Correspondent: GT Express | 10.07.2025 | Ghar Tak Express |
गुरुवार को गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर देशभर में श्रद्धा, भक्ति और अध्यात्म की अनूठी छटा देखने को मिली। देश के प्रमुख तीर्थस्थलों—अयोध्या, प्रयागराज और काशी—में लाखों श्रद्धालुओं ने ब्रह्म मुहूर्त से ही स्नान, पूजन और गुरु वंदना कर आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव किया। सरयू, संगम और गंगा के घाटों पर श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा। “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु” की गूंज और “जय गुरु देव” के जयकारों से समूचा वातावरण भक्तिमय हो उठा।
अयोध्या में ऐतिहासिक उल्लास
अयोध्या धाम में इस बार गुरु पूर्णिमा का पर्व अत्यंत भव्य और ऐतिहासिक रहा। तड़के ब्रह्म मुहूर्त में ही सरयू तट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। पुरुष, महिलाएं और बच्चे पारंपरिक परिधान में मां सरयू के पवित्र जल में स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करते दिखे। इसके पश्चात वे मठ-मंदिरों की ओर प्रस्थान कर अपने-अपने गुरुओं की वंदना में लीन हो गए। रामनामी ओढ़े श्रद्धालु “हर हर महादेव” और “जय श्रीराम” के साथ-साथ “जय गुरु देव” के घोष करते रहे। अयोध्या के प्रमुख मठों—दिगंबर अखाड़ा, रामवल्लभाकुंज, हनुमानगढ़ी आदि में भक्तों का तांता लगा रहा।
प्रयागराज में संगम पर आस्था की डुबकी
प्रयागराज के त्रिवेणी संगम पर भी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आस्था का विराट समागम देखने को मिला। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगाने के लिए देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुंचे। अलसुबह से ही स्नान की लंबी कतारें लग गईं। स्नान के बाद श्रद्धालु मठों में जाकर संतों से आशीर्वाद प्राप्त करते, भिक्षा व दक्षिणा अर्पित करते दिखे। संगम तट पर अनेक स्थलों पर भजन-कीर्तन, सत्संग और कथा आयोजन हुए। संत समाज की उपस्थिति में “गुरु ज्ञान की जड़ है” जैसे उपदेशों से श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
प्रशासन ने प्रयागराज में सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतज़ाम किए थे। घाटों पर NDRF, PAC, जल पुलिस व स्वयंसेवक तैनात रहे। ड्रोन से निगरानी और CCTV कैमरों के जरिए हर गतिविधि पर नजर रखी गई।
काशी के घाटों पर डटा रहा श्रद्धा का कारवां
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट सहित अन्य घाटों पर भी श्रद्धालुओं का जनसैलाब देखा गया। भले ही गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण कुछ घाट जलमग्न हो गए हों, पर श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई। लोग सुरक्षित स्थानों से स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देते और मां गंगा की आरती करते दिखे। घाटों पर पारंपरिक आरती के साथ-साथ ‘गुरु-पूजन समारोह’ भी आयोजित हुए। श्रद्धालु स्नान के पश्चात काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर बाबा के दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित कर रहे थे।
मध्य प्रदेश के विदिशा से आए श्रद्धालु जय राम पटेल ने कहा, “हर साल गुरु पूर्णिमा पर गंगा स्नान करना हमारे लिए परंपरा है। इस बार बाबा विश्वनाथ के दर्शन का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ।” वहीं, बलिया से आए कमलेश मिश्रा ने बताया, “काशी का महत्व शब्दों में नहीं समाया जा सकता। यहां आकर आत्मा को अद्भुत शांति मिलती है।”
गुरु की महिमा पर संतों का वक्तव्य
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर काशी, अयोध्या और प्रयागराज के कई संतों व पुरोहितों ने गुरु की महिमा पर प्रवचन दिए। काशी के पुरोहित गोपाल दास ने कहा, “गुरु पूर्णिमा आत्मा की जागृति का पर्व है। गुरु ही वह प्रकाश हैं जो अज्ञानता के अंधकार को दूर कर आत्मा को परमात्मा से जोड़ते हैं।”
गुरु पूर्णिमा का सांस्कृतिक व आध्यात्मिक महत्व
पर्व का नाम
गुरु पूर्णिमा — यह पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। यह एक ऐसा पावन अवसर है जब शिष्य अपने गुरु के प्रति श्रद्धा, आदर और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। गुरु को जीवन के अंधकार को मिटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाला माना जाता है।
तिथि
यह पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को आता है, जो वर्षा ऋतु की पूर्णिमा होती है। यह दिन पंचांग के अनुसार हर वर्ष बदलता है, परन्तु इसका आध्यात्मिक महत्व अटल रहता है। वर्षा ऋतु में वातावरण शुद्ध होता है और साधना के लिए अनुकूल समय माना जाता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। वेदव्यास जी ने चारों वेदों का संकलन और वर्गीकरण कर ज्ञान को सुव्यवस्थित किया। उन्होंने महाभारत और 18 पुराणों की रचना भी की। उन्हें ‘आदि गुरु’ कहा जाता है। इसलिए यह दिन गुरु-परंपरा के उद्गम का प्रतीक भी है।
प्रतीकात्मक अर्थ
यह पर्व गुरु के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और आत्मज्ञान की साधना का प्रतीक है। आध्यात्मिक दृष्टि से, गुरु जीवन के अज्ञान रूपी अंधकार को दूर कर आत्मज्ञान का प्रकाश देते हैं। यह दिन उस दिव्य संबंध की स्मृति और साधना का अवसर होता है।
प्रमुख परंपराएं
गुरु पूर्णिमा पर देशभर में अनेक धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। परंपरागत रूप से लोग:
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सुबह सूर्योदय से पूर्व पवित्र नदियों या सरोवरों में स्नान करते हैं।
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गुरु के चरणों में पुष्प अर्पण, वस्त्र, फल, दक्षिणा आदि समर्पित कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
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दान-पुण्य, जैसे अन्न, वस्त्र या धन का दान किया जाता है।
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सत्संग, भजन-कीर्तन और प्रवचन में भाग लेते हैं, जिससे आत्मिक शांति और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
मुख्य स्थल जहाँ विशेष आयोजन होते हैं
गुरु पूर्णिमा का उत्सव विशेष रूप से धार्मिक एवं तीर्थ स्थलों पर भव्य रूप में मनाया जाता है। प्रमुख स्थानों में शामिल हैं:
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अयोध्या – श्रीराम के गुरु वशिष्ठ की परंपरा से जुड़ा स्थल
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प्रयागराज – त्रिवेणी संगम पर विशाल स्नान और संतों की संगत
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वाराणसी – काशी विश्वनाथ के शहर में बड़ी संख्या में गुरु पूर्णिमा उत्सव
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हरिद्वार – गंगा तट पर आश्रमों में भजन-सत्संग
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नासिक और उज्जैन – गुरुओं और संतों की परंपरा से जुड़े प्रसिद्ध तीर्थ स्थल
इन स्थानों पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और साधना-पूजन करते हैं।
प्रशासनिक व्यवस्थाएं
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तीर्थ स्थलों व बड़े शहरों में भीड़भाड़ को देखते हुए प्रशासन द्वारा विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं, जैसे:
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जल पुलिस और NDRF (राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल) की तैनाती – नदी व घाटों पर सुरक्षा व्यवस्था हेतु
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CCTV कैमरों से निगरानी – भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा के लिए
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स्वास्थ्य शिविरों की स्थापना – श्रद्धालुओं के लिए प्राथमिक चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएं
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भीड़ नियंत्रण व बैरिकेडिंग – सुचारु व्यवस्था हेतु वालंटियर्स, होमगार्ड्स और पुलिस बल तैनात
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स्वच्छता व पेयजल सुविधा – नगर निगम व स्थानीय निकायों द्वारा विशेष प्रबंध
Source : DD News
गुरु पूर्णिमा अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. गुरु पूर्णिमा क्या है?
उत्तर:
गुरु पूर्णिमा भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परंपरा को सम्मान देने का पर्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा, भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
Q2. गुरु पूर्णिमा कब मनाई जाती है?
उत्तर:
यह पर्व हर साल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा (वर्षा ऋतु की पूर्णिमा) को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार इसकी तिथि हर वर्ष बदलती रहती है।
Q3. गुरु पूर्णिमा का इतिहास क्या है?
उत्तर:
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने वेदों का संकलन किया और महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना की। उन्हें ‘आदि गुरु’ कहा जाता है।
Q4. गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व क्या है?
उत्तर:
इस दिन को आत्मज्ञान, गुरु भक्ति और आंतरिक शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हमें जीवन में गुरु के महत्व की याद दिलाता है।
Q5. गुरु पूर्णिमा पर किन प्रमुख परंपराओं का पालन किया जाता है?
उत्तर:
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ब्रह्म मुहूर्त में पवित्र स्नान
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गुरु पूजन व आशीर्वाद ग्रहण
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दान-पुण्य करना
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सत्संग, भजन-कीर्तन और प्रवचन सुनना
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