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G7 विदेश मंत्रियों की बैठक में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर गहरी चिंता, वार्ता बहाली की मांग

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दुनिया के सात प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह

दुनिया के सात प्रमुख औद्योगिक देशों के समूह — G7 — के विदेश मंत्रियों ने हाल ही में नीदरलैंड्स के ऐतिहासिक शहर हेग में आयोजित एक अहम बैठक में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की। मंत्रियों ने इस विषय पर एक संयुक्त बयान जारी करते हुए ईरान से पारदर्शी, सत्यापन योग्य और टिकाऊ परमाणु समझौते की दिशा में बातचीत फिर शुरू करने का आह्वान किया। यह बैठक ऐसे समय हुई है जब पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव लगातार बढ़ रहा है, और परमाणु अप्रसार को लेकर वैश्विक चिंताएं फिर से सामने आ रही हैं।

इस लेख में हम इस बैठक की प्रमुख घोषणाओं, ईरान की परमाणु नीति की पृष्ठभूमि, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की भूमिका, परमाणु अप्रसार संधि (NPT) की अनिवार्यता और इस संकट से जुड़े संभावित भू-राजनीतिक नतीजों की विस्तार से समीक्षा करेंगे।


बैठक की समयसंगति और वैश्विक संदर्भ

G7 — जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं — के विदेश मंत्री यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि के साथ 2025 की गर्मियों में हेग में मिले। यह बैठक यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-गाज़ा संघर्ष, और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में तनाव के बीच हुई, जहां परमाणु अप्रसार और पश्चिम एशिया की स्थिरता को लेकर चिंता तेजी से बढ़ी है।

इस बैठक में ईरान का परमाणु कार्यक्रम चर्चा के केंद्र में रहा, जिसे लेकर G7 देशों ने चेतावनी दी कि यदि तत्काल वार्ता बहाल नहीं हुई, तो यह वैश्विक सुरक्षा ढांचे के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।


संयुक्त बयान की मुख्य बातें

बैठक के बाद जारी किए गए बयान में G7 विदेश मंत्रियों ने ईरान से निम्नलिखित प्रमुख मांगें की:

  1. IAEA के साथ तत्काल और पूर्ण सहयोग की बहाली:
    ईरान को परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ पारदर्शिता बरतनी होगी और सभी परमाणु गतिविधियों की सत्यापन योग्य जानकारी उपलब्ध करानी होगी।

  2. परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का अनुपालन:
    बयान में कहा गया कि ईरान को NPT का सदस्य बना रहना चाहिए और इसके अंतर्गत अपनी कानूनी एवं नैतिक जिम्मेदारियों का पूरी तरह पालन करना चाहिए।

  3. IAEA निरीक्षकों को निर्बाध पहुंच:
    G7 ने ईरान से मांग की कि वह IAEA निरीक्षकों को सभी आवश्यक स्थलों पर बिना किसी बाधा के निरीक्षण की अनुमति दे, ताकि वैश्विक समुदाय को भरोसा हो सके कि कोई गुप्त परमाणु गतिविधि नहीं हो रही है।

  4. वर्तमान स्थिति के समाधान हेतु वार्ता का पुनारंभ:
    G7 देशों ने वार्ता की मेज पर लौटने को “तत्काल आवश्यकता” बताया और जोर दिया कि केवल एक टिकाऊ समझौता ही क्षेत्रीय शांति और वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।


ईरान की परमाणु नीति: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

ईरान ने 1970 के दशक में अपने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की थी, जो 2000 के दशक की शुरुआत तक बड़े स्तर पर बढ़ चुका था। अमेरिका और पश्चिमी देशों को यह आशंका बनी रही कि ईरान का कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों की आड़ में परमाणु हथियारों के विकास की दिशा में अग्रसर है।

2015 में, लंबे कूटनीतिक प्रयासों के बाद, JCPOA (Joint Comprehensive Plan of Action) के तहत एक समझौता हुआ, जिसमें ईरान ने यूरेनियम संवर्धन पर नियंत्रण, परमाणु स्थलों की निगरानी और कई तकनीकी सीमाओं को स्वीकार किया। बदले में, उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटाया गया।

2018 में अमेरिका द्वारा JCPOA से एकतरफा बाहर निकलने और फिर से प्रतिबंध लगाने के बाद ईरान ने धीरे-धीरे समझौते की शर्तों से पीछे हटना शुरू कर दिया, जिससे संकट और गहरा हो गया।


IAEA की भूमिका और चुनौतियाँ

IAEA, संयुक्त राष्ट्र की परमाणु प्रहरी संस्था है, जिसका उद्देश्य परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना है। हाल के वर्षों में एजेंसी ने ईरान के परमाणु स्थलों तक पहुंच को लेकर कई शिकायतें की हैं। कुछ स्थलों पर निरीक्षकों को प्रवेश नहीं दिया गया, वहीं कई मामलों में यूरेनियम संवर्धन की दर JCPOA की शर्तों से कहीं अधिक पाई गई।

IAEA के महानिदेशक ने हाल ही में कहा था कि “ईरान की ओर से पारदर्शिता और तकनीकी सहयोग की भारी कमी चिंता का विषय है।” G7 ने इस बात को गंभीरता से लेते हुए ईरान को IAEA के साथ दोबारा सक्रिय सहयोग की मांग की है।


पश्चिम एशिया में शक्ति संतुलन और क्षेत्रीय तनाव

ईरान का परमाणु कार्यक्रम इज़राइल, सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के लिए एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। इज़राइल ने तो कई बार संकेत दिए हैं कि यदि ईरान ने परमाणु हथियार हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाया, तो वह “रोकथाम के सैन्य विकल्पों” का सहारा ले सकता है।

सऊदी अरब ने भी संकेत दिए हैं कि यदि ईरान परमाणु हथियार बनाता है, तो वह खुद भी परमाणु तकनीक की ओर अग्रसर होगा, जिससे पूरे क्षेत्र में परमाणु हथियारों की दौड़ शुरू हो सकती है।


अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: रूस, चीन और भारत का रुख

जहां G7 देशों ने कठोर रुख अपनाया है, वहीं रूस और चीन इस मुद्दे पर संतुलित और ईरान-समर्थक नीति अपनाते रहे हैं। उनका मानना है कि पश्चिमी प्रतिबंध और कड़े सुर वाले बयान ही इस संकट को बढ़ा रहे हैं। चीन ने JCPOA को पुनर्जीवित करने में मध्यस्थता की पेशकश की है, वहीं रूस के लिए यह मामला पश्चिम के प्रभाव को संतुलित करने का माध्यम बन चुका है।

भारत ने पारंपरिक रूप से शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के पक्ष में रहकर, संयमित बयान दिए हैं। भारत की ऊर्जा जरूरतें ईरान से जुड़े हैं, साथ ही उसका भू-राजनीतिक रुख उसे संतुलन बनाए रखने को प्रेरित करता है।


JCPOA की बहाली: क्या अब भी संभव है समाधान?

G7 की यह बैठक एक संकेत है कि पश्चिमी देश अब भी JCPOA को पुनर्जीवित करना चाहते हैं, लेकिन यह तभी संभव है जब ईरान विश्वास बहाली के लिए कदम उठाए। संभावित समाधान इस प्रकार हैं:

  • चरणबद्ध प्रक्रिया:
    ईरान कुछ तकनीकी सीमाओं को पुनः लागू करे, बदले में कुछ प्रतिबंध हटाए जाएं।

  • राजनयिक मध्यस्थता:
    ओमान, स्विट्ज़रलैंड, या भारत जैसे देशों की भूमिका बढ़े जो दोनों पक्षों को एक मंच पर ला सकें।

  • संयुक्त निगरानी प्रणाली:
    IAEA और क्षेत्रीय एजेंसियों की एक संयुक्त निगरानी व्यवस्था बनाई जाए।

  • वैश्विक गारंटी:
    यदि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर सीमाएं मानता है, तो उसे वैश्विक स्तर पर आर्थिक सहयोग और निवेश की गारंटी दी जाए।


G7 की नीति: कठोरता बनाम कूटनीति

G7 का रुख अब पहले से अधिक संगठित और सामूहिक दिखता है। अमेरिका अब अकेला निर्णयकर्ता नहीं है, बल्कि वह अपने यूरोपीय सहयोगियों के साथ मिलकर नीतिगत दिशा तय कर रहा है। यह एक सकारात्मक संकेत है कि यदि G7 एक स्वर में काम करे, तो JCPOA जैसे जटिल समझौते भी पुनर्जीवित हो सकते हैं।

हालांकि, कूटनीति और दबाव दोनों को संतुलित करना होगा। अधिक दबाव से ईरान पीछे हट सकता है, जबकि अत्यधिक नरमी से उसकी हठधर्मिता बढ़ सकती है।

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