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भारत और यूएई के बीच हरित स्टील और उच्च श्रेणी के एल्युमीनियम में सहयोग की नई संभावनाएं: औद्योगिक साझेदारी की नई दिशा

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भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच औद्योगिक और खनिज क्षेत्र में सहयोग की संभावनाएं लगातार विस्तार पा रही हैं। इसी कड़ी में भारत के केंद्रीय इस्पात मंत्री श्री एच.डी. कुमारस्वामी और यूएई के आर्थिक मामलों के मंत्री अब्दुल्ला बिन तौक अल मैरी के बीच एक उच्चस्तरीय बैठक आयोजित की गई। यह मुलाकात भारत-संयुक्त अरब अमीरात व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौते (सीईपीए) के अंतर्गत औद्योगिक समन्वय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।

हरित इस्पात उत्पादन: वैश्विक पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं की ओर साझा पहल

बैठक में हरित इस्पात (ग्रीन स्टील) के क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं पर गंभीरता से चर्चा की गई। यह क्षेत्र आज के समय में विशेष महत्व रखता है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में उद्योगों से सतत विकास की अपेक्षा की जा रही है। भारत, जो पहले से ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश बन चुका है, अब हरित इस्पात के माध्यम से उत्पादन को और अधिक पर्यावरण-अनुकूल बनाने के रास्ते पर अग्रसर है।

श्री कुमारस्वामी ने स्पष्ट किया, “संयुक्त अरब अमीरात ऊर्जा-कुशल तकनीकों और कच्चे माल की सुरक्षा में भारत का एक भरोसेमंद साझेदार बन सकता है। हरित इस्पात उत्पादन के लिए जरूरी उच्च-गुणवत्ता वाले संसाधनों की साझेदारी से हम 2030 तक 300 मिलियन टन स्टील उत्पादन के लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।”

उच्च श्रेणी का इस्पात और एल्युमीनियम: भारत के उभरते ऑटो और रक्षा क्षेत्रों के लिए आवश्यक

बैठक के दौरान एक प्रमुख चर्चा उच्च श्रेणी के इस्पात और एल्युमीनियम के संयुक्त उत्पादन और व्यापार पर रही। यह विशेष रूप से भारत के ऑटोमोबाइल, विमानन, रक्षा और स्मार्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में उपयोगी सिद्ध होगा। श्री कुमारस्वामी ने इस पर कहा, “हम इन क्षेत्रों में इस्तेमाल के लिए उच्च गुणवत्ता वाले धातुओं के संयुक्त विकास और व्यापार में गहरा तालमेल देख रहे हैं।”

यूएई और भारत दोनों ही स्मार्ट सिटीज़, मोबिलिटी हब्स और इको-फ्रेंडली इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। ऐसे में, उच्च गुणवत्ता वाले और टिकाऊ स्टील तथा एल्युमीनियम की मांग तेजी से बढ़ रही है। बैठक में यह भी सहमति बनी कि इस साझेदारी के तहत भारत और यूएई मिलकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकते हैं।

ऊर्जा इको-सिस्टम और रणनीतिक आपूर्ति सुरक्षा पर ध्यान

बैठक में यह विशेष रूप से रेखांकित किया गया कि ऊर्जा इको-सिस्टम, रणनीतिक आपूर्ति, और कच्चे माल की सुरक्षा को प्राथमिकता देना दोनों देशों के लिए जरूरी है। यूएई की ऊर्जा संपन्नता और खनिज संसाधनों तक पहुंच भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने में उपयोगी साबित हो सकती है। वहीं भारत, अपनी विशाल उपभोक्ता बाजार और कुशल श्रमशक्ति के साथ यूएई की औद्योगिक विविधता को नया आधार प्रदान कर सकता है।

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की प्रमुख भूमिका

भारत-यूएई औद्योगिक सहयोग में भारत की केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों (सीपीएसई) की भूमिका को भी विशेष रूप से रेखांकित किया गया। विशेषकर तीन बड़ी कंपनियों ने इस बैठक में अपनी प्रतिबद्धताओं को स्पष्ट किया:

1. सेल (SAIL) – स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड

भारत की महारत्न सीपीएसई सेल वर्तमान में यूएई के रस अल खैमाह स्थित स्टेविन रॉक एलएलसी से प्रति वर्ष लगभग 2.5 मिलियन टन लो सिलिका चूना पत्थर का आयात करती है। बैठक में कंपनी ने यूएई के साथ दीर्घकालिक आपूर्ति गठबंधनों और प्रीमियम ग्रेड भारतीय स्टील के निर्यात की संभावनाओं को लेकर चर्चा की।

2. एनएमडीसी (NMDC) – राष्ट्रीय खनिज विकास निगम

भारत की सबसे बड़ी लौह अयस्क उत्पादक कंपनी एनएमडीसी ने यूएई की खनन कंपनियों के साथ मिलकर खनन मूल्य श्रृंखला विकसित करने की इच्छा जताई है। कंपनी का लक्ष्य है कि खाड़ी क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारों के साथ मिलकर भारत की खनिज आवश्यकताओं को पूरा किया जाए।

3. मेकॉन लिमिटेड (MECON)

मेकॉन एक प्रमुख इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी कंपनी है जो पहले ही तेल एवं गैस, स्टील संयंत्र विकास और स्मार्ट अवसंरचना परियोजनाओं में योगदान कर रही है। अब कंपनी खाड़ी क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता को और विस्तारित करने की दिशा में प्रयासरत है।

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका को बल

बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ दृष्टिकोण के अनुरूप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की सुदृढ़ उपस्थिति पर भी जोर दिया गया। श्री कुमारस्वामी ने कहा, “हम अब केवल एक निर्माण स्थल नहीं, बल्कि उच्च तकनीकी क्षमता और नवाचार-संचालित औद्योगिक केंद्र के रूप में उभर रहे हैं। यूएई के साथ मिलकर हम वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को अधिक लचीला और सुरक्षित बना सकते हैं।”

सीईपीए समझौते की भूमिका

भारत-यूएई सीईपीए समझौता, जो वर्ष 2022 में प्रभाव में आया था, द्विपक्षीय व्यापार को गति देने में मील का पत्थर साबित हुआ है। दोनों देशों के बीच व्यापार वर्ष दर वर्ष बढ़ता जा रहा है और अब यह 85 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच चुका है। इस समझौते के तहत भारत और यूएई ने 90% से अधिक वस्तुओं पर शुल्क मुक्त व्यापार को मंजूरी दी है, जिससे उद्योगों को विशेष लाभ मिल रहा है।

भविष्य की संभावनाएं और रणनीति: सहयोग की नई दिशाएं

केंद्रीय इस्पात मंत्री श्री एच.डी. कुमारस्वामी और संयुक्त अरब अमीरात के आर्थिक मंत्री श्री अब्दुल्ला बिन तौक अल मैरी के बीच हुई इस उच्चस्तरीय बैठक में भविष्य के लिए दीर्घकालिक रणनीति को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया। दोनों नेताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की कि भारत और यूएई के औद्योगिक सहयोग को टिकाऊ, तकनीक-संचालित और मानव संसाधन समृद्ध बनाने के लिए कुछ बुनियादी क्षेत्रों पर केंद्रित योजनाएं आवश्यक हैं।

इस रणनीति के तहत तीन प्रमुख स्तंभों की पहचान की गई:

1. संयुक्त अनुसंधान एवं विकास केंद्रों की स्थापना (Joint R&D Centres)

दोनों देशों ने इस बात को स्वीकार किया कि ग्रीन स्टील, एल्युमीनियम अलॉयज और ऊर्जा-कुशल उत्पादन विधियों को अपनाने और उनके विकास के लिए उन्नत तकनीकों की आवश्यकता है। इसे ध्यान में रखते हुए भारत और यूएई मिलकर संयुक्त अनुसंधान एवं विकास केंद्रों (Joint R&D Centres) की स्थापना करेंगे।

इन केंद्रों में निम्नलिखित पहलुओं पर कार्य होगा:

  • हरित इस्पात उत्पादन के लिए कार्बन न्यूट्रल प्रक्रियाएं

  • उच्च-शुद्धता वाले एल्युमीनियम अलॉयज के निर्माण में नवाचार

  • ऊर्जा की खपत को न्यूनतम करने वाली उत्पादन प्रणालियाँ

  • हाइड्रोजन आधारित स्टील मेकिंग तकनीक

  • स्क्रैप आधारित रीसायक्लिंग संयंत्रों का डिज़ाइन और अनुकूलन

इन प्रयासों से न केवल उद्योग की उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रतिबद्धताओं को भी मजबूती देगा।

2. संयुक्त उद्यम (Joint Ventures)

भारत और यूएई के बीच औद्योगिक साझेदारी को जमीनी स्तर पर साकार करने के लिए संयुक्त उद्यमों की स्थापना को प्राथमिकता दी जा रही है। इसमें दोनों देशों की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ-साथ निजी क्षेत्र की कंपनियों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाएगी।

संयुक्त उद्यमों के संभावित क्षेत्र:

  • यूएई में भारतीय स्टील कंपनियों की उत्पादन इकाइयों की स्थापना

  • भारत में यूएई के निवेश से एल्यूमीनियम रिफाइनरी व फाउंड्री की स्थापना

  • मेटल्स ट्रेडिंग और लॉजिस्टिक्स कंपनियों का गठन

  • ग्रीन हाइड्रोजन आधारित इस्पात उत्पादन परियोजनाएं

इस साझेदारी के अंतर्गत न केवल उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि द्विपक्षीय व्यापार संतुलन को भी मजबूती मिलेगी।

3. प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास (Training & Human Capital Development)

तकनीकी क्षेत्रों में कुशल मानव संसाधन का होना दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है। इस संदर्भ में दोनों देशों ने अपस्किलिंग और रि-स्किलिंग कार्यक्रमों की रूपरेखा पर सहमति व्यक्त की।

इस योजना के अंतर्गत:

  • भारत और यूएई में द्विपक्षीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना

  • इस्पात, एल्यूमीनियम, खनन और विनिर्माण में व्यावसायिक कोर्स

  • इंटर्नशिप, एक्सचेंज प्रोग्राम और स्किल सर्टिफिकेशन तंत्र

  • महिला इंजीनियरों और तकनीशियनों के लिए विशेष कार्यक्रम

यह रणनीति विशेष रूप से युवाओं को वैश्विक औद्योगिक वातावरण के अनुकूल तैयार करने में सहायक होगी, साथ ही दोनों देशों की औद्योगिक जरूरतों को दीर्घकालिक रूप से पूरा करेगी।

निष्कर्ष: भारत और यूएई के संबंधों में नई ऊर्जा

भारत और संयुक्त अरब अमीरात के संबंध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक स्तर पर सदैव मजबूत रहे हैं। हालिया औद्योगिक बैठक ने इस साझेदारी में एक नई ऊर्जा भर दी है। हरित इस्पात और उच्च श्रेणी के एल्युमीनियम जैसे क्षेत्रों में सहयोग, न केवल दोनों देशों के औद्योगिक विकास में योगदान देगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्थायित्व और नवाचार की दिशा में उदाहरण प्रस्तुत करेगा।

श्री कुमारस्वामी के शब्दों में, “भारत और यूएई, भविष्य की उद्योग नीति के दो मजबूत स्तंभ बन सकते हैं। यह साझेदारी हमारे पर्यावरणीय, आर्थिक और रणनीतिक लक्ष्यों को एक साथ साकार करने में मदद करेगी।”

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