भारत कोयला उत्पादन के क्षेत्र में एक नया मील का पत्थर छूने की राह पर है। केयरएज रेटिंग्स द्वारा जारी एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश वित्त वर्ष 2025-26 में 1.15 बिलियन टन (1150 मिलियन टन) का रिकॉर्ड घरेलू कोयला उत्पादन हासिल करने की ओर बढ़ रहा है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि न केवल ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की ऊर्जा रणनीति को भी मजबूती प्रदान करती है।
वित्त वर्ष 2025 के अंत तक भारत का कोयला उत्पादन 1,047.6 मिलियन टन पर पहुंच गया, जो पिछले पांच वर्षों में 10% की औसत वार्षिक वृद्धि दर का संकेत देता है। यह वृद्धि सरकार द्वारा अपनाए गए बहुआयामी सुधारों और ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती मांग का परिणाम है।
नीतिगत सुधार
भारत सरकार द्वारा कोयला क्षेत्र में किए गए नीतिगत सुधारों ने घरेलू उत्पादन में जबरदस्त योगदान दिया है। खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम में संशोधन ने कोयला खनन की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया है।
इसके साथ ही सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम, माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर (MDO) मॉडल, कोयला खनन में 100% एफडीआई की अनुमति, और कोयला ब्लॉकों की नियमित नीलामी जैसी पहलों ने न केवल निजी निवेश को आकर्षित किया है, बल्कि कोयला खनन को तकनीकी रूप से कुशल और प्रतिस्पर्धी भी बनाया है।
इन उपायों ने उन पुरानी बाधाओं को समाप्त किया है जो पहले इस क्षेत्र में निजी भागीदारी को सीमित करती थीं। अब भारत में कोयला उत्पादन एक बहु-हितधारक प्रयास बन चुका है जिसमें सरकारी और निजी दोनों क्षेत्र मिलकर योगदान दे रहे हैं।
बिजली क्षेत्र की बढ़ती मांग से कोयले की डिमांड में उछाल
रिपोर्ट के अनुसार, कोयले की मांग में यह उछाल बिजली क्षेत्र की तीव्र वृद्धि से जुड़ा है। वित्त वर्ष 2025 में कुल कोल डिस्पैच का 82 प्रतिशत हिस्सा बिजली उत्पादन के लिए किया गया, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि देश की ऊर्जा जरूरतें कितनी तेज़ी से बढ़ रही हैं।
भारत की कुल कोयला खपत FY21 में 922.2 मिलियन टन से बढ़कर FY25 में 1,270 मिलियन टन तक पहुंच गई। यह वृद्धि औद्योगिक, घरेलू, और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की मांग में भारी इजाफे को दर्शाती है।
ग्रामीण विद्युतीकरण, स्मार्ट ग्रिड सिस्टम, और शहरों में बुनियादी ढांचे के विस्तार के चलते बिजली की मांग में स्थिर वृद्धि देखी जा रही है। कोयला आधारित तापीय ऊर्जा अभी भी भारत की कुल विद्युत आपूर्ति का प्रमुख स्रोत बना हुआ है।
आत्मनिर्भरता की ओर मजबूत कदम
कोयले में आत्मनिर्भरता की ओर भारत का रुझान स्पष्ट है। वित्त वर्ष 2021 में घरेलू कोयले की हिस्सेदारी कुल खपत में 77.7% थी, जो FY25 में बढ़कर 82.5% हो गई है। यह बदलाव सरकार की रणनीतिक सोच का परिणाम है, जहां आयात पर निर्भरता कम करते हुए स्थानीय उत्पादन को प्राथमिकता दी गई है।
जनवरी 2025 तक 184 कोयला खदानें आवंटित की गई थीं, जिनमें से 65 में पहले ही उत्पादन शुरू हो चुका है। इन सक्रिय खदानों ने FY25 में लगभग 136.59 मिलियन टन कोयला उत्पादन किया—पिछले वर्ष की तुलना में 34% अधिक।
इस तरह के उत्पादन ने भारत को वैश्विक ऊर्जा बाजारों में सापेक्ष रूप से स्थिरता और आत्मनिर्भरता दिलाने में सहायता की है। इसका लाभ घरेलू उद्योगों और बिजली संयंत्रों को किफायती और भरोसेमंद ईंधन आपूर्ति के रूप में मिल रहा है।
कोल इंडिया और निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका
भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) अभी भी देश के कोयला उत्पादन में 74 प्रतिशत से अधिक योगदान दे रही है। इसके अलावा, प्राइवेट और कैप्टिव माइनर्स ने भी हाल के वर्षों में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है।
March 2025 में शुरू की गई कोयला ब्लॉक नीलामी के 12वें चरण में 28 नई खदानों की पेशकश की गई, जो घरेलू उत्पादन को और विस्तार देने का संकेत देती है। यह संकेत है कि भारत अब कोयले को केवल ऊर्जा स्रोत नहीं, बल्कि आर्थिक विकास के एक रणनीतिक इंजन के रूप में देख रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बेहतर सप्लाई चेन प्रबंधन, लॉजिस्टिक्स सुधार, और ई-नीलामी प्लेटफॉर्म की मदद से कोयले की कीमतों में गिरावट आई है। यह रुझान FY26 में भी जारी रहने की संभावना है, जिससे उद्योगों के लिए ईंधन लागत में कमी आएगी।
FDI की 100% अनुमति – वैश्विक निवेशकों का बढ़ता रुझान
भारत सरकार ने कोयला क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को मंजूरी देकर विदेशी कंपनियों के लिए दरवाज़े खोल दिए हैं।
यह कदम ऐसे समय में आया जब भारत को तकनीकी दक्षता, आधुनिक खनन तकनीकों और पूंजी निवेश की आवश्यकता थी। इसके फलस्वरूप अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और जर्मनी की कई कंपनियों ने भारत के कोयला क्षेत्र में संभावनाएं तलाशना शुरू किया।
FDI की अनुमति ने न केवल फंडिंग और टेक्नोलॉजी इनफ्लो बढ़ाया, बल्कि रोजगार और कौशल विकास के नए अवसर भी खोले।
सिंगल विंडो क्लीयरेंस
कोयला खनन क्षेत्र में पहले जटिल और बहु-स्तरीय अनुमति प्रक्रियाएं निवेशकों के लिए एक बड़ी चुनौती थीं। सरकार ने इसे सुधारते हुए एक सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम लागू किया है।
इस प्रणाली के तहत सभी आवश्यक मंजूरियां – जैसे पर्यावरणीय, वन, भूमि अधिग्रहण, और खनन लाइसेंस – एक ही मंच से तेजी से प्राप्त की जा सकती हैं।
इससे परियोजनाओं की लंबित अवधि में भारी कमी आई है और निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों की कंपनियों को समय पर संचालन शुरू करने में सुविधा मिली है।
कोयला ब्लॉक की नियमित नीलामी – पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा
सरकार ने कोयला ब्लॉकों की नियमित और पारदर्शी ई-नीलामी शुरू कर, निजी क्षेत्र को भागीदारी का अवसर दिया है।
ई-नीलामी प्रक्रिया से सरकार को राजस्व में वृद्धि, और कंपनियों को स्पष्ट एवं निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा का मंच मिला है। मार्च 2025 में हुई 12वीं कोयला ब्लॉक नीलामी में 28 नई खदानें पेश की गईं, जो घरेलू उत्पादन को बढ़ाने की रणनीति का हिस्सा हैं।
यह प्रणाली भ्रष्टाचार की आशंका को कम करती है और निवेशकों के भरोसे को मजबूत करती है।
ग्रामीण और औद्योगिक बिजली जरूरतें
भारत में बिजली की मांग तेजी से बढ़ रही है, विशेष रूप से ग्रामीण विद्युतीकरण, स्मार्ट शहरों और औद्योगिक विकास के चलते।
वित्त वर्ष 2025 में कोयले का 82% हिस्सा बिजली उत्पादन के लिए उपयोग हुआ, जिससे यह स्पष्ट है कि कोयला अभी भी भारत की ऊर्जा आवश्यकता का मुख्य स्रोत बना हुआ है।
बिजली क्षेत्र की यह मांग कोयला खनन को आर्थिक रूप से व्यावहारिक और रणनीतिक रूप से अनिवार्य बना देती है।
इसके अतिरिक्त, विद्युत क्षेत्र को स्थिर ईंधन आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कोयला उत्पादन को सतत रूप से बढ़ाना आवश्यक है।
क्षेत्र को भरोसा
सरकार द्वारा खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 में संशोधन कर कोयला क्षेत्र में नियमों को सरल, स्पष्ट और निवेशक-अनुकूल बनाया गया है।
इस अधिनियम में सुधारों से न केवल नियामकीय बाधाएं कम हुईं, बल्कि निजी कंपनियों को दीर्घकालिक सुरक्षा और स्पष्ट दिशा भी मिली।
नीतिगत स्थिरता के कारण कंपनियों को रणनीतिक योजना, कैपेक्स निवेश, और प्रौद्योगिकीय उन्नयन की स्पष्टता मिली है।
“यह स्थायित्व हमें दीर्घकालिक परियोजनाओं में निवेश के लिए आवश्यक भरोसा देता है,” एक प्रमुख निजी खनन कंपनी के प्रवक्ता ने कहा।
Faq