एशियाई पैरा-आर्चरी चैम्पियनशिप में हरविंदर सिंह का स्वर्णिम पराक्रम

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बीजिंग में आयोजित एशियाई पैरा-आर्चरी चैंपियनशिप 2025 भारत के लिए गौरवशाली रही, जब पैरा-ओलंपिक पदक विजेता हरविंदर सिंह ने रीकर्व पुरुष ओपन वर्ग में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। थाईलैंड के अनुभवी और पूर्व चैंपियन हानरयूचाई नेट्सिरी को 7-1 के निर्णायक स्कोर से पराजित कर हरविंदर ने यह कीर्तिमान रचा। यह न केवल एक व्यक्तिगत विजय थी, बल्कि भारत के पैरा-खेल इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज की जाने वाली उपलब्धि बन गई।

इस चैंपियनशिप में हरविंदर सिंह ने कुल तीन पदक जीते। व्यक्तिगत स्वर्ण के अलावा उन्होंने भवना के साथ मिलकर मिश्रित रीकर्व टीम में स्वर्ण और विवेक चिकार के साथ पुरुष टीम रीकर्व में रजत पदक जीता। यह प्रदर्शन एक ऐसे खिलाड़ी का था जिसने न केवल अपनी प्रतिभा, बल्कि अनुशासन, आत्मविश्वास और अडिग जज़्बे से भी समस्त भारतीय खेल समुदाय को प्रेरित किया।

बीजिंग के ओलंपिक आर्चरी फील्ड में रविवार की दोपहर जैसे ही हरविंदर ने निर्णायक तीर छोड़ा, भारतीय खेमे में उत्सव का माहौल बन गया। थाई खिलाड़ी नेट्सिरी, जिनकी सटीकता के लिए वे जाने जाते हैं, हरविंदर की मानसिक दृढ़ता और रणनीतिक निशानेबाज़ी के आगे टिक नहीं सके। हर तीर जैसे हरविंदर की साधना का परिणाम था।

फाइनल स्कोर 7-1 रहा। पहले सेट में 28-26 से बढ़त बनाते हुए हरविंदर ने नेट्सिरी पर दबाव डाला। अगले दो सेट 29-26 और 28-28 रहे, जहां हरविंदर ने निरंतर लय बनाए रखी। निर्णायक सेट में उन्होंने 29 अंक जुटाकर मैच को निर्णायक रूप से अपने पक्ष में कर लिया। कोच गौतम कुमार ने इसे “तकनीक और मानसिक संतुलन का आदर्श संगम” बताया।

गाँव से वैश्विक मंच तक

हरविंदर सिंह की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं। पंजाब के एक छोटे से गाँव कादियां से आने वाले हरविंदर का जीवन एक हादसे के बाद पूरी तरह बदल गया। रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट के बाद डॉक्टरों ने उन्हें व्हीलचेयर तक सीमित बताया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

उनके लिए तीरंदाज़ी केवल एक खेल नहीं बल्कि पुनर्जन्म थी। पटियाला के नेशनल स्पोर्ट्स सेंटर में उन्होंने दिन-रात अभ्यास किया। सुबह 5 बजे से लेकर रात 9 बजे तक चलने वाला कठोर प्रशिक्षण, फिजियोथेरेपी, मानसिक कंडीशनिंग, और ध्यान – सब कुछ उनकी दिनचर्या का हिस्सा बना।

 कोच और टीम सपोर्ट

हरविंदर के कोच गौतम कुमार, मानसिक प्रशिक्षक नताशा भसीन और फिटनेस ट्रेनर दीपक यादव – तीनों ने मिलकर एक ऐसा माहौल तैयार किया जहाँ हरविंदर अपने शारीरिक और मानसिक दोनों पहलुओं को बराबर निखार सके। कोच गौतम कहते हैं, “हरविंदर ने केवल शारीरिक नहीं, भावनात्मक चुनौतियों को भी जीता।”

 तीर की दिशा, मन की स्थिति

हरविंदर की तकनीकी महारत इस चैंपियनशिप में साफ दिखी। उनके तीरों की औसत गति 230 किमी/घंटा रही और उनके द्वारा छोड़े गए 12 में से 9 तीर सीधे केंद्र पर लगे। इसके अलावा, उन्होंने Wind Drift Compensation Technique का प्रयोग कर बीजिंग के बदलते मौसम का भी बखूबी सामना किया।

मानसिक कंडीशनिंग की भूमिका

हरविंदर हर सुबह योग और ध्यान करते हैं। उनका मानना है कि “मस्तिष्क को साधे बिना तीर लक्ष्य पर नहीं जाता।” उनके ध्यान शिक्षक, हिमांशु जोशी ने बताया कि हरविंदर ने ‘Visualization Technique’ का प्रयोग कर मैच से पहले खुद को विजयी स्थिति में देखना शुरू किया था।

 एशियन पैरा-गेम्स, जकार्ता (इंडोनेशिया)

हरविंदर सिंह ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के लिए पैरा-आर्चरी में पदक जीतकर इतिहास रचा। उन्होंने व्यक्तिगत रीकर्व स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। यह भारत के लिए एशियन पैरा-आर्चरी में पहला बड़ा पदक था और हरविंदर के करियर का निर्णायक मोड़ भी। यह जीत एक ऐसे खिलाड़ी की थी, जिसने विपरीत परिस्थितियों को मात देकर तीरंदाज़ी को अपनी जीवन यात्रा बना लिया।

 टोक्यो पैरालंपिक (जापान)

यह वह क्षण था जब हरविंदर सिंह ने इतिहास रचा। टोक्यो में उन्होंने कांस्य पदक जीतकर भारत को पैरा-आर्चरी में पहला ओलंपिक पदक दिलाया। यह केवल खेल इतिहास में दर्ज एक उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के लिए गर्व का क्षण था। कांस्य पदक के लिए हुए शूट-ऑफ में उनकी सटीकता और नर्व-कंट्रोल ने सभी को चकित कर दिया। यह मुकाबला पूरी दुनिया ने देखा और सराहा।

वर्ल्ड पैरा-आर्चरी कप, दुबई (संयुक्त अरब अमीरात)

हरविंदर ने विवेक चिकार और अर्जुन मुंडा के साथ पुरुष रीकर्व टीम इवेंट में हिस्सा लिया और रजत पदक जीता। इस प्रतियोगिता में उन्होंने भारत को विश्व रैंकिंग में ऊपर लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। दुबई की तेज़ हवा और धूप में भी उनका प्रदर्शन अत्यंत संतुलित और नियंत्रित रहा। यह पदक उनके अनुभव और निरंतरता का प्रमाण था।

 एशियाई पैरा-आर्चरी चैंपियनशिप, बीजिंग (चीन)

छह वर्षों की मेहनत और आत्मसंयम का परिणाम, हरविंदर ने बीजिंग में तीन पदक जीतकर अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन प्रस्तुति दी:

  • व्यक्तिगत रीकर्व पुरुष ओपन वर्ग – स्वर्ण पदक

  • मिक्स्ड रीकर्व टीम (भवना के साथ) – स्वर्ण पदक

  • पुरुष टीम रीकर्व (विवेक चिकार के साथ) – रजत पदक

इस चैंपियनशिप में उनका प्रदर्शन न केवल तकनीकी दृष्टि से उत्कृष्ट रहा, बल्कि नेतृत्व क्षमता और रणनीति में भी वे सबसे आगे रहे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

“हरविंदर सिंह को एशियन पैरा-आर्चरी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर ढेरों बधाइयाँ। आपका समर्पण और साहस देश के हर नागरिक के लिए प्रेरणा है। जय हिंद!”

खेल मंत्री अनुराग ठाकुर

“हरविंदर सिंह की जीत ने साबित कर दिया कि हमारे पैरा-खिलाड़ी हर बाधा को पार कर सकते हैं। यह पूरे देश के लिए गर्व का क्षण है।”

पैरा स्पोर्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र

“हरविंदर का प्रदर्शन भारतीय पैरा खेलों के स्वर्ण युग की शुरुआत है। हम उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं।”

अब लक्ष्य पैरालंपिक 2028

हरविंदर अब लॉस एंजेलिस में होने वाले 2028 पैरालंपिक की तैयारी में जुट गए हैं। उनका कहना है, “बीजिंग में जीत के बाद अब मैं भारत को पैरालंपिक स्वर्ण दिलाना चाहता हूँ।” उन्होंने कोचिंग टीम से कहा है कि उन्हें अब और कठिन अभ्यास चाहिए।

प्रेरणा, साहस और संकल्प की कहानी

हरविंदर की कहानी सिर्फ खेल की नहीं, बल्कि आत्म-विश्वास और सामाजिक पुनर्निर्माण की भी है। आज वे स्कूली बच्चों, कॉलेज युवाओं और विकलांग समुदाय के लिए आदर्श बन चुके हैं। कई राज्य सरकारें अब उन्हें ब्रांड एंबेसडर बनाने पर विचार कर रही हैं।

हरविंदर सिंह की बीजिंग में जीत केवल एक पदक नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रतीक है — संकल्प, साधना और सफलता का। उनका जीवन संघर्ष, तकनीकी दक्षता और मानसिक दृढ़ता आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रकाशस्तंभ है। भारत को एक ऐसा तीरंदाज़ मिला है जिसने शारीरिक सीमाओं को पीछे छोड़ते हुए विश्व के मानचित्र पर तिरंगा लहराया।

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