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India enters a new era of zero tariffs : शून्य शुल्क के नए दौर में भारत के समुद्री निर्यात की प्रतीक ताज़ा झींगे और स्क्विड ब्रिटेन के बाजार की ओर

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Correspondent: GT Express | 26.07.2025 | Ghar Tak Express |

24 जुलाई 2025 को भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) के आर्थिक संबंधों में एक ऐतिहासिक पड़ाव तब आया, जब दोनों देशों ने व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौते (Comprehensive Economic and Trade Agreement – CETA) पर औपचारिक रूप से हस्ताक्षर किए। इस मौके पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर कीर स्टार्मर की उपस्थिति में, भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री श्री पीयूष गोयल और यूके के व्यापार एवं वाणिज्य मंत्री श्री जोनाथन रेनॉल्ड्स ने इस बहुप्रतीक्षित समझौते पर हस्ताक्षर किए।

समझौते की प्रमुख विशेषताएं

भारत-यूके सीईटीए 99% टैरिफ लाइनों पर शून्य शुल्क की सुविधा प्रदान करता है, जो न केवल वस्तु व्यापार को बढ़ावा देगा बल्कि सेवा क्षेत्रों के लिए भी नए अवसरों के द्वार खोलेगा। खासकर भारत के समुद्री खाद्य क्षेत्र के लिए यह समझौता अत्यंत लाभकारी सिद्ध हो सकता है। समझौते के तहत अब यूके की टैरिफ श्रेणी ‘ए’ में आने वाले सभी मत्स्य और समुद्री उत्पाद 100% ड्यूटी-फ्री एक्सेस के दायरे में आ गए हैं।

भारतीय समुद्री निर्यातकों के लिए वरदान

इस कर-मुक्त पहुँच से भारतीय समुद्री निर्यातकों की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में बड़ा सुधार होगा। पहले इन उत्पादों पर 0% से 21.5% तक का शुल्क लगता था, जिससे लागत बढ़ जाती थी और प्रतिस्पर्धियों—जैसे वियतनाम और सिंगापुर—के मुकाबले भारत पिछड़ जाता था। अब भारत उन देशों की कतार में आ गया है जिनके पास पहले से यूके के साथ एफटीए थे, जैसे कि यूके-वीएफटीए (UK-VFTA) और यूके-एसएफटीए (UK-SFTA)।

कौन-कौन से उत्पाद लाभान्वित होंगे?

सीईटीए के तहत शुल्क-मुक्त उत्पादों की सूची में प्रमुख एचएस कोड शामिल हैं:

HS Code 03: मछली, क्रस्टेशियन (झींगा, केकड़ा), मोलस्क (स्क्विड, ऑक्टोपस), फ्रोजन पॉम्फ्रेट, लॉबस्टर

HS Code 05: मूंगा, कौड़ी, आर्टेमिया जैसे सजावटी उत्पाद

HS Code 15: मछली के तेल और वसा

HS Code 1603/1604/1605: तैयार समुद्री खाद्य, कैवियार, अर्क, जैली

HS Code 23: पशु चारा हेतु समुद्री अवशेष

HS Code 95: मछली पकड़ने का उपकरण (रील, हुक, जाल आदि)

हालाँकि, एचएस कोड 1601, जिसमें सॉसेज जैसे तैयार उत्पाद आते हैं, उन्हें कोई लाभ नहीं मिलेगा क्योंकि वे ‘यू’ श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

मौजूदा निर्यात और संभावनाएं

वर्ष 2024-25 में भारत का कुल समुद्री खाद्य निर्यात 7.38 अरब डॉलर (60,523 करोड़ रुपए) तक पहुँच गया, जिसमें से 4.88 अरब डॉलर की आय अकेले फ्रोजन झींगे से हुई। यूके को किया गया निर्यात 104 मिलियन डॉलर था, जिसमें 80 मिलियन डॉलर फ्रोजन झींगे से आया — यानी यूके को निर्यात का 77% हिस्सा सिर्फ झींगे का रहा।

भारत के प्रमुख निर्यात उत्पाद

भारत, ब्रिटेन को मुख्यतः निम्नलिखित समुद्री उत्पाद निर्यात करता है:

वन्नामेई झींगा (Litopenaeus Vannamei)

फ्रोजन स्क्विड

झींगा मछली

फ्रोजन पॉम्फ्रेट

ब्लैक टाइगर झींगा

अब इन सभी को ब्रिटेन में शून्य शुल्क के साथ भेजा जा सकेगा, जिससे इनकी बाजार हिस्सेदारी और मांग बढ़ेगी।

उत्पादन क्षमता और मूल्यवर्धन

प्रमुख राज्य और क्षेत्र

भारत के प्रमुख समुद्री खाद्य निर्यातक राज्य—आंध्र प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात—सीईटीए से सबसे ज्यादा लाभ उठा सकते हैं। ये राज्य पहले से ही सुपर-फ्रोजन, वैक्यूम पैकिंग, और प्री-कुक्ड झींगे जैसी तकनीकों में अग्रणी हैं। ब्रिटेन के स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी (SPS) मानकों को पूरा करने के लिए इन राज्यों में प्रशिक्षण, प्रमाणीकरण और गुणवत्ता नियंत्रण को और मजबूती दी जा रही है।

मत्स्य क्षेत्र की सामाजिक और आर्थिक भूमिका

भारत का मत्स्य क्षेत्र 2.8 करोड़ भारतीयों की आजीविका से जुड़ा हुआ है। यह वैश्विक मछली उत्पादन में 8% योगदान देता है। मत्स्य पालन का बढ़ता निर्यात न केवल राजस्व में वृद्धि, बल्कि तटीय क्षेत्रों में रोज़गार और महिला सशक्तिकरण के लिए भी अवसर लेकर आ रहा है।

वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत की स्थिति

सीईटीए से पहले, भारत को वियतनाम और सिंगापुर जैसे देशों के सामने कर संरचना के कारण नुकसान उठाना पड़ता था। अब जब भारत भी एफटीए के दायरे में आ गया है, तो वह प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य पर अपने उत्पाद ब्रिटेन में भेज सकता है। भारत की विशाल उत्पादन क्षमता, प्रशिक्षित मानव संसाधन और उन्नत लॉजिस्टिक सिस्टम उसे ग्लोबल मार्केट लीडर बनने की ओर अग्रसर कर रहे हैं।

सतत विकास और टिकाऊ मत्स्य पालन

सीईटीए में केवल व्यापार नहीं, बल्कि सतत मत्स्य प्रबंधन के लिए भी दिशानिर्देश दिए गए हैं। दोनों देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि ओवरफिशिंग, अनाधिकृत शिकार, और प्रजातियों की रक्षा के लिए साझा कदम उठाए जाएँगे। इससे दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित होगी।

भारत-यूके व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता (CETA) के तहत, लगभग 99% टैरिफ लाइनों को पूर्णतः शुल्क मुक्त किया गया है। इसका अर्थ यह है कि अब भारत से यूके को निर्यात होने वाले अधिकतर उत्पादों पर किसी प्रकार का सीमा शुल्क (Import Duty) नहीं लगेगा। इससे उत्पाद की कुल लागत में भारी गिरावट आएगी और भारतीय निर्यातकों को ब्रिटेन में बेहतर मूल्य प्रतिस्पर्धा का लाभ मिलेगा। विशेष रूप से समुद्री खाद्य क्षेत्र में यह राहत अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहले इन उत्पादों पर 0% से 21.5% तक का शुल्क लगाया जाता था।

भारतीय निर्यातकों को वहाँ समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलेगा। उद्योग विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस समझौते के बाद भारत का समुद्री खाद्य निर्यात ब्रिटेन को अगले कुछ वर्षों में 70% तक बढ़ सकता है, जो छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए बड़े कारोबारी अवसर खोलता है।

झींगे, स्क्विड, और प्रोसेस्ड सीफूड जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों के लिए लाभकारी होगा, जिन पर पहले अधिक शुल्क लगता था। भारत की उच्च गुणवत्ता, लागत दक्षता, और बेहतर आपूर्ति शृंखला के कारण अब वह ब्रिटेन में अधिक मजबूती से मुकाबला कर सकेगा।

 गुजरात में लॉजिस्टिक सुविधाएं मजबूत हैं। अब जबकि ब्रिटेन के Sanitary and Phytosanitary (SPS) मानकों को ध्यान में रखते हुए इन राज्यों ने बुनियादी ढाँचे को और उन्नत किया है, इसलिए इन्हें सीधे तौर पर अधिक निर्यात, अधिक रोजगार और उच्च आय का लाभ मिलेगा।

 रेडी-टू-कुक उत्पाद शामिल हैं। यूके जैसे विकसित बाजारों में ऐसे उत्पादों की माँग अधिक है और अब इन पर कोई शुल्क न लगने से उच्च मूल्य वाली खेपों का लाभ भारत को मिल सकता है। यह SMEs और महिला-सशक्त प्रसंस्करण इकाइयों को भी बढ़ावा देगा।

CETA केवल व्यापार बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थायी मत्स्य पालन, पर्यावरणीय संतुलन, और खाद्य सुरक्षा के मानकों को बढ़ावा देता है। भारत ने यूके के साथ मिलकर एक साझा रोडमैप तैयार किया है, जिसके तहत निर्यात से पहले उत्पादों की SPS टेस्टिंग, रेजिड्यू मॉनिटरिंग, और फार्म-टू-प्लेट ट्रेसबिलिटी को मजबूती दी जा रही है। इससे भारतीय उत्पाद ब्रिटेन के सुपरमार्केट्स और HoReCa (Hotels, Restaurants, Catering) क्षेत्र में विश्वसनीय ब्रांड के रूप में स्थापित होंगे।

 अब, कर-मुक्त पहुँच, मूल्यवर्धन, प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य निर्धारण, और वैश्विक संधियों में समान भागीदारी के चलते, भारत की हिस्सेदारी में तेज़ और सतत वृद्धि की पूरी संभावना है। अगले दो वर्षों में यह आंकड़ा 5% से 7% तक पहुँच सकता है, जिससे भारत का कुल समुद्री खाद्य निर्यात भी 10 अरब डॉलर के पार जा सकता है।

Source : PIP

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