ईरान के राष्ट्रपति मसूद ने विधेयक पर किए हस्ताक्षर परमाणु निगरानी व्यवस्था में बड़ा बदलाव

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ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान द्वारा संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था “इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी” (IAEA) के साथ सहयोग को निलंबित करने के विधेयक पर हस्ताक्षर करना एक महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रम बन गया है। ईरानी संसद द्वारा इस कानून को भारी बहुमत से पारित किए जाने और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह विधेयक अब विधिवत रूप से लागू हो गया है।

यह निर्णय उस समय आया है जब ईरान, इज़राइल और अमेरिका के बीच हाल ही में हुए सैन्य संघर्षों के कारण पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर है। यह कदम ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर लंबे समय से जारी अंतरराष्ट्रीय गतिरोध को और गहरा करने वाला साबित हो सकता है।


विधेयक का पारित होना संसद से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर

ईरानी संसद में यह विधेयक 290 में से 221 सांसदों के समर्थन से पारित हुआ। किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया और मात्र एक सांसद ने मतदान से दूरी बनाई। संसद में इस विधेयक को ‘राष्ट्रीय संप्रभुता और आत्मरक्षा के अधिकार’ के तहत लाया गया था।
इसके बाद, ईरान के संवैधानिक निगरानी निकाय ने विधेयक की संवैधानिक वैधता की पुष्टि की। अंततः राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने इस पर हस्ताक्षर करते हुए इसे कानून का रूप दिया।

यह विधेयक अब IAEA के साथ सभी ‘गैर-आवश्यक’ निरीक्षण, सहयोग और सूचनाओं के आदान-प्रदान को तत्काल प्रभाव से निलंबित करता है।


 सैन्य संघर्ष की पृष्ठभूमि ईरान, इज़राइल और अमेरिका के बीच तनाव

यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया जब ईरान हाल ही में 12 दिन तक चले एक सैन्य संघर्ष से उबरा है, जिसमें इज़राइल और अमेरिका दोनों शामिल थे।

संघर्ष की प्रमुख घटनाएं:

  • 13 जून 2025: इज़राइल ने ईरान के सैन्य और परमाणु ठिकानों पर बमबारी की, जिनमें नातांज़ और फोर्दो भी शामिल थे।

  • ईरानी प्रतिक्रिया: जवाब में, ईरान ने इज़राइल पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए।

  • अमेरिका का हस्तक्षेप: अमेरिका ने 22 जून को ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों—नातांज़, फोर्दो और इस्फहान—पर हमले किए।

  • 24 जून: अमेरिका की मध्यस्थता से युद्धविराम लागू हुआ।

इस सैन्य संघर्ष में दोनों पक्षों को बड़ा नुकसान हुआ और यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया।


 IAEA की भूमिका पर उठे सवाल

ईरान ने IAEA पर इस पूरे संघर्ष के दौरान मौन रहने का आरोप लगाया है। ईरानी अधिकारियों का कहना है कि जब उनके देश के परमाणु प्रतिष्ठानों पर सीधे हमले किए गए, उस समय IAEA ने न तो बयान दिया, न ही निरीक्षण टीम भेजी।

ईरानी प्रतिक्रिया:

  • IAEA की निष्क्रियता को ‘पक्षपातपूर्ण चुप्पी’ कहा गया।

  • यह भी आरोप लगाया गया कि IAEA अमेरिकी और इजरायली नीतियों के प्रभाव में कार्य कर रही है।

  • राष्ट्रपति पेज़ेशकियान ने स्पष्ट किया कि “जब तक IAEA ईरान की सुरक्षा चिंताओं को नहीं समझती, तब तक कोई पारदर्शिता संभव नहीं।”


ईरान का परमाणु कार्यक्रम ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

ईरान का परमाणु कार्यक्रम कई दशकों से अंतरराष्ट्रीय बहस और समझौतों का केंद्र रहा है।

प्रमुख घटनाक्रम:

  • 2003-2015: अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन को सीमित किया।

  • 2015: ईरान और P5+1 देशों के बीच JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action) समझौता हुआ।

  • 2018: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने JCPOA से अमेरिका को अलग किया।

  • इसके बाद ईरान ने धीरे-धीरे अपने परमाणु कार्यक्रम को पुनः विस्तारित किया और अब वह हथियार-ग्रेड यूरेनियम के करीब पहुंच गया है।


 नया कानून क्या-क्या प्रभाव होंगे

प्रमुख प्रावधान

  • IAEA को ईरान के सैन्य परमाणु स्थलों तक अब अनुमति नहीं मिलेगी।

  • सुरक्षा कैमरे और रिमोट मॉनिटरिंग डिवाइस हटाए जाएंगे।

  • ईरान अब अपने परमाणु कार्यक्रम पर कोई “स्वैच्छिक” जानकारी साझा नहीं करेगा।

  • सभी अतिरिक्त प्रोटोकॉल और JCPOA के अतिरिक्त निरीक्षण निलंबित होंगे।

संभावित प्रभाव

  • IAEA अब ईरान के परमाणु कार्यक्रम की पारदर्शिता की पुष्टि नहीं कर पाएगा।

  • पश्चिमी देशों के साथ विश्वास की खाई और गहरी हो सकती है।

  • नया संकट खड़ा हो सकता है जिससे नया परमाणु समझौता असंभव हो जाएगा।


 अमेरिका और इज़राइल की प्रतिक्रिया

अमेरिका

  • अमेरिकी विदेश विभाग ने ईरान के कदम को “गंभीर और खतरनाक” बताया।

  • वाशिंगटन ने कहा कि ईरान का कदम 2015 के समझौते की भावना और सुरक्षा तंत्र को तोड़ता है।

  • अमेरिका ने फिर से प्रतिबंधों की चेतावनी दी है।

इज़राइल

  • प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा, “ईरान को रोकने के लिए हर आवश्यक कदम उठाएंगे।”

  • इज़राइल ने अपने सैटेलाइट सिस्टम और खुफिया नेटवर्क को सक्रिय किया है।


अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंताएं

यूरोपीय संघ:

  • ईयू ने ईरान के कदम को निराशाजनक बताया और सभी पक्षों से संयम की अपील की।

  • ईयू के राजनयिकों ने यह भी कहा कि इससे मध्य पूर्व में हथियारों की होड़ और बढ़ेगी।

रूस और चीन:

  • रूस ने अमेरिका और इज़राइल पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया।

  • चीन ने बातचीत की अपील की और कहा कि “एकतरफा कार्रवाई से बचा जाना चाहिए।”

संयुक्त राष्ट्र:

  • महासचिव ने दोनों पक्षों से ‘सार्वजनिक जवाबदेही और कूटनीति’ की अपील की।

  • IAEA प्रमुख राफेल ग्रोसी ने ईरान से अपील की कि “निगरानी बंद करने से वैश्विक सुरक्षा को खतरा है।”


ईरान की आंतरिक राजनीति और जनता की प्रतिक्रिया

ईरान में इस फैसले को लेकर दो तरह की राय सामने आई है:

सरकार समर्थक

  • इसे ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान’ की रक्षा बताया गया।

  • कुछ सांसदों ने कहा, “जब हमारी संप्रभुता पर हमले हों, तब IAEA जैसी संस्थाओं से सहयोग कोई मायने नहीं रखता।”

सरकार आलोचक

  • देश की आर्थिक स्थिति और अंतरराष्ट्रीय अलगाव को लेकर चिंता जताई गई।

  • कई शिक्षाविदों और उद्यमियों ने कहा कि “IAEA से दूरी विकास में बाधा बन सकती है।”


 भविष्य की संभावनाएं और चुनौतियां

संभावित परिदृश्य

  • डिप्लोमेसी का पुनः प्रयास अमेरिका और ईरान फिर से बैक-चैनल बातचीत शुरू कर सकते हैं।

  • प्रतिबंधों की वापसी अमेरिका और यूरोपीय संघ आर्थिक प्रतिबंध बढ़ा सकते हैं।

  • सैन्य कार्रवाई इज़राइल या अमेरिका सीमित सैन्य कार्रवाई कर सकते हैं।

  • IAEA की प्रतिक्रिया एजेंसी औपचारिक विरोध और वैश्विक रिपोर्ट जारी कर सकती है।

क्षेत्रीय अस्थिरता

  • लेबनान, सीरिया, यमन में ईरान समर्थित समूहों की सक्रियता बढ़ सकती है।

  • सऊदी अरब और यूएई भी सुरक्षा तैयारियों में वृद्धि कर सकते हैं।


निष्कर्ष

ईरान द्वारा IAEA से सहयोग निलंबित करने का निर्णय निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय परमाणु राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ता है। यह निर्णय केवल एक विधेयक नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, क्षेत्रीय संघर्ष और कूटनीतिक संभावनाओं की दिशा बदलने वाला कदम है।

अब यह देखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय किस प्रकार से प्रतिक्रिया देता है – क्या यह निर्णय एक और परमाणु संकट को जन्म देगा या इससे एक नए और समावेशी समझौते की नींव रखी जाएगी?

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