वैज्ञानिक खेती

किसानों की आय बढ़ाने को लेकर सितुहिया में वैज्ञानिक खेती पर गोष्ठी आयोजित

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🌾 वैज्ञानिक खेती से बढ़ेगी किसानों की आय: मोतचक के सितुहिया गाँव में किसान गोष्ठी संपन्न


📍 कार्यक्रम की मुख्य झलकियाँ:

मोतचक विकासखंड के ग्राम पंचायत सितुहिया में गुरुवार को भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के अंतर्गत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र एवं क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र कुशीनगर द्वारा कृषि संकल्प अभियान के तहत सितुहिया, तेलगवा और पुरैनी गांव में भव्य किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया।


👥 विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति:

  • मुख्य अतिथि: क्षेत्रीय विधायक श्री मोहन वर्मा

  • विशिष्ट अतिथि: ब्लॉक प्रमुख मोतचक श्रीमती अर्चना सिंह

  • कार्यक्रम अध्यक्षता: ग्राम प्रधान प्रतिनिधि गौतम सिंह

  • संचालन: मौसम विशेषज्ञ श्रीमती श्रुति सिंह, कृषि विज्ञान केंद्र, सरगटिया


🌿 गोष्ठी का उद्देश्य:

गोष्ठी का मुख्य उद्देश्य किसानों को वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने के प्रति जागरूक करना और उनकी आय को दोगुना करने के उपायों को साझा करना रहा।

🔬 वैज्ञानिकों के प्रमुख सुझाव:

  • डॉ. अरुण प्रताप सिंह (विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र) ने वैज्ञानिक खेती को अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि उन्नत बीज, मृदा परीक्षण, और समय पर उर्वरक व कीटनाशकों के उपयोग से फसल की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।

  • धान की खेती में ड्रम सीडर तकनीक का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि इससे श्रम और लागत दोनों की बचत होती है।

  • प्राकृतिक खेती और देशी गाय पालन को बढ़ावा देने की बात की गई ताकि रासायनिक खादों के दुष्प्रभाव से बचा जा सके।


🌾 जैविक खेती और मौसमी फसलें:

डॉ. गंगा राज आर (वैज्ञानिक, क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान, सरगटिया) ने जैविक रोग प्रबंधन की जानकारी दी और बताया कि मौसम के अनुसार कीटनाशकों के सही प्रयोग से पैदावार में वृद्धि की जा सकती है। साथ ही, उन्होंने किसानों को मौसमी सब्जियों की खेती के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे लघु अवधि में बेहतर लाभ प्राप्त हो सकता है।


🗣️ विधायक मोहन वर्मा का संबोधन:

अपने संबोधन में विधायक श्री मोहन वर्मा ने कहा,

“हमारी सरकार किसानों के सम्मान और आय वृद्धि के लिए प्रतिबद्ध है। किसान सम्मान निधि जैसी योजनाएं किसानों की मदद कर रही हैं। आप सभी वैज्ञानिकों की सलाह को अपनाएं और वैज्ञानिक पद्धति से खेती कर अपनी आमदनी दोगुनी करें।”


🌳 पर्यावरण दिवस पर पौधारोपण:

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर कंपोजिट विद्यालय परिसर में पीपल और बरगद के पौधे रोपे गए। इसमें मुख्य अतिथि, विशिष्ट अतिथि और स्थानीय अधिकारी उपस्थित रहे।


👥 प्रमुख उपस्थितजन:

  • मोतीलाल कुशवाहा (विशेषज्ञ)

  • विनय प्रताप सिंह (एडीओ-एग्रीकल्चर)

  • जयगोविंद सिंह (एटीएम)

  • निरंजन सिंह (बीटीएम)

  • जितेंद्र सिंह (एटीएम)

  • संजय सिंह मुन्ना, रामक्यास सिंह, चंद्रपाल सिंह, प्रदीप सिंह, सत्येंद्र सिंह आदि।


📸 फीचर इमेज सुझाव:

  • किसानों को संबोधित करते विधायक मोहन वर्मा

  • वैज्ञानिक खेती की तकनीक का प्रदर्शन

  • पौधारोपण करते अतिथि

  • गोष्ठी में उपस्थित किसानों की भीड़


🔗 आंतरिक लिंक सुझाव:

🧠 वैज्ञानिक खेती क्या है?

वैज्ञानिक खेती वह प्रणाली है जिसमें अनुसंधान, तकनीक, मौसम जानकारी, उन्नत बीज, और आधुनिक उपकरणों का उपयोग करके खेती की जाती है। इसका उद्देश्य कम लागत में ज़्यादा उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता हासिल करना है।


🔬 वैज्ञानिक खेती के मुख्य तत्व:

तत्व लाभ
✅ उन्नत बीज उच्च पैदावार, रोग प्रतिरोधक क्षमता
✅ मृदा परीक्षण कौन-सी फसल कौन-सी ज़मीन में बेहतर होगी, इसका निर्णय
✅ सिंचाई तकनीक ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम से पानी की बचत
✅ कीट नियंत्रण जैविक और वैज्ञानिक कीटनाशकों का प्रयोग
✅ फसल चक्र (Crop Rotation) मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है
✅ कृषि यंत्र समय और श्रम की बचत

📈 आय कैसे बढ़ेगी?

  1. कम लागत – ज़्यादा लाभ:
    वैज्ञानिक विधियाँ लागत कम करती हैं, जैसे उर्वरकों और कीटनाशकों का सीमित व सही उपयोग।

  2. बेहतर उत्पादन और गुणवत्ता:
    बाज़ार में अच्छे दाम मिलते हैं अगर फसल गुणवत्ता वाली हो।

  3. फसल विविधता:
    सिर्फ गेहूं-चावल पर निर्भर न रहकर बागवानी, दलहन, तेलहन, औषधीय फसलों को भी अपनाएं।

  4. मूल्य संवर्धन (Value Addition):
    जैसे टमाटर की चटनी, आलू के चिप्स, मक्का से कॉर्नफ्लेक्स – इससे सीधे बेचने से ज़्यादा मुनाफा होता है।

  5. कृषि तकनीक प्लेटफार्म:
    जैसे e-NAM (इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार) के जरिए फसल देशभर में बेच सकते हैं।


🌦️ मौसम के अनुसार निर्णय:

👉 एग्रो-मौसम सलाह के ज़रिए किसान जान सकते हैं:

  • कब बुवाई करनी है?

  • कौन-सी फसल उपयुक्त है?

  • कब बारिश हो सकती है?

इसका लाभ किसान कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या मौसम ऐप्स से उठा सकते हैं।


📲 तकनीकी मदद कैसे लें?

  • कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से संपर्क करें।

  • ICAR (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) की सिफारिशें अपनाएं।

  • कृषि एप्स जैसे:

    • IFFCO Kisan

    • Kisan Suvidha

    • AgriApp


🎯 सरकार की योजनाएं जो मददगार हैं:

योजना उद्देश्य
PM-KISAN ₹6000 सालाना सहायता
PM Fasal Bima Yojana फसल बीमा
Soil Health Card मृदा परीक्षण रिपोर्ट
KCC (Kisan Credit Card) आसान ऋण सुविधा
E-NAM डिजिटल मंडी

📌 निष्कर्ष:

वैज्ञानिक खेती केवल तकनीक नहीं, समझदारी की खेती है।

किसान अगर पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ वैज्ञानिक सोच अपनाते हैं, तो:

✅ उत्पादन बढ़ता है
✅ लागत घटती है
✅ मुनाफा बढ़ता है
✅ पर्यावरण की रक्षा होती है


🖼️ फीचर इमेज सुझाव:

  • खेत में मृदा परीक्षण करते किसान

  • ड्रिप सिंचाई से सिंचित फसल

  • लैपटॉप या मोबाइल के साथ स्मार्ट किसान

  • कृषि विज्ञान केंद्र में प्रशिक्षण लेते किसान

किसान करें वैज्ञानिक ढंग से खेती, बढ़ाए अपनी आय

Q1: वैज्ञानिक खेती क्या है?
उत्तर: वैज्ञानिक खेती वह प्रणाली है जिसमें आधुनिक तकनीक, उन्नत बीज, मिट्टी परीक्षण, सिंचाई प्रबंधन और कीटनाशक नियंत्रण का वैज्ञानिक तरीके से प्रयोग किया जाता है, जिससे फसल की पैदावार और किसान की आमदनी बढ़ाई जा सके।


Q2: किसान अपनी आय कैसे बढ़ा सकते हैं?
उत्तर: किसान जैविक खेती, मौसम के अनुसार फसल चयन, ड्रम सीडर जैसी तकनीक, प्राकृतिक खाद का उपयोग और बाजार आधारित फसल योजना अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं।


Q3: ड्रम सीडर तकनीक क्या है?
उत्तर: ड्रम सीडर एक आधुनिक कृषि यंत्र है जो धान जैसी फसलों के बीज को लाइन से बोने में मदद करता है, जिससे मजदूरी की लागत कम होती है और पैदावार बढ़ती है।


Q4: प्राकृतिक खेती के क्या लाभ हैं?
उत्तर: प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद या कीटनाशक की जगह जैविक उत्पादों का उपयोग होता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, उत्पादन की लागत कम होती है और उपज स्वास्थ्यवर्धक होती है।


Q5: क्या सरकार किसानों को वैज्ञानिक खेती के लिए सहायता देती है?
उत्तर: हां, सरकार कृषि विज्ञान केंद्रों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, किसान सम्मान निधि, और विभिन्न अनुदान योजनाओं के माध्यम से किसानों को वैज्ञानिक खेती के लिए सहायता प्रदान करती है।


Q6: ब्रह्मपुत्र नदी और जल संकट से खेती पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
उत्तर: जल नियंत्रण से जुड़ी समस्याएँ, जैसे जल उपलब्धता में कमी या बाढ़, फसल उत्पादन को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए जल संरक्षण और मौसम-आधारित खेती बेहद ज़रूरी है।

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