Correspondent: GT Express | 10.07.2025 | Ghar Tak Express |
नई दिल्ली में संस्कृति मंत्रालय द्वारा आज एक भव्य प्रदर्शनी और कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य भारत केसरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती की द्विवार्षिक स्मृति को चिह्नित करना था। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत तथा केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम में न केवल डॉ. मुखर्जी के जीवन और विचारों को श्रद्धांजलि दी गई, बल्कि उनकी राष्ट्रनिर्माण में भूमिका पर भी व्यापक चर्चा की गई। इस अवसर पर एक स्मारक डाक टिकट और स्मृति सिक्के का भी अनावरण किया गया, जो भारत केसरी डॉ. मुखर्जी को समर्पित है।
राष्ट्रनिर्माण में डॉ. मुखर्जी का योगदान
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन देशभक्ति, त्याग और सिद्धांतों के प्रति अडिग निष्ठा का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि डॉ. मुखर्जी ने राष्ट्रनिर्माण के हर पहलू में योगदान दिया—चाहे वह शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हो, भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना हो या फिर देश की अखंडता की रक्षा का प्रश्न। उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने तुष्टीकरण की राजनीति के खिलाफ स्पष्ट और निर्भीक स्वर में अपनी बात रखी, और यही गुण उन्हें एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता के रूप में स्थापित करता है।
मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि संस्कृति मंत्रालय ने अगले दो वर्षों तक देशभर में डॉ. मुखर्जी की स्मृति में कार्यक्रम आयोजित करने का संकल्प लिया है। यह द्विवार्षिक अभियान न केवल उनकी विचारधारा को जनमानस तक पहुँचाएगा, बल्कि युवाओं को भी राष्ट्रप्रेम और कर्तव्यनिष्ठा की प्रेरणा देगा।
अनुच्छेद 370 के खिलाफ संघर्ष
केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन में डॉ. मुखर्जी को एक सामाजिक सुधारक बताते हुए कहा कि वे उन पहले नेताओं में से एक थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी का मानना था कि एक राष्ट्र में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं हो सकते। उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनका यह संघर्ष अंततः वर्ष 2019 में सफल हुआ, जब अनुच्छेद 370 को भारतीय संविधान से समाप्त कर दिया गया।
डॉ. सिंह ने कहा कि डॉ. मुखर्जी का यह संकल्प आज भी राष्ट्र की एकता और अखंडता की नींव बना हुआ है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे डॉ. मुखर्जी के आदर्शों से प्रेरणा लें और देश के भविष्य निर्माण में सक्रिय भागीदारी करें।
स्मृति डाक टिकट और सिक्के का विमोचन
कार्यक्रम के दौरान गजेंद्र सिंह शेखावत और डॉ. जितेंद्र सिंह ने संयुक्त रूप से डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की स्मृति में एक विशेष डाक टिकट और एक स्मारक सिक्का जारी किया। डाक टिकट पर डॉ. मुखर्जी का चित्र अंकित है जिसमें वे अपने विशिष्ट गंभीर और विचारशील मुद्रा में दर्शाए गए हैं। यह टिकट भारत सरकार की डाक सेवा के ऐतिहासिक संकलन का हिस्सा बनेगा।
वहीं, स्मारक सिक्का धातु कला का सुंदर उदाहरण है, जिसमें डॉ. मुखर्जी की प्रतिमा और “भारत केसरी” शीर्षक अंकित किया गया है। यह सिक्का विशेष संग्रह के रूप में आम जनता के लिए भी उपलब्ध कराया जाएगा। इन दोनों वस्तुओं का विमोचन न केवल सम्मान का प्रतीक है, बल्कि देश के नागरिकों को उनके बलिदान की याद दिलाने वाला स्मारक भी है।
प्रदर्शनी और जनसंवाद
कार्यक्रम स्थल पर एक विशेष प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया जिसमें डॉ. मुखर्जी के जीवन की झलकियां, उनकी लिखी हुई पुस्तकों, भाषणों, फोटो, और विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेजों को प्रदर्शित किया गया। प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में छात्र, शोधार्थी और आम नागरिक उपस्थित हुए।
यह प्रदर्शनी न केवल इतिहास की दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, बल्कि यह वर्तमान पीढ़ी को उनके विचारों से जोड़ने का एक सार्थक प्रयास भी साबित हुई। प्रदर्शनी में शामिल इंटरैक्टिव डिजिटल डिस्प्ले और वर्चुअल टूर तकनीकों ने दर्शकों को आधुनिक तकनीकी माध्यमों से भी डॉ. मुखर्जी के जीवन से जुड़ने का अवसर दिया।
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत के कोलकाता (तब कलकत्ता) नगर में एक प्रतिष्ठित बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता अशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध शिक्षाविद्, न्यायविद् और ‘बंगाल के बिस्मार्क’ के नाम से प्रसिद्ध थे। पारिवारिक परिवेश में शिक्षा, राष्ट्रप्रेम और सामाजिक दायित्व की मजबूत नींव उन्हें विरासत में मिली।
डॉ. मुखर्जी बचपन से ही मेधावी छात्र रहे। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मात्र 23 वर्ष की आयु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा स्नातकोत्तर बने। इसके पश्चात वे इंग्लैंड गए, जहाँ उन्होंने लंदन से बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की और इनर टेम्पल के सदस्य बने। यह इंग्लैंड में अध्ययन का वह दौर था जब भारतीय स्वाधीनता संग्राम की लहरें विदेशों तक पहुँच रही थीं और डॉ. मुखर्जी उसमें मानसिक रूप से जुड़ते चले गए।
वापस भारत लौटने के बाद वे 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने, जो उस समय की सबसे युवा नियुक्ति थी। उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय को आधुनिक दिशा मिली। उन्होंने शिक्षा को भारतीय मूल्यों से जोड़ने का प्रयास किया और युवाओं को राष्ट्रनिर्माण के लिए प्रेरित किया।
वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद डॉ. मुखर्जी को देश के पहले मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री बनाया गया। वे 1950 तक इस पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने देश में तकनीकी शिक्षा, उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयों के विस्तार पर विशेष बल दिया। वे भारतीय भाषा, संस्कृति और परंपरा को शिक्षा का अंग बनाने के पक्षधर थे।
कांग्रेस से वैचारिक मतभेदों के चलते डॉ. मुखर्जी ने अलग राह अपनाई और 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रूप में विकसित हुआ। वे तुष्टिकरण, विभाजनकारी राजनीति और राष्ट्रविरोधी शक्तियों के प्रबल विरोधी थे।
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का उन्होंने डटकर विरोध किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं हो सकते।” उन्होंने सत्याग्रह किया और बिना अनुमति के जम्मू-कश्मीर की यात्रा की, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
23 जून, 1953 को श्रीनगर में हिरासत के दौरान रहस्यमयी परिस्थितियों में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर कई सवाल उठे, लेकिन आज तक उसकी पूरी सच्चाई सामने नहीं आ सकी। राष्ट्र ने एक दृढ़ राष्ट्रवादी और सिद्धांतों के लिए जीने-मरने वाले नेता को खो दिया।
दर्शन एवं वैचारिक आधार
डॉ. मुखर्जी के राजनीतिक और सामाजिक दर्शन का मूलाधार था—राष्ट्र सर्वोपरि। उनका नारा “एक देश, एक संविधान, एक प्रधान” आज भी भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने धर्म, संस्कृति और राष्ट्रवाद को अलग-अलग नहीं, बल्कि परस्पर पूरक रूप में देखा।
डॉ. मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे, जिसने आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी की वैचारिक नींव रखी। आज भी भाजपा और उससे जुड़े संगठनों के लिए वे आदर्श और प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके नाम पर अनेक संस्थान, विश्वविद्यालय, और सड़कों का नामकरण किया गया है। देश में उन्हें एक सच्चे राष्ट्रभक्त, शिक्षाविद् और जननेता के रूप में स्मरण किया जाता है।
Source : Aakashvadi
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ) — डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी स्मृति कार्यक्रम
Q1: यह कार्यक्रम किस उद्देश्य से आयोजित किया गया था?
उत्तर: यह कार्यक्रम भारत केसरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती की द्विवार्षिक स्मृति को चिह्नित करने के लिए संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया था। इसका उद्देश्य उनके विचारों और योगदान को याद करना और नई पीढ़ी को उनके सिद्धांतों से प्रेरित करना था।
Q2: इस कार्यक्रम में कौन-कौन से प्रमुख नेता उपस्थित थे?
उत्तर: इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत तथा केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह उपस्थित रहे। दोनों नेताओं ने डॉ. मुखर्जी के जीवन और विचारों पर प्रकाश डाला।
Q3: कार्यक्रम की मुख्य उपलब्धियाँ क्या रहीं?
उत्तर:
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डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर एक विशेष डाक टिकट और स्मारक सिक्का का विमोचन।
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उनके जीवन पर आधारित एक विशेष प्रदर्शनी का आयोजन।
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राष्ट्रनिर्माण और अनुच्छेद 370 के खिलाफ उनके संघर्ष को जनमानस तक पहुँचाने का प्रयास।
Q4: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का अनुच्छेद 370 से क्या संबंध था?
उत्तर: डॉ. मुखर्जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अनुच्छेद 370 का खुलकर विरोध किया था। उनका मानना था कि एक देश में दो संविधान, दो प्रधान और दो झंडे नहीं हो सकते। उनका यह संघर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के साथ पूरा हुआ।
Q5: भारतीय जनसंघ और डॉ. मुखर्जी का क्या संबंध है?
उत्तर: डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रूप में विकसित हुआ। वे पार्टी के पहले अध्यक्ष भी थे और इसकी वैचारिक नींव रखी।
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