ब्रिक्स मंच पर भारत-वियतनाम रणनीतिक साझेदारी से वैश्विक नेतृत्व तक

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ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और वियतनाम के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात ने दोनों देशों के बीच गहराते रणनीतिक रिश्तों को नई ऊंचाई दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह ने ब्राजील के ब्रासीलिया में आयोजित 2025 ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मौके पर द्विपक्षीय बातचीत की। इस मुलाकात को ऐतिहासिक और भविष्य की संभावनाओं से भरपूर बताया जा रहा है, खासकर इस पृष्ठभूमि में कि वियतनाम इसी वर्ष जनवरी में ब्रिक्स का नया सदस्य बना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर दोनों नेताओं की तस्वीर साझा करते हुए लिखा, “ब्राजील में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह के साथ अच्छी बातचीत हुई।” यह मुलाकात न केवल वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण रही, बल्कि इससे भारत-वियतनाम के गहरे होते रिश्तों का भी संकेत मिला।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और भावनात्मक जुड़ाव

भारत और वियतनाम के बीच रिश्ते सिर्फ राजनीतिक या रणनीतिक नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और भावनात्मक भी रहे हैं। महात्मा गांधी और वियतनाम के तत्कालीन राष्ट्रपति हो ची मिन्ह के बीच पत्रों का आदान-प्रदान इस संबंध की जड़ें दर्शाता है, जो स्वतंत्रता संग्राम के दौर से जुड़ी हैं। दोनों देशों ने उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष किया और समान विचारधारा पर आधारित नीतियों को अपनाया।

1954 में जिनेवा समझौते के बाद जब अंतरराष्ट्रीय निगरानी और नियंत्रण आयोग की स्थापना हुई, भारत उसका सह-अध्यक्ष बना। उस समय भारत ने उत्तरी और दक्षिणी वियतनाम दोनों के साथ कॉन्सुलेट स्तर पर रिश्ते बनाए। बाद में, 7 जनवरी 1972 को भारत और वियतनाम के बीच पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित हुए। तब से दोनों देशों ने राजनीतिक, रक्षा, व्यापार और सांस्कृतिक क्षेत्रों में गहराई से सहयोग बढ़ाया है।

रणनीतिक साझेदारी से व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक

भारत और वियतनाम के संबंधों ने 21वीं सदी में नई ऊंचाइयों को छुआ। वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान इन संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” से बढ़ाकर “व्यापक रणनीतिक साझेदारी” के स्तर तक ले जाया गया। इस बदलाव का उद्देश्य था रक्षा, समुद्री सुरक्षा, ऊर्जा, व्यापार, शिक्षा, संस्कृति, और तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग को और अधिक सघन बनाना।

2016 की यात्रा के दौरान रक्षा सहयोग पर विशेष बल दिया गया था। भारत ने वियतनाम को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के लिए 50 करोड़ डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट दी। साथ ही, समुद्री सुरक्षा, सूचना तकनीक, साइबर सुरक्षा और संयुक्त सैन्य प्रशिक्षण के क्षेत्र में भी सहमति बनी। यह साझेदारी केवल दक्षिण एशिया में ही नहीं, बल्कि पूरे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करती है।

हालिया प्रगति और राजनयिक गतिविधियां

वर्ष 2020 में भारत-वियतनाम के संबंधों को नई ऊर्जा मिली जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन वियतनामी प्रधानमंत्री गुयेन जुआन फुक के बीच वर्चुअल शिखर सम्मेलन हुआ। इस दौरान साझा दृष्टिकोण अपनाया गया जिसका लक्ष्य था “शांति, समृद्धि और लोगों के लिए साझी सोच।” इसी सोच के तहत 2022 में दोनों देशों ने राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ बड़े उत्साह से मनाई।

वर्ष 2024 में वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह की भारत यात्रा और उसी वर्ष सितंबर में प्रधानमंत्री मोदी की वियतनाम की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव गुयेन फु ट्रोंग से हुई मुलाकातों ने परस्पर सहयोग को नई दिशा दी। इन बैठकों में रक्षा, अर्थव्यवस्था, डिजिटल इंडिया व डिजिटल वियतनाम, कृषि और हरित ऊर्जा जैसे मुद्दों पर ठोस बातचीत हुई। साथ ही, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘मेक इन वियतनाम’ के तहत साझी उत्पादन इकाइयों पर भी चर्चा हुई।

ब्रिक्स के नए स्वरूप में भारत-वियतनाम की भूमिका

वर्ष 2025 में ब्रिक्स में वियतनाम की सदस्यता एक महत्वपूर्ण मोड़ रहा। यह भारत के लिए एक रणनीतिक अवसर भी है, क्योंकि वियतनाम ब्रिक्स में एक ऐसा सहयोगी बनकर उभरा है जो भारत के वैश्विक दृष्टिकोण के कई पहलुओं में साझा सोच रखता है — विशेषकर दक्षिण चीन सागर में नौवहन की स्वतंत्रता, जलवायु परिवर्तन, और विकासशील देशों के मुद्दों पर।

ब्रिक्स के नए ढांचे में, जहां अब सदस्य देशों की संख्या बढ़ी है और विविधता भी, वहां भारत और वियतनाम मिलकर वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को सशक्त बना सकते हैं। ब्रिक्स बैंक (न्यू डेवलपमेंट बैंक), जलवायु वित्त, डिजिटल भुगतान तंत्र और बहुपक्षीय व्यापार पर दोनों देश मिलकर नीति निर्माण में सहयोग कर सकते हैं।

भारत-वियतनाम सहयोग: साझेदारी की नई ऊँचाइयाँ

भारत और वियतनाम के द्विपक्षीय संबंध समय के साथ लगातार मज़बूत होते गए हैं। एशिया की दो महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं के बीच सहयोग न केवल क्षेत्रीय स्थिरता के लिए अहम है, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी इनकी भागीदारी अब नया आयाम ले रही है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक संबंध

1972 में भारत और वियतनाम के बीच औपचारिक राजनयिक संबंधों की स्थापना हुई थी। भारत उन शुरुआती देशों में था जिन्होंने वियतनाम की नई सरकार को मान्यता दी। इस ऐतिहासिक कदम ने दोनों देशों के बीच परस्पर विश्वास और सम्मान की नींव रखी।

रणनीतिक साझेदारी की ओर बढ़ता रिश्ता

2007 में भारत और वियतनाम ने अपने संबंधों को “रणनीतिक साझेदारी” का दर्जा दिया। इसके तहत रक्षा, व्यापार, ऊर्जा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसे क्षेत्रों में सहयोग को प्राथमिकता दी गई। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वियतनाम यात्रा के दौरान यह साझेदारी और प्रगाढ़ हुई और इसे “व्यापक रणनीतिक साझेदारी” में परिवर्तित किया गया।

डिजिटल और वैश्विक सहयोग

2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने वर्चुअल शिखर सम्मेलन के माध्यम से “शांति, समृद्धि और लोगों के लिए साझा दृष्टिकोण” को अपनाया। यह डिजिटल युग में भी आपसी संवाद और सहयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

सांस्कृतिक और कूटनीतिक मजबूती

2022 में भारत-वियतनाम राजनयिक संबंधों की 50वीं वर्षगांठ बड़े धूमधाम से मनाई गई। सांस्कृतिक कार्यक्रमों, व्यापार मेलों और उच्चस्तरीय बैठकों ने इस ऐतिहासिक अवसर को और भी विशेष बना दिया।

उच्चस्तरीय वार्ताएँ और वैश्विक मंच पर सहयोग

2024 में वियतनाम के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री मोदी की हनोई में हुई उच्चस्तरीय बैठक ने द्विपक्षीय सहयोग को और सशक्त किया। रक्षा, ब्लू इकॉनॉमी, साइबर सुरक्षा और डिजिटल व्यापार जैसे क्षेत्रों में नई परियोजनाओं पर सहमति बनी।

ब्रिक्स में वियतनाम की एंट्री

2025 में वियतनाम ने ब्रिक्स समूह की सदस्यता प्राप्त की, और यह भारत-वियतनाम सहयोग के लिए एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ। अब दोनों देश वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को मज़बूती देने के लिए एक साझा मंच पर कार्य कर सकते हैं। क्षेत्रीय मुद्दों से लेकर जलवायु परिवर्तन, व्यापार सुधार, और वैश्विक सुरक्षा तक — दोनों देशों के हित अब अधिक समन्वित हो चुके हैं।

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