कर्नाटक के आम उत्पादक किसान
कर्नाटक के आम उत्पादक किसानों को राहत देने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने एक बड़ा निर्णय लिया है। आम की गिरती कीमतों के कारण किसानों को हो रहे नुकसान की भरपाई अब सरकार करेगी। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान और कर्नाटक के कृषि मंत्री श्री एन. चेलुवरायस्वामी के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई बैठक में इस आशय का निर्णय लिया गया।
🥭 तोतापुरी आम के किसानों को मिलेगा मूल्य अंतर
बैठक में यह सहमति बनी कि कर्नाटक में तोतापुरी किस्म के आम की जो कीमतें इस वर्ष सामान्य से बहुत कम रही हैं, उनका भावांतर (मूल्य का अंतर) किसानों को सरकार की ओर से दिया जाएगा। यह 2.5 लाख मीट्रिक टन आम की खरीद के लिए लागू होगा।
इस योजना के अंतर्गत:
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केंद्र और राज्य सरकार मूल्य अंतर की राशि आधी-आधी साझा करेंगी।
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किसानों को उनकी बिक्री और वास्तविक मूल्य के आधार पर सीधा भुगतान किया जाएगा।
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यह राहत राज्य में उत्पन्न कुल 10 लाख मीट्रिक टन आम में से 2.5 लाख मीट्रिक टन पर दी जाएगी।
📞 वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में हुआ निर्णय
बैठक में केंद्रीय कृषि सचिव श्री देवेश चतुर्वेदी भी मौजूद रहे। इसमें कर्नाटक सरकार द्वारा पहले भेजे गए प्रस्ताव पर विचार करते हुए यह निर्णय लिया गया। राज्य सरकार ने बताया था कि आम और टमाटर दोनों की कीमतों में गिरावट आई है, जिससे किसानों को नुकसान हो रहा है।
हालांकि बैठक में कर्नाटक के कृषि मंत्री ने स्पष्ट किया कि टमाटर की कीमतें अब स्थिर हो चुकी हैं, इसलिए उस पर फिलहाल कोई राहत आवश्यक नहीं है।
🙏 कृषि मंत्री ने जताया आभार
कर्नाटक के कृषि मंत्री श्री एन. चेलुवरायस्वामी ने इस निर्णय के लिए केंद्र सरकार और श्री शिवराज सिंह चौहान का धन्यवाद देते हुए कहा:
“इस निर्णय से हमारे आम किसानों को बहुत राहत मिलेगी, खासकर वे छोटे और मंझोले किसान जिनकी फसल का मूल्य बहुत कम मिला।”
📈 सरकार की भावांतर योजना
यह निर्णय भारत सरकार की भावांतर योजना के तहत लिया गया है, जो किसानों को बाजार में कम भाव मिलने की स्थिति में मूल्य अंतर का मुआवज़ा देती है। इसका उद्देश्य किसानों को आर्थिक असुरक्षा से बचाना और उन्हें स्थिर आय प्रदान करना है।
केंद्र और राज्य मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि:
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पात्र किसानों का पंजीकरण शीघ्र हो,
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मूल्य अंतर की गणना पारदर्शी हो,
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और राशि सीधे किसानों के खातों में जाए।
🧑🌾 किसानों की प्रतिक्रिया
आम किसानों में इस फैसले को लेकर राहत की भावना है। बेंगलुरु ग्रामीण जिले के एक किसान श्री रमेश ने कहा:
“तोतापुरी आम के रेट बहुत गिर गए थे। इससे हमें घाटा हो रहा था। सरकार ने सही समय पर मदद की है।”
किसान संगठनों ने भी सरकार से आग्रह किया है कि भविष्य में भावांतर भुगतान की प्रक्रिया और सरल और तेज़ बनाई जाए।
🔚 निष्कर्ष
केंद्र और कर्नाटक सरकार का यह कदम राज्य के हजारों आम किसानों के लिए वित्तीय सुरक्षा कवच का काम करेगा। इस निर्णय से न केवल किसानों की आय में सुधार होगा, बल्कि सरकार की कृषक-समर्थ नीति की भी झलक मिलती है।
“किसानों की समृद्धि, देश की समृद्धि।”
🛡️ राहत योजना का महत्व
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कुल राहत: ₹2.5 लाख टन आम की कीमतों में हुई गिरावट का दावा पूरा करने का वादा।
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उद्देश्य: किसानों की आय में स्थिरता, बाजार व्यवधानों की वजह से आर्थिक जोखिम कम करना।
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प्ररस की पृष्ठभूमि: बंपर उत्पादन, Andhra Pradesh के आयात प्रतिबंध, और मंडियों में अचानक मूल्य अवमूल्यन।
अब सरकार की ओर से ये स्पष्ट संदेश गया है कि वीक उत्पादन के बावजूद किसान का वित्तीय नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। यह निर्णय किसानों के लिए तत्काल राहत और भविष्य के आर्थिक संकट से बचाव का कार्य करेगा।
🔶 क्या है राहत योजना?
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2.5 लाख टन आम की कीमतों में गिरावट की भरपाई की जाएगी।
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केंद्र और राज्य दोनों सरकारें इस राहत योजना में वित्तीय हिस्सेदारी निभाएंगी।
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यह सहायता Price Deficiency Payment Scheme (PDPS) के तहत दी जाएगी, जिसके तहत किसानों को बाजार मूल्य और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बीच का अंतर भुगतान किया जाएगा।
🔶 क्यों ज़रूरी पड़ी यह योजना?
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कर्नाटक में इस बार बंपर आम की फसल हुई, जिससे बाजार में आम की आपूर्ति बढ़ गई।
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कीमतें ₹3000/क्विंटल तक गिर गईं, जबकि लागत ₹5000-5500/क्विंटल रही।
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इससे नाराज़ किसान आम सड़क पर फेंकते दिखे, खासकर श्रीनिवासपुरा (कोलार) जैसे इलाकों में।
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मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने केंद्र से हस्तक्षेप की अपील की थी।
🔶 किसानों को क्या मिलेगा?
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जिन किसानों ने सरकारी मंडियों में आम बेचे हैं, वे इस योजना का लाभ उठा सकेंगे।
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भुगतान की प्रक्रिया कृषि विभाग और सहकारी संस्थाओं के ज़रिए होगी।
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सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि सीधे किसानों के खातों में पैसा पहुंचे।
🔶 क्या यह योजना और राज्यों में भी लागू हो सकती है?
यह कदम अन्य राज्यों के लिए भी मॉडल बन सकता है, जहाँ बंपर फसल के कारण किसान कीमत गिरने से प्रभावित होते हैं। यदि PDPS जैसे मॉडल सफल होते हैं, तो इसे अन्य फसलों और राज्यों में भी लागू किया जा सकता है।
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