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भारत-अमेरिका संबंधों की नई परिभाषा विदेश मंत्री एस. जयशंकर का वॉशिंगटन में स्पष्ट संदेश

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भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर

भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की हालिया अमेरिका यात्रा ने भारत-अमेरिका संबंधों को एक नई दिशा और गहराई देने का कार्य किया है। वॉशिंगटन डीसी पहुंचने के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट किया कि द्विपक्षीय रिश्तों में चुनौतियाँ अपरिहार्य हैं, विशेषकर जब दोनों देश वैश्विक मंच पर स्वतंत्र और प्रमुख भूमिका निभाते हैं। परंतु, उनका यह भी दृढ़ मत था कि इन सभी चुनौतियों के बावजूद भारत-अमेरिका संबंध सतत सकारात्मक दिशा में अग्रसर हैं।

यह टिप्पणी तब आई जब वे क्वाड (QUAD) विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने अमेरिका पहुंचे थे। यह लेख न केवल उनके वक्तव्यों का विश्लेषण करता है, बल्कि भारत-अमेरिका संबंधों की वर्तमान स्थिति, विकास की संभावनाओं, आपसी सहयोग के क्षेत्रों और वैश्विक संदर्भ में दोनों देशों की सामूहिक भूमिका की गहन पड़ताल करता है।


1. संबंधों की समग्र दिशा: स्थिरता बनाम असहमति

जयशंकर ने अपने साक्षात्कार में जो सबसे अहम बात कही, वह यह थी कि किसी भी जटिल द्विपक्षीय संबंध में असहमति होना सामान्य है, लेकिन उससे भी अधिक जरूरी यह है कि उस संबंध की समग्र दिशा सकारात्मक बनी रहे।

उन्होंने कहा:

“हमारे बीच मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन हमारे रिश्ते का ढांचा ऐसा है जिसमें संवाद के लिए स्थान भी है और समाधान के लिए इच्छाशक्ति भी।”

यह वक्तव्य भारत और अमेरिका की उस रणनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है, जो दोनों देशों के बीच एक स्थायी और दीर्घकालिक साझेदारी की नींव रखता है।


2. क्वाड बैठक और हिंद-प्रशांत रणनीति में भारत की भूमिका

डॉ. जयशंकर की यह अमेरिका यात्रा मुख्यतः क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक के सिलसिले में थी। क्वाड यानी ‘Quadrilateral Security Dialogue’ — भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का एक रणनीतिक मंच है जिसका उद्देश्य इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को मुक्त, समावेशी और स्थिर बनाए रखना है।

बैठक में निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा हुई:

  • समुद्री सुरक्षा और नौवहन स्वतंत्रता

  • चीन की बढ़ती आक्रामकता पर सामूहिक प्रतिक्रिया

  • तकनीकी मानकों पर समन्वय

  • आपदा प्रबंधन और आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा

भारत ने इस मंच को कभी “नाटो जैसी सैन्य गठबंधन” नहीं माना, बल्कि इसे एक गैर-सैन्य, सहकारी सुरक्षा ढांचा के रूप में प्रस्तुत किया है। जयशंकर ने अमेरिका को यह स्पष्ट किया कि भारत की इंडो-पैसिफिक रणनीति स्वतंत्र निर्णय और रणनीतिक स्वायत्तता पर आधारित है।


3. व्यापार वार्ताएँ: संभावनाएँ और पेचीदगियाँ

जयशंकर ने स्वीकार किया कि भारत और अमेरिका के बीच वर्तमान में व्यापार वार्ता एक जटिल दौर से गुजर रही है, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि यह सफल निष्कर्ष तक पहुंचेगी।

वर्तमान विवादों में शामिल हैं:

  • इंपोर्ट ड्यूटी पर मतभेद: अमेरिका चाहता है कि भारत इलेक्ट्रॉनिक सामान, मेडिकल डिवाइसेज और वाइन जैसे उत्पादों पर आयात शुल्क घटाए।

  • ई-कॉमर्स नीति: भारत के डेटा लोकलाइजेशन नियमों से अमेरिकी टेक कंपनियाँ असहज हैं।

  • बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR): अमेरिका चाहता है कि भारत पेटेंट और लाइसेंसिंग मामलों में वैश्विक मानकों का पालन करे।

इसके बावजूद, द्विपक्षीय व्यापार $200 अरब डॉलर के आंकड़े को छू चुका है, और इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, जबकि भारत अमेरिका का एक प्रमुख निवेश बाजार बनकर उभरा है।


4. रक्षा और सुरक्षा सहयोग की बढ़ती गहराई

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग पिछले कुछ वर्षों में सबसे तीव्र गति से बढ़ा है। दोनों देशों ने निम्नलिखित रक्षा समझौते किए हैं:

  • LEMOA (2016): लॉजिस्टिक सुविधा साझेदारी

  • COMCASA (2018): सैन्य संचार साझा करना

  • BECA (2020): भू-स्थानिक डेटा साझा करना

अब भारत अमेरिका से लड़ाकू इंजन तकनीक, ड्रोन प्रणाली और नौसैनिक हथियार प्रणालियाँ प्राप्त कर रहा है। ‘मालाबार’, ‘टाइगर ट्रायंफ’, और ‘युद्ध अभ्यास’ जैसे संयुक्त सैन्य अभ्यास इस रणनीतिक विश्वास को और सुदृढ़ कर रहे हैं।

जयशंकर ने स्पष्ट किया कि रक्षा सहयोग केवल ‘खरीदने और बेचने’ तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह सह-विकास और सह-निर्माण (co-development and co-production) की दिशा में बढ़ रहा है।


5. वैश्विक राजनीति और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता

अमेरिका की विदेश नीति अक्सर अपने सहयोगियों से एक विशिष्ट दिशा की अपेक्षा करती है — विशेषकर रूस और चीन जैसे देशों के संदर्भ में। लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) की नीति अपनाई है।

  • रूस-यूक्रेन युद्ध: अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए, लेकिन भारत ने युद्ध को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की वकालत की है।

  • ईरान: भारत ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ईरान के साथ संबंध बनाए रखना चाहता है।

  • चीन: अमेरिका चाहता है कि भारत चीन के खिलाफ सख्त रुख अपनाए, पर भारत सीमा विवाद को द्विपक्षीय रूप से हल करना चाहता है।

जयशंकर ने कहा:

“हमारी विदेश नीति का उद्देश्य वैश्विक संतुलन बनाना है, किसी एक ध्रुव पर झुकना नहीं।”


6. विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इनोवेशन में साझेदारी

भारत और अमेरिका तकनीकी क्षेत्र में एक-दूसरे के स्वाभाविक साझेदार हैं:

  • सेमीकंडक्टर निर्माण: अमेरिका की कंपनी Micron ने भारत में फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित की है।

  • AI और क्वांटम कंप्यूटिंग: दोनों देशों के वैज्ञानिक और स्टार्टअप मिलकर काम कर रहे हैं।

  • नैनो टेक्नोलॉजी और ड्रोन: रक्षा अनुसंधान और नागरिक क्षेत्रों में संयुक्त पहलें।

‘iCET’ (Initiative on Critical and Emerging Technologies) नामक पहल 2023 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य AI, क्वांटम, बायोटेक, स्पेस और 5G/6G जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को नई ऊँचाई देना है।


7. जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण

भारत और अमेरिका ने 2030 तक क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में साझा लक्ष्य तय किए हैं। इसके अंतर्गत:

  • हाइड्रोजन मिशन: भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन में सहायता।

  • International Solar Alliance: अमेरिका अब इस गठबंधन का सक्रिय सदस्य है।

  • कार्बन कैप्चर और स्टोरेज टेक्नोलॉजी: संयुक्त अनुसंधान और निवेश की योजनाएँ।

जयशंकर ने यह भी कहा कि जलवायु न्याय और विकासशील देशों की ऊर्जा आवश्यकताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


8. भारतीय प्रवासी और शिक्षा क्षेत्र में सहयोग

भारतीय प्रवासी अमेरिका में एक महत्वपूर्ण शक्ति बन चुके हैं:

  • लगभग 40 लाख भारतीय मूल के लोग अमेरिका में रहते हैं।

  • 3 लाख से अधिक भारतीय छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।

  • Google, Microsoft, Adobe, IBM जैसे शीर्ष अमेरिकी कंपनियों के CEO भारतीय मूल के हैं।

भारत चाहता है कि वीजा प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए ताकि छात्रों, पेशेवरों और स्टार्टअप्स को अमेरिकी नवाचार तंत्र में समावेश का अवसर मिल सके।


9. लोकतंत्र, मानवाधिकार और मतभेदों का संतुलन

हाल के वर्षों में अमेरिका ने भारत में अल्पसंख्यकों, मीडिया स्वतंत्रता, और सिविल सोसाइटी को लेकर चिंता जताई है। भारत ने इसे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप माना है।

जयशंकर ने स्पष्ट किया:

“हम लोकतंत्र हैं और अपने संस्थानों पर पूरा विश्वास रखते हैं। हमारा समाज बहुलवादी है और अपनी प्रक्रिया के माध्यम से संतुलन बनाता है।”

यह वक्तव्य यह दर्शाता है कि भारत अब अमेरिका के साथ रिश्तों में बराबरी के आधार पर संवाद करता है, न कि केवल आश्रित संबंधों की मानसिकता से।


10. निष्कर्ष: रणनीतिक साझेदारी का भविष्य

जयशंकर की वॉशिंगटन यात्रा केवल एक कूटनीतिक मिशन नहीं थी, बल्कि भारत की वैश्विक दृष्टि और आत्मनिर्भर परिपक्वता का संकेत भी थी। भारत और अमेरिका के रिश्ते अब transactional नहीं, बल्कि विजन आधारित और उद्देश्यपूर्ण (vision-driven and purpose-oriented) होते जा रहे हैं।

यह रिश्ता:

  • असहमति में संतुलन ढूंढ़ता है,

  • अवसरों में साझेदारी खोजता है,

  • और वैश्विक व्यवस्था में स्थायित्व प्रदान करता है।

दोनों देशों को चाहिए कि वे विवादों को संवाद से, मतभेदों को समझदारी से, और चुनौतियों को अवसरों में बदलने की दिशा में मिलकर आगे बढ़ें।

जयशंकर का यह वक्तव्य ही इस साझेदारी की सार्थकता का प्रतीक है:

“दुनिया जटिल है, और ऐसे में सहयोग और विश्वास से बड़ा कोई निवेश नहीं हो सकता।”

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