🇮🇳 भारत‑यूएस व्यापार समझौते की दिशा में ट्रंप का नया रुख
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भारत-यूएस व्यापार संबंधों को लेकर एक उम्मीद भरा संकेत दिया है। उन्होंने कहा कि वे “बहुत कम, ‘much less tariffs’”—अर्थात् न्यूनतम टैरिफ—के आधार पर एक समझौते की दिशा में आगे बढ़ने की इच्छा रखते हैं ।
🔎 ट्रंप ने क्या कहा?
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ट्रंप ने कहा, “अभी हम इस पर सहमत हुए हैं कि हम भारत में व्यापार के अधिकार को प्राथमिकता देंगे …”
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“Right now, India doesn’t accept anybody in. … if they do that, we’re going to have a deal for less, much less tariffs.”
यह स्पष्ट संकेत है कि यदि भारत अपने बाजार में अमेरिकी कंपनियों की बराबरी में व्यापार सहज बना देता है तो यह सौदा “बहुत जल्द” सामने आ सकता है।
⏰ पृष्ठभूमि: क्यों महत्त्वपूर्ण है यह समझौता?
🔹 टैरिफ तनाव और राजनयिक बातचीत
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ट्रंप प्रशासन ने अप्रैल 2025 में भारत से आयातित उत्पादों पर लगभग 26% तक अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी थी, लेकिन 90‑दिन की अवधि में यह निर्णय स्थगित किया गया ।
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भारत और अमेरिका के बीच “बिलैटरल ट्रेड एग्रीमेंट” (BTA) की बातचीत चल रही है, जिसमें भारत को यह आश्वासन दिलाने का प्रयास है कि समझौते के बाद “कोई और नया टैरिफ नहीं लगाया जाएगा” ।
🔹 भारत की प्रतिक्रिया
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विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने टिप्पणी की कि किसी भी समझौते का निर्णय “जब तब तक निश्चित नहीं” होगा जब तक सभी बिंदुओं पर सहमति न हो जाए ।
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कृषि और दुग्ध क्षेत्र (डैरी) जैसी संवेदनशील वस्तुओं पर भारत ने कड़ा रुख अपनाया है, जहाँ कोई समझौता नहीं किया जा सकता ।
⚖️ दोनों देशों को क्या-क्या फायदे हो सकते हैं?
भारत की संभावित लाभ‑रूपरेखा
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विल्कुल कम टैरिफ
ट्रंप ने कहा कि भारत “100% तक टैरिफ काटने के लिए तैयार है” जो अमेरिका को भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का बेहतर अवसर देगा। -
विशेष क्षेत्रीय छूट
रिपोर्टों के मुताबिक भारतीय प्रस्ताव में “स्टील, ऑटो कंपोनेंट्स, फार्मा उत्पादों” जैसे वस्तुओं पर सीमित मात्रा में टैरिफ‑मुक्त आयात शामिल है । -
ब्रांडेड निवेश और विनिर्माण
अमेरिकी कंपनियों—जैसे एप्पल—में भारत को विनिर्माण हब बनाने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं, साथ ही निवेश भी आकर्षित हो सकता है।
अमेरिका को कैसे होगा लाभ?
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न्यूनतम टैरिफ बाधा
जहाँ पहले भारत की औसत आयात शुल्क दर 12–17% थी, अब उसे 0–4% तक लाए जाने का प्रयास है । -
ट्रेड घाटे में सुधार
अमेरिका को उम्मीद है कि टैरिफ़ कटौती के साथ व्यापार घाटा कम होगा और अमेरिकी उत्पादों की भारतीय पहुंच आसान होगी। -
संकटग्रस्त कृषि और मदिरा क्षेत्र में अवसर
कृषि उत्पादों, शराब और ऊर्जा सेक्टर में अमेरिकी कारोबार बढ़ेगा, जो भारतीय किसानों और उपभोक्ताओं की जरूरतों के अनुसार होगा ।
🚧 चुनौतियाँ और ठोकरें
कृषि व दुग्ध क्षेत्र की चिंता
भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि “डैरी सेक्टर में समझौता नहीं होगा”—उनकी सेटांप सोना डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों की आजीविका से जुड़ी है । छोटे किसान और स्थानीय बाजार में इसका असर व्यापक होगा।
राजनैतिक हित और आत्मनिर्भरता
कैनबैक के खिलाफ मजबूत राजनीतिक जोर है। भाजपा और जनतांत्रिक दलों में यह महसूस हो चुका है कि किसी भी समझौते को लागू करने से पहले घरेलू हितों को प्राथमिकता मिले।
टैरिफ स्थिरता की मांग
भारत चाहता है कि समझौते के बाद अमेरिका “कोई नई टैरिफ न लगाए”; यह सौदे की दीर्घकालिक विश्वसनीयता के लिए अहम है ।
🔭 अगली संभावित राह
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प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप की मौखिक भागीदारी
सूत्रों के अनुसार दोनों नेता व्यक्तिगत रूप से वार्ता में उतर सकते हैं, यदि भारत या अमेरिका के मंत्री स्तर पर समझौता नहीं बन पा रहा । -
ज़रूरी उत्पादों की सूचीबद्धता
समझौते के प्रथम चरण में तेल, ऊर्जा, रक्षा, स्टील व फार्मा की कुछ सीधी वस्तुओं पर छूट संभव है। -
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भारत सरकार इस मुद्दे पर संयमित रुख अपना रही है।
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किसी भी समझौते से पहले भारतीय किसानों, घरेलू उद्योगों और MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) को ध्यान में रखा जा रहा है।
समय‑सीमा में लचीलापन
ट्रंप ने कहा है कि “जुलाई 9 की तारीख तय नहीं है”—यदि आवश्यक हुआ तो इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है ।
🌐 वैश्विक संदर्भ में भारत‑अमेरिका व्यापार समझौता
🔍 क्यों है ये समझौता अंतरराष्ट्रीय रूप से महत्वपूर्ण?
भारत और अमेरिका दोनों ही विश्व की दो सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्तियाँ हैं। आर्थिक दृष्टि से:
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अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
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भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है।
इन दो देशों के बीच व्यापारिक समझौता केवल द्विपक्षीय हितों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक व्यापार नीति और बहुपक्षीय समझौतों पर भी प्रभाव डालेगा।
🧭 इंडो-पैसिफिक रणनीति और व्यापार
ट्रंप ने पहले भी इंडो-पैसिफिक व्यापार नीति की वकालत की है। इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए अमेरिका भारत को एक स्थिर और विश्वसनीय साथी के रूप में देखता है।
🇨🇳 चीन से मुकाबला
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ट्रंप प्रशासन चीन के साथ व्यापार युद्ध में रहा है और अब वह चाहता है कि भारत जैसे राष्ट्रों को मजबूत कर चीन पर निर्भरता घटाई जाए।
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भारत, एक सस्ता और युवा श्रमबल प्रदान करता है जो चीन का एक विकल्प हो सकता है।
📈 संभावित प्रभाव: भारतीय उद्योगों पर
🔷 विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग)
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अमेरिका की कंपनियां भारत में उत्पादन बढ़ाने पर विचार कर रही हैं।
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इससे भारत में रोज़गार के नए अवसर बन सकते हैं।
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‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी मजबूती मिलेगी।
🔷 सूचना प्रौद्योगिकी (IT Sector)
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भारत की IT कंपनियां अमेरिका में अपने सर्विसेज का विस्तार कर सकती हैं।
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भारतीय पेशेवरों को भी H1B वीजा नीति में कुछ राहत मिल सकती है।
🔷 कृषि और डैरी
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यह सबसे संवेदनशील क्षेत्र है।
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अमेरिका चाहता है कि भारत अपने कृषि बाजार को खोले, जबकि भारत अपने किसानों को सुरक्षा देना चाहता है।
🧾 व्यापारिक आंकड़ों की एक झलक (2024 के अनुसार)
क्षेत्र भारत से अमेरिका को निर्यात अमेरिका से भारत को आयात आईटी और सेवा $38 बिलियन $12 बिलियनट्रंपtrump वस्त्र (Textiles) $10 बिलियन $2.5 बिलियन कृषि उत्पाद $4 बिलियन $9 बिलियन कुल व्यापार (दोनों) $170 बिलियन+ यह स्पष्ट करता है कि अमेरिका के लिए भारत एक बड़ा बाजार है, जबकि भारत के लिए अमेरिका एक प्रमुख निर्यात गंतव्य।
💬 ट्रंप के बयान का राजनीतिक अर्थ
⛳ चुनावी रणनीति?
ट्रंप के इस व्यापार समझौते के संकेत को कई विश्लेषक चुनावी कार्ड भी मानते हैं। आगामी अमेरिकी चुनाव 2025 के अंत में हो सकते हैं, और ट्रंप अपने आर्थिक दृष्टिकोण को दिखाना चाहते हैं।
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✅ निष्कर्ष
भारत और अमेरिका एक गहरे रणनीतिक एवं आर्थिक साझेदारी की ओर बढ़ रहे हैं।
ट्रंप का “much less tariffs” और “full barrier dropping” जैसे शब्द यह संकेत देते हैं कि दोनों राष्ट्र टैरिफ आधारित व्यापार बाधाओं को दूर करने की दिशा में गंभीर हैं ।
लेकिन यह रफ्तार तभी टिकाऊ होगी जब:
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भारत की संवेदनशीलता जैसे कृषि और डैरी का ठीक ढंग से ध्यान रखा जाए,
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भारत को राजनैतिक समर्थन मिल सके, और
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अमेरिका उतनी ही विश्वसनीयता के साथ समझौते के बाद कोई नया टैरिफ न लगाए।
यदि इन सभी बिंदुओं पर संतुलन बना रहता है, तो यह समझौता दोस्ताना, प्रतिस्पर्धात्मक, और दोनों देशों के हित में सिद्ध हो सकता है।
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