भारत-घाना के बीच सांस्कृतिक बिदरी कला का फूलदान — घाना के राष्ट्रपति को भेंट

शेयर बाजार

भारत-घाना संबंधों की नई शुरुआत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी बहुप्रतीक्षित पांच देशों की विदेश यात्रा की शुरुआत अफ्रीकी देश घाना से की। यह यात्रा न केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रही, बल्कि इसमें भारतीय सांस्कृतिक कूटनीति की भी झलक देखने को मिली। अपनी इस ऐतिहासिक यात्रा में प्रधानमंत्री मोदी ने घाना के राष्ट्रपति जॉन ड्रामानी महामा, उनकी पत्नी लॉर्डिना महामा, उपराष्ट्रपति प्रो. नाना जेन ओपोकु-अग्येमांग और संसद के स्पीकर अल्बन बैगबिन को भारतीय शिल्पकला से सुसज्जित खास उपहार भेंट किए।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कहा कि “भारत और घाना के संबंध ऐतिहासिक रहे हैं। हम साझा विकास, शांति और समृद्धि की भावना से जुड़े हैं। यह उपहार सिर्फ वस्तुएं नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, संस्कृति और कारीगरी का परिचायक हैं।”


 बिदरी कला का फूलदान — घाना के राष्ट्रपति को भेंट

प्रधानमंत्री मोदी ने घाना के राष्ट्रपति जॉन ड्रामानी महामा को जो उपहार दिया, वह भारतीय धातु शिल्प का बेजोड़ उदाहरण था। यह था – बिदरी कलाकृति से सुसज्जित एक फूलदान। यह कलाकृति कर्नाटक के बीदर से संबंधित है और इसकी विशिष्टता इसकी काली पॉलिश और चांदी की जड़ाई में निहित है।

इस फूलदान को ज़िंक-कॉपर मिश्र धातु से बनाया गया है, और इसमें फूलों की आकृति उकेरी गई है, जो भारत में सौंदर्य, समृद्धि और जीवन की सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती है। यह पूरी तरह से हस्तनिर्मित है और सदियों पुरानी तकनीकों का उपयोग कर कुशल भारतीय कारीगरों द्वारा तैयार किया गया है।


ओडिशा की ‘तारकासी’ कला — फर्स्ट लेडी को चांदी का पर्स

राष्ट्रपति की पत्नी लॉर्डिना महामा को भेंट किया गया चांदी का पर्स न केवल सौंदर्य में अद्वितीय था, बल्कि यह ओडिशा की विश्वप्रसिद्ध ‘तारकासी’ (Silver Filigree) शिल्प का बेहतरीन उदाहरण भी था। यह कला 500 वर्षों से अधिक पुरानी है और मुख्य रूप से कटक शहर में विकसित हुई है।

पर्स में महीन चांदी के तारों से पुष्प और बेल की आकृतियाँ बनाई गई थीं। यह न केवल देखने में अत्यंत आकर्षक था, बल्कि इसमें नारी सशक्तिकरण, सांस्कृतिक गौरव और कारीगरी की जड़ों से जुड़ाव भी झलकता था। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, “यह उपहार भारतीय परंपरा में स्त्री-गौरव और सुरुचि का प्रतीक है।”


कश्मीरी पश्मीना — उपराष्ट्रपति को शाल भेंट

घाना की उपराष्ट्रपति प्रो. नाना जेन ओपोकु-अग्येमांग को कश्मीरी पश्मीना शॉल भेंट की गई। यह शॉल भारतीय वस्त्र परंपरा का शिखर मानी जाती है। इसका निर्माण लद्दाख क्षेत्र की चंगथांगी बकरी के अंडरकोट से प्राप्त ऊन से किया जाता है।

यह शॉल अपनी असाधारण कोमलता, हल्के वजन और गर्माहट के लिए जानी जाती है। उपराष्ट्रपति को दी गई यह पश्मीना शॉल कश्मीरी बुनाई की कालातीत कला का प्रतीक थी, जिसे कश्मीर के कारीगरों ने पारंपरिक हथकरघे पर तैयार किया है। इस उपहार के माध्यम से भारत ने स्त्री नेतृत्व, गरिमा और विरासत के समन्वय का सशक्त संदेश दिया।


हाथी अंबावरी — स्पीकर को मिला शाही प्रतीक

प्रधानमंत्री मोदी ने घाना की संसद के स्पीकर अल्बन बैगबिन को हाथी अंबावरी का भव्य मॉडल उपहार में दिया। यह कृति पश्चिम बंगाल में निर्मित की गई है, जो कि भारत की राजसी परंपरा और कलात्मक विरासत का दर्पण है।

हाथी अंबावरी को पॉलिश किए गए सिंथेटिक आइवरी (कृत्रिम हाथीदांत) से बनाया गया है, जो पर्यावरण के अनुकूल, नैतिक और टिकाऊ विकल्प है। इसमें बारीकी से की गई नक्काशी भारत की मूर्तिकला और नक्काशी के समृद्ध इतिहास को दर्शाती है। अंबावरी (हाथी की पीठ पर बनी शाही सवारी) भारत की राजा-महाराजाओं की परंपरा और उत्सवों की छवि को जीवंत करती है।


बॉक्स न्यूज़:

📦

भारत की सांस्कृतिक कूटनीति का एक नया अध्याय

भारत ने इस यात्रा के दौरान जो उपहार भेंट किए, वे केवल वस्तुएं नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, संस्कृति और शिल्प कौशल का प्रतिनिधित्व करते हैं।

  • बिदरी कलाकर्नाटक (बीदर) की यह धातु कला काले पृष्ठभूमि पर चांदी की जड़ाई के लिए प्रसिद्ध है। यह कला भारत की शाही परंपरा और शिल्प कौशल को दर्शाती है।

  • सिल्वर फिलिग्री (तारकासी)ओडिशा (कटक) की यह बारीक चांदी की नक्काशी की कला 500 वर्षों से जीवित है। उपहार में दिया गया पर्स इस पारंपरिक शिल्प का उत्तम उदाहरण था।

  • पश्मीना शॉलकश्मीर की विश्वविख्यात यह शॉल बारीक ऊन से बनी होती है और अपनी कोमलता व गरिमा के लिए जानी जाती है।

  • अंबावरी हाथी मूर्तिपश्चिम बंगाल में निर्मित इस कलाकृति ने भारत की राजसी परंपरा और पर्यावरण के अनुकूल शिल्प का सशक्त संदेश दिया।

➡️ इन उपहारों के माध्यम से भारत ने चार राज्यों की कला और कारीगरी को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचाया, जिससे भारत की सांस्कृतिक शक्ति का विस्तार अफ्रीकी धरती पर हुआ।


भारत-घाना संबंध: कुछ प्रमुख बिंदु

भारत और घाना के बीच संबंध 1958 में स्थापित हुए और तब से यह रिश्ता लगातार मजबूत हुआ है। घाना को भारत अफ्रीकी महाद्वीप में एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता है।

  • वर्ष 1958 में भारत-घाना के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई थी।

  • दोनों देशों के बीच शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में लंबे समय से सहयोग जारी है।

  • घाना में कई भारतीय कंपनियां जैसे फार्मा, टेक्सटाइल और कृषि उपकरण क्षेत्रों में सक्रिय हैं।

  • घाना भारत की “साउथ-साउथ कोऑपरेशन” नीति में एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और अफ्रीका में भारत की कूटनीतिक उपस्थिति का उभरता केंद्र बन रहा है।


भारत की नई कूटनीतिक शैली: उपहारों से संवाद

प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा ने दिखाया कि कूटनीति केवल रणनीतिक वार्ताओं तक सीमित नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, कला और इतिहास के माध्यम से भी संवाद और संबंधों को गहराई दे सकती है। भारत ने अपने शिल्प, विरासत और आत्मीयता से घाना के जन-जन तक एक संदेश पहुँचाया — कि भारत, सहयोगी ही नहीं, संस्कृति और भावनाओं का साझेदार भी है।


समाप्ति उपहारों में छिपी ‘सांस्कृतिक कूटनीति’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घाना यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक कार्यक्रम नहीं थी, बल्कि यह भारत की आत्मा को उपहारों के रूप में विश्व मंच पर प्रस्तुत करने का अवसर थी। इसने दिखा दिया कि किस प्रकार भारतीय कारीगरी, कला और परंपराएं, आज भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मानवीय और सांस्कृतिक मूल्यों से जोड़ने की क्षमता रखती हैं।

जैसा कि प्रधानमंत्री ने यात्रा के समापन पर कहा –
“जब उपहारों में भावनाएं और परंपराएं जुड़ी हों, तब वे सिर्फ वस्तुएं नहीं रहतीं, बल्कि दो देशों के दिलों को जोड़ने वाली पुल बन जाती हैं।”