“जगन्नाथ” – केवल एक नाम नहीं, एक सनातन चेतना
“जगन्नाथ” शब्द अपने आप में एक सार्वभौमिक भाव है – “जगत” अर्थात् समग्र सृष्टि और “नाथ” अर्थात् स्वामी। यह केवल भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम नहीं है, यह एक परंपरा है, एक चलती-फिरती संस्कृति, जो युगों से श्रद्धा, एकता और मानवता का संचार करती आई है। जब यह दिव्यता भारत से हजारों किलोमीटर दूर, दुबई की बहुसांस्कृतिक धरती पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है, तो वह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं रह जाता – वह बन जाती है आत्मा की पहचान, संस्कृति की पुनर्स्थापना और परंपरा की पुनरावृत्ति।
जब स्कूल बना तीर्थ – ‘लघु पुरी’ का रूप
दुबई का स्टार इंटरनेशनल स्कूल, जहां शिक्षा का दीप जलता है, उस दिन आस्था की अखंड ज्योति से आलोकित हो गया। जैसे ही आयोजन की शुरुआत हुई, इस स्कूल को ‘लघु पुरी’ का रूप दिया गया। भारत के पुरी जगन्नाथ मंदिर की छवि यहाँ जीवंत हो उठी।
- भारत से आयातित सजावटी वस्तुओं से सजावट की गई।
- रंगोली, पुष्पमालाएं और पारंपरिक झूमर द्वारों और गलियारों को अलंकृत कर रहे थे।
- ओड़िशा की प्रसिद्ध पट्टचित्र की झांकियाँ पूरी दीवारों पर उकेरी गई थीं।
- मुख्य प्रवेश द्वार को गुंबदाकार मंदिर शैली में सजाया गया।
विद्यालय की दीवारों से लेकर हर कोने तक मंत्रों की गूंज थी:
“हरि बोल!”, “जय जगन्नाथ!”, “ओम नमो भगवते वासुदेवाय!”
बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर आयु वर्ग के लोग इस अध्यात्म में डूबे हुए थे। यह स्थल एक दिन के लिए तीर्थ बन गया।
अध्याय 2: सातों अमीरातों से उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के सातों अमीरातों — अबू धाबी, दुबई, शारजाह, अजमान, उम्म अल-कुवैन, रास अल खैमाह और फुजैरा — से हज़ारों श्रद्धालु उमड़े। विशेषकर ओडिया समुदाय के प्रवासी परिवारों ने इसे पारिवारिक महाकुंभ बना दिया।
परिधान में संस्कृति की जीवंतता:
- महिलाएं पारंपरिक शंखचूड़ी साड़ियों में, माथे पर लाल बिंदी, हाथों में चूड़ियाँ और पैरों में आलता लगाए उपस्थित थीं।
- पुरुष धोती-कुर्ता में, माथे पर चंदन तिलक और कांधे पर गमछा डाले दिखे।
- छोटे-छोटे बच्चे राधा, कृष्ण, बलराम, सुभद्रा और नारद मुनि जैसे स्वरूपों में सजे थे।
यह दृश्य किसी ओडिया गाँव की गलियों जैसा प्रतीत हो रहा था। प्रवासी जीवन की गंभीरता को जैसे इस रंगीनता ने पल भर के लिए भुला दिया हो ।
‘पाहंडी बीजे’ – देवताओं का स्वागत
पाहंडी बीजे – वह शुभ क्षण जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा रथ तक लाए जाते हैं। भारत की यह पावन परंपरा दुबई की धरती पर हूबहू जीवंत की गई।
- भगवान को झूमते हुए भक्तों की भुजाओं पर लाया गया।
- महिलाएं सिर पर कलश लेकर आगे चल रही थीं।
- ढोल, मृदंग, झांझ और शंख की ध्वनि से वातावरण आध्यात्मिक हो गया।
- पूरे मार्ग को रंगोली और पुष्पों से सजाया गया।
श्रद्धालु ऐसा अनुभव कर रहे थे जैसे पुरी की गलियों में ही चल रहे हों। यह देवताओं की यात्रा नहीं, आत्मा की यात्रा थी।
रथ खींचना – प्रवासी जीवन का सबसे पावन क्षण
जब प्रभु का रथ श्रद्धालुओं के सामने आया, तो एक भावनात्मक लहर सी दौड़ गई। हजारों लोग — बच्चे, युवा, महिलाएं, बुजुर्ग — एक स्वर में बोले:
“जय जगन्नाथ!”
और फिर रथ खींचने की रस्म आरंभ हुई। कोई रस्सी पकड़कर खींच रहा था, कोई सिर पर हाथ रखकर आराधना कर रहा था। किसी की आंखों से आँसू बह रहे थे, तो किसी की मुस्कान में श्रद्धा झलक रही थी।
यह पल जात-पात, धर्म, राष्ट्रीयता – सब सीमाओं को पार कर गया। हर कोई केवल एक भक्त था – प्रभु के रथ की डोरी को पकड़ने को आतुर।
महाप्रसाद – जब स्वाद बना श्रद्धा
जगन्नाथ महाप्रसाद को ओडिया संस्कृति में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इसे ‘भोग’ नहीं, ‘प्रभु का प्रसाद’ माना जाता है। दुबई रथ यात्रा में भी छप्पन भोग की परंपरा पूरी श्रद्धा से निभाई गई।
प्रमुख व्यंजन:
- दालमा
- खिचड़ी
- बड़ी चुरा
- दही पखाला
- खाजा
- छेना पोड़ा
- मंडा पिठा
- पायस
100 से अधिक ओडिया परिवारों ने स्वेच्छा से सेवा कर यह प्रसाद तैयार किया। पहले भगवान को अर्पित किया गया और फिर सभी भक्तों ने साथ बैठकर सामूहिक रूप से भोजन ग्रहण किया। यह अनुभव केवल स्वाद से नहीं, आत्मा से जुड़ा था।
जब मंच पर उतरी संस्कृति – सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
शाम को आयोजित सांस्कृतिक संध्या ने जैसे हर दर्शक को ओडिशा की धरती पर पहुँचा दिया। बच्चों और युवाओं की प्रस्तुतियाँ न केवल मनोरंजन का माध्यम थीं, बल्कि वे प्रवासी पीढ़ी में संस्कृति के बीज बो रही थीं।
मुख्य प्रस्तुतियाँ:
- ओड़िसी नृत्य: मंगलाचरण, बतो नृत्य, दशावतार जैसे रूपों में।
- देवदासी नृत्य: शास्त्रीय और आध्यात्मिक संगम।
- 108 महामंत्रों का जाप: पूरे वातावरण में दिव्यता फैल गई।
- बाल नाट्य: ओडिया लोक कथाओं पर आधारित नाटकों की श्रृंखला।
यह मंच केवल प्रस्तुति का नहीं था – यह संस्कारों के बीजारोपण का केंद्र था।
नेतृत्व की प्रेरणा – जिन्होंने स्वप्न को साकार किया
प्रत्येक भव्य आयोजन के पीछे कई समर्पित चेहरे होते हैं, जिन्होंने चुपचाप परिश्रम कर उस स्वप्न को साकार किया होता है।
प्रमुख संयोजक:
- अध्यक्ष: अमिया मिश्रा – “यह आयोजन हमारी पहचान का हिस्सा है।”
- महासचिव: ललित पटनायक
- सांस्कृतिक प्रमुख: रश्मि मोहंती
- भोजन संयोजन: सुबोध राउत्रे
- बाल विभाग: पल्लवी दास
- स्वागत समिति: नित्यानंद साहू, वैशाली नायक
इन सभी ने न केवल आयोजन को साकार किया, बल्कि उसे एक भावनात्मक और आत्मिक गहराई भी दी।
जब सरकार बनी संबल – UAE प्रशासन की भागीदारी
कोई भी सार्वजनिक आयोजन प्रशासन के सहयोग के बिना संभव नहीं होता। UAE प्रशासन ने रथ यात्रा के लिए पूर्ण सहयोग दिया।
- सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद थी।
- ट्रैफिक नियंत्रण योजनाबद्ध थी।
- चिकित्सा सुविधाएं ऑन-साइट उपलब्ध थीं।
- आयोजन की सभी कानूनी औपचारिकताएं सरलता से पूरी की गईं।
भारतीय दूतावास के वरिष्ठ अधिकारी, काउंसल जनरल समेत, इस आयोजन में सम्मिलित हुए। यह आयोजन सांस्कृतिक कूटनीति का आदर्श उदाहरण बन गया।
रथ यात्रा का सांस्कृतिक महत्व – प्रवासी जीवन में नई ऊर्जा
यह आयोजन केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं था, यह एक संस्कृति संवाद था। इससे:
- प्रवासी बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ने का अवसर मिला।
- परिवारों में सामूहिकता, सहभोजन और साझा श्रद्धा का भाव बढ़ा।
- प्रवासी जीवन में भक्ति और उत्साह की नई ऊर्जा संचारित हुई।
यह आयोजन प्रवासी भारतीयों के लिए एक जीवंत स्मृति बन गया।
डिजिटल युग का यज्ञ – जब सोशल मीडिया बना तीर्थ
2025 का यह आयोजन डिजिटल युग का आदर्श उदाहरण बना।
- #DubaiRathYatra2025 ट्रेंड करता रहा।
- फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम पर लाखों दर्शकों ने देखा।
- लाइव स्ट्रीमिंग, श्रद्धालुओं की प्रतिक्रियाएं, वर्चुअल आरती – सबने इस आयोजन को वैश्विक बना दिया।
- ओडिया प्रवासियों ने ऑनलाइन मंचों पर श्रद्धांजलियां, कविताएं और भक्ति गीत साझा किए।
यह डिजिटल यज्ञ, आस्था और तकनीक का एक सुंदर समन्वय था।
भविष्य की योजनाएं – संस्कृति की स्थायी स्थापना
ओडिशा समाज UAE की दृष्टि अब स्थायी व्यवस्था की ओर है।
. स्थायी जगन्नाथ मंदिर:
- भूमि चिन्हित हो चुकी है।
- वास्तु योजना बन चुकी है।
- शीघ्र ही निर्माण कार्य आरंभ होगा।
ओडिया संस्कृति केंद्र:
- ओडिया भाषा कक्षाएं शुरू की जाएंगी।
- बच्चों के लिए ‘संस्कार शाला’ चलाई जाएगी।
- ओड़िया लोकनृत्य, गीत-संगीत और चित्रकला की कार्यशालाएं होंगी।
यह सब प्रवासी जीवन में भारतीयता के भाव को स्थायित्व प्रदान करने की दिशा में ठोस कदम हैं।
🙏 Dubai Rath Yatra 2025 – FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. दुबई में जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन कहाँ हुआ था?
उत्तर:
यह आयोजन दुबई के Star International School में हुआ, जिसे आयोजन के दिन ‘लघु पुरी’ का रूप दिया गया।
2. इस आयोजन की विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर:
-
भारत से लाई गई पारंपरिक सजावट
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ओड़िशा की पट्टचित्र कला
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मंत्रों की गूंज और सांस्कृतिक परिवेश
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‘पाहंडी बीजे’, रथ खींचने की परंपरा
-
छप्पन भोग महाप्रसाद
-
ओड़िसी और देवदासी नृत्य प्रस्तुतियाँ
-
हजारों श्रद्धालुओं की भागीदारी
3. कौन-कौन से अमीरातों से श्रद्धालु आए थे?
उत्तर:
सातों अमीरातों — अबू धाबी, दुबई, शारजाह, अजमान, उम्म अल-कुवैन, रास अल खैमाह और फुजैरा से श्रद्धालु उपस्थित हुए।
4. कौन-कौन से पारंपरिक व्यंजन महाप्रसाद में परोसे गए?
उत्तर:
महाप्रसाद में मुख्यतः परोसे गए:
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दालमा
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खिचड़ी
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खाजा
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छेना पोड़ा
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बड़ी चुरा
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दही पखाला
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पायस
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मंडा पिठा
5. इस आयोजन के मुख्य संयोजक कौन थे?
उत्तर:
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अध्यक्ष: अमिया मिश्रा
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महासचिव: ललित पटनायक
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सांस्कृतिक प्रमुख: रश्मि मोहंती
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भोजन संयोजन: सुबोध राउत्रे
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बाल विभाग: पल्लवी दास
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स्वागत समिति: नित्यानंद साहू एवं वैशाली नायक