिक भागीदारी – ताकि हर घर, हर व्यक्ति तक स्वच्छता सेवाएं पहुंचें।
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अंतर-विभागीय सहयोग – स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण जैसे विभागों के साथ अभिसरण।
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निगरानी और जवाबदेही तंत्र – ताकि कार्यों की नियमित समीक्षा हो और सुधार के उपाय किए जा सकें।
मिशन के अगले चरण की घोषणा SBM-G Phase II+
कार्यशाला में सरकार द्वारा यह संकेत दिया गया कि SBM-G का अगला चरण एक अधिक व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण पर आधारित होगा। इसकी प्रमुख विशेषताएं होंगी:
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स्थायित्व (Sustainability): सुनिश्चित करना कि सभी बुनियादी ढांचे समय के साथ कार्यशील रहें।
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स्थानीय नवाचार (Local Innovations): भौगोलिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुसार समाधान।
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प्रौद्योगिकी का उपयोग (Tech Integration): रीयल टाइम मॉनिटरिंग, GIS आधारित मैपिंग आदि का उपयोग।
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नवीन वित्त पोषण तंत्र (Innovative Financing): CSR, PPP और सामुदायिक योगदान के माध्यम से संसाधन जुटाना।
निष्कर्ष
2025 में SBM-G के एक दशक पूरा होने पर यह कार्यशाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव सिद्ध हुई। इसमें न केवल पिछली उपलब्धियों का मूल्यांकन किया गया, बल्कि यह भी तय किया गया कि कैसे हम एक स्वच्छ, स्वास्थ्यवर्धक, और न्यायसंगत ग्रामीण भारत की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।
यह स्पष्ट हुआ कि भारत की स्वच्छता यात्रा अब मात्र शौचालय निर्माण तक सीमित नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक आंदोलन, विकास की धुरी, और जलवायु लचीलापन की रीढ़ बन चुकी है।
प्रमुख उद्धरणों का संकलन
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श्री अशोक केके मीना (सचिव, डीडीडब्ल्यूएस):
“स्वच्छता अब सम्मान और समानता का विषय है, और इसे जलवायु चुनौतियों के अनुरूप बनाना हमारा उत्तरदायित्व है।”
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करीना माल्क्ज़वेस्का (यूनिसेफ इंडिया):
“स्वच्छता की यात्रा अब लचीली, समावेशी और भविष्य के लिए तैयार मॉडल की ओर बढ़नी चाहिए।”
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श्री सुशील कुमार लोहानी (अतिरिक्त सचिव, पंचायती राज):
“पंचायतें अब स्वच्छता नेतृत्व की धुरी बन रही हैं – निर्णयों और परिणामों दोनों के स्तर पर।”