देश को मिला पहला सहकारी विश्वविद्यालय ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ की आधारशिला रखी गई अमित शाह

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भारत के सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने के लिए शनिवार को एक ऐतिहासिक पहल की गई। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के आनंद जिले में देश के पहले सहकारी विश्वविद्यालय ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ की नींव रखी। यह विश्वविद्यालय देश के सहकारी क्षेत्र में प्रशिक्षण, अनुसंधान और नेतृत्व निर्माण का प्रमुख केंद्र बनेगा। इस अवसर पर आयोजित भव्य समारोह में उन्होंने कहा कि यह संस्थान भाई-भतीजावाद को समाप्त कर पारदर्शिता, जवाबदेही और क्षमता आधारित नियुक्तियों को बढ़ावा देगा।

शाह ने बताया कि अब तक सहकारी संस्थाओं में नियुक्त किए गए कर्मचारियों को बाद में प्रशिक्षण दिया जाता था, जिससे कार्य की गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ता था। लेकिन इस विश्वविद्यालय की स्थापना से केवल प्रशिक्षित युवाओं को ही सहकारी क्षेत्र में नियुक्त किया जाएगा। उन्होंने कहा, “यह संस्थान सहकारिता की अवधारणा को मजबूती देगा और योग्य नेतृत्व तैयार करेगा जो इस आंदोलन को देशभर में गति प्रदान करेगा।”

‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ को 125 एकड़ भूमि पर 500 करोड़ रुपये की लागत से विकसित किया जा रहा है। यह संस्थान न केवल सहकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देगा, बल्कि तकनीकी दक्षता, लेखा-जोखा, वैज्ञानिक सोच, मार्केटिंग कौशल और सहकारी मूल्य जैसे विषयों में युवाओं को दक्ष बनाएगा। विश्वविद्यालय में दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के कल्याण की भावना को भी विशेष महत्व दिया जाएगा।

शाह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सहकारी क्षेत्र की महत्ता को पहचानते हुए चार साल पहले सहकारिता मंत्रालय की स्थापना की थी। इसका उद्देश्य गांवों और गरीबों की आर्थिक समृद्धि सुनिश्चित करना है। उन्होंने कहा कि “पिछले चार वर्षों में मंत्रालय ने 60 से अधिक सुधारात्मक कदम उठाए हैं जो सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए उठाए गए अभूतपूर्व निर्णय हैं।”

देशभर में 2 लाख नई प्राथमिक कृषि साख समितियों (PACS) की स्थापना की योजना है, जिनमें से 60,000 PACS इसी साल के अंत तक बन जाएंगी। शाह ने कहा, “सिर्फ PACS में ही 17 लाख कर्मचारियों की आवश्यकता होगी और इनकी पूर्ति के लिए यह विश्वविद्यालय अहम भूमिका निभाएगा।” यह संस्थान भविष्य के सहकारी नेतृत्व को तैयार करेगा जो नीति निर्माण, डेटा विश्लेषण और दीर्घकालीन रणनीति में दक्ष होंगे।

भारत में सहकारिता आंदोलन एक लंबे समय से ग्रामीण विकास, कृषि सुधार, और सामुदायिक सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण स्तंभ रहा है। इसी कड़ी को और मजबूत करते हुए केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने हाल ही में गुजरात के आनंद में त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय के भूमि पूजन समारोह के दौरान एक ऐतिहासिक घोषणा की। उन्होंने बताया कि CBSE (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) ने कक्षा 9 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए ‘सहकारिता’ को एक स्वतंत्र विषय के रूप में अपने पाठ्यक्रम में शामिल कर लिया है।

यह निर्णय भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की भावना के अनुरूप है, जो छात्रों को प्रयोगात्मक ज्ञान, व्यवहारिक कौशल और समाजोपयोगी शिक्षा प्रदान करने पर ज़ोर देती है। यह पहली बार है जब सहकारिता जैसे व्यावसायिक और सामाजिक विषय को स्कूली शिक्षा के औपचारिक पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है, जिससे छात्रों को अब किताबों के बाहर की दुनिया में वास्तविक समस्याओं और समाधानों को समझने का अवसर मिलेगा।

अमित शाह ने इस पहल की व्याख्या करते हुए कहा कि स्कूली स्तर पर ‘सहकारिता’ विषय को पढ़ाने का उद्देश्य यह है कि छात्रों में प्रारंभिक अवस्था से ही सामूहिकता, जिम्मेदारी, लोकतांत्रिक सोच और आर्थिक भागीदारी के मूल्यों को विकसित किया जा सके। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस विषय के माध्यम से विद्यार्थियों को निम्नलिखित महत्वपूर्ण पहलुओं पर ज्ञान दिया जाएगा:

  • सामूहिक भागीदारी (Collective Participation)

  • लोकतांत्रिक निर्णय प्रक्रिया (Democratic Governance)

  • साझा पूंजी निवेश और लाभ वितरण (Equity & Profit Sharing)

  • सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility)

  • आर्थिक पारदर्शिता और जवाबदेही (Transparency & Accountability)

यह सभी तत्व भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में सशक्त नागरिकों और नेतृत्व को तैयार करने के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

CBSE द्वारा सहकारिता को विषय के रूप में लागू करने से शैक्षिक प्रणाली में व्यावसायिक दृष्टिकोण को भी बढ़ावा मिलेगा। यह विषय छात्रों को सिर्फ सिद्धांत नहीं, बल्कि स्थानीय सहकारी संस्थाओं की कार्यप्रणाली, बाज़ार की संरचना, वित्तीय प्रबंधन, और उद्यमिता जैसे आयामों में भी दक्ष बनाएगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि सहकारिता की शिक्षा से छात्र न केवल सहकारी संस्थानों में काम करने के लिए तैयार होंगे, बल्कि वे स्वयं भी मिलकर कार्य करने वाले उपक्रमों को शुरू करने की ओर प्रेरित होंगे। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार और सामाजिक उद्यमिता को नई ऊर्जा मिलेगी।

शाह ने इस मौके पर गुजरात सरकार से आग्रह किया कि राज्य शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में भी सहकारिता विषय को शामिल किया जाए, ताकि राज्य के सभी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि यदि यह प्रयास देशभर के सभी राज्यों में अपनाया जाए, तो भारत एक ऐसा राष्ट्र बन सकता है जिसकी जड़ें सशक्त सहकारी संस्कृति में गहराई से जुड़ी होंगी।

इस निर्णय के लागू होने से उन राज्यों को विशेष लाभ होगा जहाँ सहकारी संस्थाएं कृषि, डेयरी, बैंकिंग और लघु उद्योगों में पहले से ही प्रभावशाली भूमिका निभा रही हैं।

यह विषय न केवल शहरी स्कूलों तक सीमित रहेगा, बल्कि यह ग्रामीण, आदिवासी, और अल्पविकसित क्षेत्रों में पढ़ रहे छात्रों को भी सहकारी आंदोलन के साथ सीधे जुड़ने का अवसर देगा। वे अपने स्थानीय दुग्ध सहकारी, PACS (प्राथमिक कृषि साख समितियां), मंडी समितियों, और महिला स्वयं सहायता समूहों के मॉडल को समझ सकेंगे।

इससे छात्र न केवल पढ़ाई के दौरान स्थानीय संस्थानों के साथ इंटर्नशिप या फील्ड वर्क कर सकेंगे, बल्कि उन्हें आगे चलकर स्थानीय नेतृत्व और विकास योजनाओं के निर्माण में भी भागीदारी करने का मौका मिलेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि CBSE का यह निर्णय स्कूली शिक्षा को केवल डिग्री आधारित नहीं, बल्कि उद्देश्यपूर्ण और जीवन से जुड़ा बनाएगा। भारत के सामाजिक ढांचे में सहकारिता का जो स्थान है, उसे विद्यालय स्तर पर पहचान दिलाकर, शिक्षा को एक सामाजिक परिवर्तन के उपकरण के रूप में स्थापित किया जा सकता है।

शिक्षाविद् और नीति-निर्माता मानते हैं कि यदि यह मॉडल सफल होता है, तो आने वाले वर्षों में भारत में सैकड़ों सहकारी युवा नेता, कृषि उद्यमी, और सामाजिक नवाचारकर्ता तैयार होंगे, जो अपने क्षेत्र की समस्याओं का समाधान सामूहिक प्रयासों से कर सकेंगे।

शाह ने इस अवसर पर कहा कि यह विश्वविद्यालय त्रिभुवनदास किशिदास पटेल के नाम पर स्थापित किया गया है, जिन्होंने देश में अमूल सहकारी आंदोलन की नींव रखी थी। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई यह पहल उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है। यह संस्थान सहकारी संघवाद, पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और शोध आधारित नीति निर्माण की भावना को सशक्त करेगा।

‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ केवल शिक्षण और प्रशिक्षण तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह सहकारी नीति निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभाएगा। यह संस्थान 5, 10 और 25 वर्षों की रणनीति तैयार करने, डेटा विश्लेषण, और वैश्विक सहकारी ट्रेंड्स के अध्ययन में अग्रणी भूमिका निभाएगा। इसके साथ-साथ इनोवेशन लैब्स, रिसर्च फेलोशिप, और थिंक टैंक जैसे तत्वों को भी संस्थान से जोड़ा जाएगा।

देश में 30 करोड़ से अधिक लोग सहकारी आंदोलन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं।

करीब 40 लाख सहकारी कर्मचारी और 80 लाख बोर्ड सदस्य सक्रिय हैं।

यानी हर चौथा भारतीय किसी न किसी रूप में इस क्षेत्र से जुड़ा हुआ है।

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